(मनोज चतुर्वेदी)
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के नए अध्यक्ष सौरभ गांगुली ने कहा है कि उनकी प्राथमिकता प्रथम श्रेणी के क्रिकेटरों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है। अपने दस माह के कार्यकाल में यह काम वह यदि कर पाए तो भारतीय घरेलू क्रिकेट की दशा और दिशा दोनों बदल जाएगी। ऐसा करने के बाद इस खेल में प्रतिभाओं की कमी पुरानी बात हो जाएगी। मौजूद समय में अंतरराष्ट्रीय और घरेलू क्रिकेटरों को मिलने वाली धनराशि में जमीन-आसमान का फर्क है, जिसे पाटना बेहद जरूरी है। अगर यह संभव हो पाता है तो भारतीय युवाओं में इस खेल के प्रति आकर्षण और बढ़ जाएगा। गांगुली की इस सोच को अन्य खेल फेडरेशनों में भी अमली जामा पहनाया जाए तो देश में अंतरराष्ट्रीय पदक विजेताओं की कतारें खड़ी हो सकती हैं और भारत खेलों की दुनिया में चीन की तरह एक बड़ी शक्ति के तौर पर उभर सकता है।
मौजूदा समय में प्रथम श्रेणी का एक क्रिकेटर अपने भविष्य को लेकर आश्वस्त नहीं रहता। पहले की तरह उसे अब सिर्फ खेलने के लिए नौकरियां भी नहीं मिलती हैं। क्रिकेटर बनना एक पूर्णकालिक काम है। इसके लिए एक क्रिकेटर को रोजमर्रा जीवन में कई तरह के त्याग करने के अलावा प्रतिदिन पांच-छह घंटे अभ्यास करना होता है। यही वजह है कि तमाम क्रिकेटर जब अपने लिए टीम इंडिया या किसी आईपीएल टीम में चुने जाने की संभावना कमजोर देखते हैं तो क्रिकेट खेलना ही छोड़ देते हैं। प्रथम श्रेणी क्रिकेट में कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम लाकर इस सिलसिले से बचा जा सकता है और प्रथम श्रेणी तथा अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटरों के बीच खाई को खत्म कर किया जा सकता है। घरेलू क्रिकेट में अपनी टीम के सभी मैच खेलने वाले और शानदार प्रदर्शन करने वाले क्रिकेटर सालाना 25-30 लाख रुपये ही कमा पाते हैं। इसके विपरीत अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर एक बार बीसीसीआई के करार से बंध जाने पर अपनी आर्थिक हैसियत के प्रति आश्वस्त हो जाते हैं।
इस करार के तहत ग्रेड सी के खिलाड़ी भी सालाना एक करोड़ रुपये पाते हैं। ए प्लस ग्रेड के खिलाड़ियों की तो हम बात ही नहीं कर रहे, जो सालाना सात करोड़ रुपये तक पाते हैं। इसके अलावा सभी कॉन्ट्रैक्ट वाले खिलाड़ियों को प्रति टेस्ट 15 लाख, प्रति वनडे छह लाख और प्रति टी-20 तीन लाख रुपये मिलते हैं। इसके अलावा वे बोनस पाने के हकदार भी होते हैं। संक्षेप में कहें तो एक बार टीम इंडिया में पहुंचकर एक साल भी वहां टिक जाने वाले खिलाड़ी का करोड़पति बनना पक्का हो जाता है। सौरभ गांगुली चाहते हैं कि प्रथम श्रेणी क्रिकेटरों को आजकल मैच में प्रतिदिन मिलने वाले 35000 रुपये में तो इजाफा हो ही, उनके लिए मेडिकल सुविधाओं और पेंशन की भी व्यवस्था हो। ऐसा होने पर ही वे मुक्त भाव से क्रिकेट में अपना मन रमा सकते हैं। बीमार होने पर इलाज के लिए उन्हें भटकना नहीं पड़ेगा। पेंशन की सुविधा होने पर उनमें भविष्य के लिए भरोसा बना रहेगा।
