(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। देवकी यानी जो देवताओं की होकर जीवन जीती है और वासुदेव का अर्थ है, जिसमें देव तत्व का वास हो। ऐसे व्यक्ति अगर विपरीत परिस्थितियों की बेड़ियों में भी क्यों न जकड़े हों, भगवान को खोजने के लिये उन्हें कहीं जाना नहीं पड़ता है बल्कि भगवान स्वयं आकर उसकी सारी बेड़ी – हथकड़ी को काटकर उसे भवसागर से मुक्त करा दिया करते हैं।
उक्ताशय की बात कथा वाचक मंगलमूर्ति शास्त्री ने केवलारी के समीपस्थ गाँव मलारा में जारी श्रीमद भागवत कथा में श्रद्धालुजनों से कही। उन्होंने आगे कहा कि हर मनुष्य के जीवन में छः शत्रु हैं, काम, क्रोध, मद, मोह, लोभ व अहंकार। जब हमारे अंदर के यह छः शत्रु समाप्त हो जाते हैं तो सातवें संतान के रूप में शेष जो काल के प्रतीक हैं वो काल फिर मनुष्य के जीवन में आना भी चाहें तो भगवान अपने योग माया से उस काल का रास्ता बदल देते हैं। तब आठवें संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण का अवतार होता है। जीवन में भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति आ गयी तो ऐसा समझना चाहिये कि उसका जीवन सफल हो गया।
कथा आयोजक रामसेवक, छोटीबाई, प्रमोद, अशोक, कमलेश प्रियंका दुबे ने बताया कि मंगलवार को कथा स्थल पर पहुँचे निर्विकल्प स्वरूप महाराज ने कहा कि भगवान की बाल लीला सभी को सुख देने वाली है। भक्तों पर जब-जब कष्ट होता है भगवान भक्तों के कष्टों को हरने अलग – अलग रूपों में अवतार लेते हैं।

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