(शरद खरे)
जिले के सरकारी और निज़ि शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों के परिवहन में लगे वाहनों की शायद ही कभी चैकिंग की जाती हो। नियमानुसार निश्चित समय पर एक अंतराल के बाद ही सही, इन वाहनों का निरीक्षण जिला शिक्षा अधिकारी के साथ ही साथ क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी एवं यातायात पुलिस को करना चाहिये। रस्म अदायगी के लिये कभी कभार अमला सड़कों पर दिखायी दे जाये तो अलग बात है।
सिवनी में नियमों को बलाए ताक पर रखकर शालेय वाहनों का संचालन वर्षों से हो रहा है। कभी कभार रस्म अदायगी के लिये शालेय वाहनों को छेड़ा जाता है। यातायात पुलिस और परिवहन विभाग की नज़रें भी शालेय परिवहन में लगे वाहनों पर इनायत नहीं हो पा रहीं हैं।
प्रशासनिक अधिकारी अगर सुबह सवेरे जल्दी जागकर सड़कों पर उतरकर इन वाहनों को देखें तो निश्चित तौर पर नब्बे फीसदी वाहनों में निर्धारित से अधिक संख्या में विद्यार्थी भेड़ बकरियों के मानिंद भरे मिल जायेंगे। पालकों की भी मजबूरी है कि वे इस तरह के वाहनों में अपने बच्चों को बैठाकर शाला भेजते हैं।
सर्वाेच्च न्यायालय की गाईड लाईन के अनुसार ड्राईवर के पास सभी कागजात हों और वाहन पूरी तरह से फिट होना चाहिये। सभी आवश्यक दवाओं के साथ फर्स्ट एड बॉक्स हो। वाहन में बैग रखने का स्थान होना चाहिये। वाहन में अग्निशामक यंत्र हो। खिड़की और गेट सुरक्षित हों, जिनमें से बच्चों को गिरने से खतरा न हो। स्कूल का नाम और ड्राईवर का फोन नंबर लिखा हो। अनुभवी ड्राईवर और एक सहायक होना चाहिये। निर्धारित से अधिक संख्या में बच्चे न बैठें।
वहीं दिल्ली में एक स्कूल बस में हुई घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहज़े में निर्देश दिया था कि सभी स्कूल बसों में सीसीटीवी कैमरा, महिला व पुरूष अटेंडेंट सुनिश्चित किया जाये। दरअसल स्कूली बच्चों की सुरक्षा के मद्देनज़र स्कूल बसों में जीपीएस सिस्टम के तहत सीसीटीवी कैमरा लगाये जाने का निर्देश जारी किया गया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्देश जारी करने के बाद आरटीई के तहत सभी स्कूल बसों को जीपीएस सिस्टम से लैस करना था लेकिन स्कूल संचालक एवं बस संचालकों की लापरवाही कहें या फिर कोर्ट की नाफरमानी कि आज तक बसों को जीपीएस सिस्टम से नहीं जोड़ा गया है।
इस मामले में जिला शिक्षा अधिकारी, परिवहन विभाग और यातायात पुलिस ने मौन ही साधे रखा है। क्षेत्रीय सांसद और विधायकों को भी इससे ज्यादा सरोकार नज़र नहीं आ रहा है। नवागत जिला कलेक्टर प्रवीण सिंह के द्वारा अभी शिक्षा विभाग की ओर नज़रें इनायत नहीं की गयीं हैं।
वैसे जिला कलेक्टर के द्वारा परिवहन अधिकारी को कुछ मामलों में पाबंद अवश्य किया गया है। इस लिहाज़ से माना जा सकता है कि जिला कलेक्टर के द्वारा शीघ्र ही शालेय परिवहन के मसले पर भी कुछ किया जा सकता है। इस मामले में यातायात पुलिस और परिवहन की भूमिका पर सवालिया निशान खड़े होते आये हैं।

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