झोला छाप चिकित्सकों की मौज

 

(शरद खरे)

प्रदेश सरकार की नीतियां किस तरह से दम तोड़ रहीं हैं इसका जीता जागता उदाहरण प्रदेश भर में चिकित्सकों की सरकारी स्तर पर कमी के रूप में सामने आ रहा है। भाजपा लगातार 15 सालों तक सत्ता पर काबिज़ रही पर उसके द्वारा भी प्रदेश में चिकित्सकों की कमी को दूर नहीं किया जा सका। अब काँग्रेस की सरकार के द्वारा इस दिशा में पहल आरंभ की गयी है।

चिकित्सकों की कमी का सीधा असर गरीब गुरबों पर पड़ रहा है जो निःशुल्क सरकारी उपचार के अभाव में चिकित्सकों की महंगी फीस देने पर मजबूर हो रहे हैं। इतना ही नहीं सुदूर ग्रामीण अंचलों में जहाँ तत्काल चिकित्सकीय सहायता नहीं मिल पाती है वहाँ, झोला झाप चिकित्सक और ओझा, पण्डों के भरोसे ही रहने पर मजबूर हैं ग्रामीण।

सिवनी जिले में भी झोला छाप चिकित्सकों की भरमार दिखायी देती है। जहाँ-तहाँ बंगाली दवाखाना, विश्वास क्लीनिक या सिर्फ दवाखाना लिखकर ही बिना किसी वैध डिग्री के चिकित्सकों के द्वारा लोगों की जान से खिलवाड़ किया जा रहा है। जिले में अनेक मामले ऐसे भी प्रकाश में आ चुके हैं जिनमें लोगों का मर्ज बिगड़ा है और कई को तो जान से हाथ भी धोना पड़ा है।

देखा जाये तो मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी का यह दायित्व है कि वे अपने अधिकार क्षेत्र में समय-समय पर टीम गठित कर झोला छाप चिकित्सकों पर दबिश देकर लोगों को इनके मकड़जाल से बचायें। आश्चर्य तो तब होता है जब, ये झोला छाप चिकित्सक सीना ठोककर यह कहते हैं कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है वे, ब्लॉक मेडिकल अधिकारी से लेकर सीएमएचओ तक को साधे हुए हैं।

यह वाकई दुःखद और चिंतनीय है। इसके लिये मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को चाहिये कि वे अपने स्तर पर यह प्रयास करें कि उनके पास उपलब्ध चिकित्सकों को उन स्थानों पर जाने के लिये पाबंद करें (भले ही सप्ताह में दो दिन) जहाँ, अस्पताल तो हैं पर चिकित्सक नहीं हैं। इसके अलावा शासन स्तर पर भी चिकित्सकों की पदस्थापना के प्रयास उसी तरह करें जिस तरह, बजट आवंटन के लिये किया करते हैं।

दरअसल, यह पूरी की पूरी जवाबदेही चुने हुए सांसद-विधायकों की है। सांसद-विधायकों को चाहिये कि वे हर एक उस मत (वोट) का सम्मान करें जिसके जरिये, वे विधान सभा या लोक सभा की सीढ़ियां चढ़-उतर रहे हैं। जनता ने उन्हें अपना भाग्य विधाता चुना है पाँच सालों के लिये। इस लिहाज़ से विधान सभा या लोक सभा में वे अपनी आवाज बुलंद अवश्य करें। विडंबना ही कही जायेगी कि सिवनी में आज़ादी के साढ़े सात दशकों बाद भी केंद्र सरकार का एक भी चिकित्सालय नहीं है।

सांसदों-विधायकों, जिला प्रशासन सहित स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों से अपेक्षा है कि जिले भर में कुकरमुत्ते के मानिंद फैले झोला छाप चिकित्सकों की मश्कें कसने के लिये निश्चित अंतराल पर छापामार कार्यवाही को अंज़ाम देते हुए सरकारी स्तर पर योग्य चिकित्सकों की पदस्थापना के प्रयास सुनिश्चित कर, लोगों को राहत देने का प्रयास अवश्य करें। संवेदनशील जिलाधिकारी प्रवीण सिंह के द्वारा इस मामले में कुछ पहल की गयी थी, किन्तु मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय के द्वारा इस मामले में वांछित सहयोग नहीं किये जाने के कारण मामला जस का तस ही प्रतीत हो रहा है।

 

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