इस बार भी 15 जनवरी को मनेगी मकर संक्रांति

 

(ब्यूरो कार्यालय)

सिवनी (साई)। इस बार दान पुण्य का पर्व मकर संक्रांति का त्यौहार 15 जनवरी को मनाया जायेगा।

दरअसल सूर्य देव 14 जनवरी को रात लगभग 2.05 बजे उत्तरायण होंगे। यानी सूर्य चाल बदलकर धनु से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। यही वजह है कि सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण होने का पर्व संक्रांति का पुण्य काल 15 जनवरी सुबह से आरंभ होगा। पुण्य काल सुबह सवा सात बजे से शाम साढ़े 05 बजे तक रहेगा।

मराही माता स्थित कपीश्वर हनुमान मंदिर के मुख्य पुजारी उपेंद्र महाराज ने बताया कि 15 जनवरी को पुण्यकाल का होना सभी राशि के जातकों के लिये विशेष फलदायी रहेगा। वहीं इस दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र, सौभन योग के साथ सिंह और कन्या राशि का चंद्रमा रहेगा। इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान का विशेष महत्व है।

उन्होंने बताया कि संक्रांति में पुण्यकाल का भी विशेष महत्व है। शास्त्रानुसार यदि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश शाम या रात्रि में हो तो पुण्यकाल अगले दिन के लिये स्थानांतरित हो जाता है। इस बार सूर्य 14 जनवरी की रात को मकर राशि में प्रवेश करेगा, इसलिये संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को माना जायेगा।

उन्होंने कहा कि शास्त्रानुसार मकर सक्रांति का पुण्यकाल का समय संक्रांति लगने के समय से 06 घण्टे 24 मिनिट पहले और संक्रांति लगने के 16 घण्टे बाद तक माना गया है। पुण्यकाल के समय दिन का समय होना आवश्यक बताया गया है, जो इस बार 15 जनवरी को रहेगा।

17वीं शताब्दी में 09, 10 जनवरी को मना था पर्व : बताया जाता है कि 16वीं, 17वीं शताब्दी में 09, 10 जनवरी को, 17वीं, 18 वीं शताब्दी में 11, 12 जनवरी को, 19वीं – 20वीं शताब्दी में 13, 14 जनवरी को 20वीं – 21 वीं शताब्दी में 14 और 15 जनवरी को संक्रांति का पर्व मनाया जाने लगा।

पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमते हुए चार विकला पीछे होती है। इसे अयनांश भी कहते हैं। अयनांश धीरे – धीरे बढ़ता है। वर्तमान में यह 23 डिग्री 56 विकला है। सूर्य के देरी से मकर में प्रवेश करने के कारण ही संक्रांति की तारीखें भी परिवर्तित होती रहती हैं। इसलिये संक्रांति कभी 14 तो कभी 15 जनवरी को आती है। 2021 में संक्रांति फिर से 14 जनवरी को आयेगी। सन 2086 के बाद पूर्ण रूप से मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनायी जायेगी।

बुराईयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन : ज्योतिष के जानकारों के अनुसार इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाया करते हैं। शनिदेव चूँकि मकर राशि के स्वामी हैं, अतः इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।

जानकारों ने बताया कि भगवान विष्णु ने इस दिन असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी व सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराईयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है। यशोदाजी ने जब कृष्ण जन्म के लिये व्रत किया था, तब सूर्य देवता उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। कहा जाता है तभी से मकर संक्रांति व्रत का प्रचलन हुआ।

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