आम तौर पर एक क्रिकेटर के खेलने की अवधि 10 से 15 साल होती है। खेल छोड़ने के बाद उनके सामने अपने परिवार के भरण-पोषण की समस्या आ जाती है। अगर कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम लागू करके घरेलू क्रिकेटरों को 20-30 लाख सालाना भी दिए जाएं, तो इनका भविष्य सुरक्षित हो सकता है। मौजूदा दौर में आर्थिक परेशानी उन खिलाड़ियों के सामने ज्यादा है, जो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट तक नहीं पहुंच पाते हैं और किसी आईपीएल टीम में भी नहीं चुने जाते। सच कहा जाए तो आईपीएल के आने से असमानता और बढ़ गई है। क्लासिकल स्टाइल में सालों से रणजी खेल रहे एक क्रिकेटर को साल में 25-30 लाख रुपये ही मिल पाते हैं जबकि आईपीएल में कई अनकैप्ड खिलाड़ी भी चार-पांच करोड़ रुपये बटोर लेते हैं। कल्पना करें कि दो खिलाड़ी टीम इंडिया के दावेदार के तौर पर खेल रहे हैं और घरेलू क्रिकेट में ढेरों रन बना रहे हैं या विकेट ले रहे हैं। इनमें से एक का टीम इंडिया में चयन हो जाता है और दूसरा किसी वजह से वहां तक नहीं पहुंच पाता। ऐसे में दोनों की माली हालत में जमीन-आसमान का फर्क हो जाता है। यही वजह है कि कई खिलाड़ी आगे की राह न बनती देखकर खेलना ही छोड़ देते हैं।
गांगुली इसी पर रोक लगाना चाहते हैं। सोचना होगा कि ऐसा ही कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम अगर एथलेटिक्स और बॉक्सिंग जैसे तमाम खेलों में लागू हो तो भारतीय खेलों की शक्ल कितनी बदल जाएगी। घरेलू क्रिकेट खेलने वालों को तो सालाना 25-30 लाख रुपये मिल भी जाते हैं, बाकी खेलों में खिलाड़ी के लिए जीवन यापन करना भी बेहद मुश्किल होता है। हां, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छे प्रदर्शन से खिलाड़ियों का भाग्य बदल जाता है, पर उस स्तर तक उनके पहुंचने की दास्तान कई बार रोंगटे खड़े कर देने वाली होती है। यह सही है कि देश के तमाम खेल संघों के पास बीसीसीआई की तरह पैसा नहीं है। पर ये भी खेल मंत्रालय के सहयोग से राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में खेलने वाले हर खिलाड़ी को करार से बांधकर 10-15 लाख रुपये सालाना देने की व्यवस्था कर सकते हैं। यह राशि यदि राज्य खेल संघों की ओर से राष्ट्रीय चौंपियनशिपों में खेलने वाले खिलाड़ियों को दी जाए तो इसके आशातीत परिणाम देखने को मिल सकते हैं।
यह सही है कि हाल के वर्षों में कुश्ती, कबड्डी, बैडमिंटन और वॉलीबॉल की फेडरेशनों ने आईपीएल की तर्ज पर लीग शुरू करके खिलाड़ियों को आर्थिक राहत देने की शुरुआत की है। इसके अलावा कुश्ती फेडरेशन ने क्रिकेट की ही तरह कॉन्ट्रैक्ट सिस्टम शुरू करके पहलवानों को दस से तीस लाख रुपये तक देना शुरू किया है। पर लीग शुरू करने या कॉन्ट्रैक्ट देने का फायदा अभी तक अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को ही मिला है। इस सुविधा को एक पायदान नीचे युवा प्रतिभाओं तक ले जाने की जरूरत है। ऐसा किया जा सका तो ओलिंपिक विजेताओं के लिए तरसने की नियति से हम हमेशा के लिए मुक्त हो जाएंगे।
(साई फीचर्स)

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