(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। दीपावली पर विभिन्न प्रकार के पटाखों का उपयोग बड़ी मात्रा में किया जाता है। पटाखों के ज्वलनशील एवं ध्वनि कारक होने के कारण परिवेशीय वायु में प्रदूषण तत्वों और ध्वनि स्तर में वृद्धि होकर पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
इसके साथ ही साथ पटाखों के जलने से उत्पन्न कागज के टुकड़े और अधजली बारूद बच जाती है तथा इस कचरे के संपर्क में आने वाले पशुओं एवं बच्चों के दुर्घटनाग्रस्त होने की आशंका रहती है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जारी अधिसूचना अनुसार 125 डी.बी. (एआई) या 145 डी.बी. (सी) से अधिक ध्वनि स्तरजनक पटाखों का विनिर्माण, विक्रय या उपयोग वर्जित किया गया है। उच्चतम न्यायालय द्वारा रिट पिटीशन (सिविल) क्रमाँक 72/1998 ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण के परिप्रेक्ष्य में दिये गये निर्णय के अनुसार रात्रि 10 बजे से प्रातः 06 बजे तक ध्वनि कारक पटाखों का उपयोग प्रतिबंधित किया गया है।
आम जनता से अपील की गयी है कि निर्धारित ध्वनि स्तर के पटाखों का ही उपयोग निर्धारित समय में एवं सीमित मात्रा में करें तथा पटाखों को जलाने के पश्चात उत्पन्न कचरे को घरेलू कचरे के साथ न रखें। पटाखों के जलाने से उत्पन्न कचरे को प्राकृतिक जल स्त्रोत, पेयजल स्त्रोत के समीप न फेंका जाये, क्योंकि विस्फोटक सामग्री खतरनाक रसायनों से निर्मित होती है। इसलिये नगर पालिकाओं से भी अपील की गयी है कि वे नगर पालिका क्षेत्र में पटाखों से उत्पन्न कचरे को पृथक से संग्रहित करके उसका सुरक्षित निष्पादन सुनिश्चित किया जाये। पर्यावरण संरक्षण तथा प्रदूषण नियंत्रण के लिये सभी नागरिकों के सहयोग की अपील की गयी है।

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