(संजीव प्रताप सिंह)
सिवनी (साई)। गणेशोत्सव और दुर्गा उत्सव पर नागरिकों के द्वारा स्वप्रेरणा से जिस तरह आपसी सौहार्द्र, भाईचारा और साफ सफाई में रूचि दिखायी गयी वह वाकई काबिले तारीफ मानी जा सकती है, लेकिन इम्तहान अभी बाकी है। दीपावली का त्यौहार अब बाहें फैलाये है। रौनक है, तो चुनौती भी साथ है। चुनौती है शहर की आबोहवा को महफूज रखने की।
इसके लिये बस एक संकल्प करना है कि इस दीपावली रौशनी करें, धमाके नहीं। प्रत्येक दीपावली पर पटाखों से निकलने वाला धुंआ वायु प्रदूषण करता है, तो कानफोड़़ू आवाज ध्वनि प्रदूषण का स्तर तय मानक से पाँच गुना बढ़ जाता है। दीपावली पर रौशनी और पटाखों का प्रयोग सावधानी से किया जाये तो रंग में भंग पड़ने से रोका जा सकता है।
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के भोपाल ब्यूरो से नंद किशोर ने मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मण्डल के सूत्रों के हवाले से बताया कि पिछले साल एमपीपीसीबी द्वारा की गयी मॉनिटरिंग में पीएम 10 का स्तर 419 माईक्रोग्राम था, जबकि सीपीसीबी द्वारा तय मानक के मुताबिक पीएम 10 का प्रति 24 घण्टे औसत 100 माईक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। वहीं ध्वनि स्तर तय मानक से 29 डेसीबल ज्यादा रिकॉर्ड दर्ज की गयी थी। प्रदूषण का यह स्तर आमजन को बीमार करने के लिये काफी है।
इसके अलावा अगर आप पटाखे खरीदने जा रहे हैं तो आपको सतर्कता बरतने की जरूरत है। दरअसल, बाज़ार में चायनीज पटाखों की घुसपैठ हो चुकी है। इन पटाखों को देशी रंग देकर बेचा जा रहा है। शासन की ओर से चायनीज पटाखों पर लगाये गये प्रतिबंध के बाद पटाखे के कारोबार से जुड़े लोगों ने घुसपैठ का यह रास्ता निकाला है।
बताया जाता है कि अनेक जिलोें के जिला कलेक्टर्स के द्वारा चायनीज पटाखों से होने वाले हादसों और प्रदूषण को देखते हुए अपनी – अपनी तैनाती वाले जिलों में इनकी बिक्री पर प्रतिबंध लगाया गया है। प्रतिबंध के बाद पटाखा कारोबारियों ने इसका तोड़ यह निकाला कि उन्होंने चायनीज पटाखों पर शिवाकाशी में निर्मित लिखकर उसे बाज़ार में उतार दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि रोक के बाद भी अनेक शहरों में चायनीज पटाखे धड़ल्ले से बेचे जा रहे हैं। राजधानी में पटाखों की आधा दर्जन से अधिक दुकानों का जब जायजा लिया गया तो देशी लेबल की आड़ में चायनीज पटाखे बेचे जा रहे हैं।
विदेशी पटाखों पर लगे देशी लेबल से सिवनी के निवासी भी खूब धोखा खा सकते हैं। चायनीज पटाखों को देशी पटाखा समझकर खरीद सकते हैं। ऐसे में लोग अन्जाने में अपने जिगर के टुकड़ों के लिये खतरा मोल ले सकते हैं। हालांकि, इन पटाखों की पैकिंग देशी पटाखों से अधिक आकर्षक और अलग है। यदि खरीददार थोड़ा से गौर करें तो इन्हें आसानी से पहचान सकते हैं।
पटाखा कारोबार से लंबे समय तक जुड़े रहे कारोबारी ने बताया कि शिवाकाशी में निर्मित अधिकांश पटाखों पर अभी भी मुर्गा और घोड़े जैसे चित्र रहते हैं। यही नहीं, इनकी फिनिशिंग और पैकिंग भी उतनी अच्छी नहीं होती है जबकि, चायनीज पटाखों पर कार्टून कैरेक्टर समेत बच्चों को आकर्षित करने वाले चित्र छपे होते हैं। चायनीज पटाखों की आवाज में नयापन और रंगों का भी खूब उपयोग किया जाता है। शिवाकाशी के पटाखों में अभी यह प्रचलन नहीं है।
पटाखों के कारण दीपावली पर वायु प्रदूषण पाँच से दस गुना व ध्वानि स्तर 40 डेसीबल तक बढ़ जाता है। जानकारों ने बताया कि पटाखे जलाने से कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फ्यूरिक नाइट्रिक व कार्बनिक एसिड जैसी जहरीली गैस वायुमण्डल में फैलती हैं। इससे कैंसर, पेड़, पौधों के जलने व जल स्त्रोत के दूषित होने से जलीय जीवों के मरने की आशंका रहती है। ओजोन परत को नुकसान होने का खतरा बढ़ जाता है। लोगों को दिल से जुड़ी बीमारी हो सकती हैं। देर रात तक पटाखों से तनाव और ध्वनि प्रदूषण का भी नुकसान झेलना पड़ सकता है।
माँग की जा रही है कि सिवनी जिले में भी विदेशी पटाखों की बिक्री पर पूरी तरह न केवल रोक लगायी जाये वरन उस रोक को सख्ती के साथ लागू किया जाये। सस्ते और आकर्षक पैकिंग वाले विदेशी पटाखों के उपयोग से न केवल मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है वरन पर्यावरण को भी अच्छा खासा नुकसान हो सकता है।

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