अगहन पंचमी तक जारी रहेगा मड़ई का दौर

 

 

(अखिलेश दुबे)

सिवनी (साई)। वैसे तो संयुक्त मध्य प्रदेश में दीप पर्व के बाद मेला मड़ई का दौर जारी रहता है किन्तु महाकौशल विशेषकर सिवनी जिले में मेला मड़ई का उल्लास अलग ही दिखता है। दीपावली के बाद भाई दूज से आरंभ होने वाली मड़ई लगभग डेढ़ महीने तक जारी रहती है। अगहन पंचमी तक इसका विशेष महत्व होता है।

उमर दराज लोग बताते हैं कि हर ग्राम में मड़ई मेले की एक निश्चित तिथि है तथा सदियों से उसी तिथि को उस ग्राम में मड़ई भरती चली आयी है। वस्तुतः मड़ई मेले प्रकृति के गोद मे अभाव या सीमित संसाधनों के साथ मानव उल्लास की अभिव्यक्ति का एक तरीका है जो सदियों से यह प्रमाणित करता आया है कि प्रेम, उल्लास व आनंद की अभिव्यक्ति के लिये धन, वैभव, समृद्धि या आधुनिकता की मौजूदगी आवश्यक नहीं है।

एक बुजुर्गवार ने समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया से चर्चा के दौरान कहा कि मड़ई मेलों का स्वाभाविक आकर्षण यह है कि मजदूरी या जीविकोपार्जन के लिये अपनी माटी छोड़कर दूर गया व्यक्ति भी अपनी गाँव की मड़ई में शामिल होने के लिये अपने घर लौटने की पूरी कोशिश करता है।

उन्होंने कहा कि इसका कारण यह है कि इन मड़ई मेलों से जुडी हैं उसकी बचपन और किशोरावस्था की वो स्मृतियां, जो कभी हाथ से चलने वाले झूले में बैठकर आसमान की सैर का अहसास देती थी तो कभी कोई खिलौना खरीद कर संसार की सबसे कीमती वस्तु को पा लेने का गौरव मन में भर देती थी, जो कभी माता – पिता के धनाभाव के कारण अपना मनपसंद खिलौना न खरीद पाने की टीस देती थी तो उस खिलौने की तरफ बार – बार पलटकर देखने और अगले साल उस खिलौने को खरीदने का स्वप्न भी देती थी।

सिवनी जिले का वनाच्छादित क्षेत्र मुख्यतः खरीफ की फसल के लिये जाना जाता था तथा धान ही मुख्य फसल हुआ करती थी। दीपावली में खरीफ की फसल के साथ नये धान्य की आमद घर में समृद्धि व खुशियां लाती थीं जो साल भर की जरूरत का सामान एकत्रित करने का सामर्थय भी दे जाती थीं।

कहा जाता है कि खुशियों को नाच गाने के साथ अभिव्यक्त करने और साल भर की जरूरत का सामान जुटाने का माध्यम है मड़ई मेला। जब मड़ई मेला आरंभ हुए होंगे उस समय शहर तक जाकर अपनी जरूरत का सामान जुटाना हर ग्रामीण के बस की बात नहीं थी, ऐसे समय मे व्यापारी अलग – अलग दिन अलग – अलग गाँव में जाकर दुकान लगाते थे और ग्रामीण आसपास के गाँवों से आकर वहाँ अपनी जरूरत का सामान खरीदते थे।

संभवतः इसीलिये मड़ई मेले अलग – अलग गाँवों में अलग – अलग तिथियों पर आयोजित किये जाते थे ताकि व्यापारी वहाँ पहुँचकर बाज़ार लगा सकें। ऐसे हर गाँव में मड़ई मेले के आयोजन की तिथि एवं स्थान निश्चित रहते थे जिनकी सूची व्यापारियों के पास रहती थी और व्यापारी निश्चित तिथि पर निश्चित स्थान पर उस क्षेत्र की जरूरत के हिसाब से सामान लेकर विक्रय हेतु पहुँच जाते थे। अनाज, वनोपज तथा अन्य जरूरत की वस्तुओं का विनिमय इन बाजारों की मुख्य विशेषता होती थी।

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