कब चालू हो पायेंगे यातायात सिग्नल!

 

(शरद खरे)

नगर पालिका की वर्तमान परिषद का कार्यकाल महज़ दो दिन बाद पूरा होने वाला है। पाँच साल पहले इसके पहले वाली नगर पालिका परिषद के कार्यकाल में सिवनी शहर में संस्थापित कराये गये लगभग आधा दर्जन यातायात सिग्नल पाँच साल तक चल नहीं पाये। अगर इन्हें आरंभ नहीं कराना था तो इनकी संस्थापना में जनता के गाढ़े पसीने की कमाई से संचित राजस्व से लाखों रूपये पानी की तरह बहाने की आवश्यकता ही क्या थी।

04 अक्टूबर को सांसद डॉ.ढाल सिंह बिसेन की अध्यक्षता में आहूत सड़क सुरक्षा समिति की बैठक में जिलाधिकारी प्रवीण सिंह ने नगर पालिका को निर्देशित किया था कि इन यातायात सिग्नल्स को छः दिन अर्थात 10 अक्टूबर तक आरंभ करवा दिया जाये। विडंबना ही कही जायेगी कि उनके द्वारा दिये गये निर्देश के तीन माह बीतने को हैं पर पालिका ने सिग्नल्स की सुध लेना मुनासिब ही नहीं समझा है।

सिवनी शहर में सबसे पहले नगर पालिका परिषद के सामने वाले तिराहा पर यातायात सिग्नल लगवाये गये थे। ये सिग्नल ही सबसे अधिक समय तक चालू रहे। इसके बाद छिंदवाड़ा चौक, कचहरी चौराहा, सर्किट हाउस चौराहा और बाहुबली चौराहा पर इन्हें लगवाया गया था। इनमें से प्रत्येक की लागत लगभग सात लाख रूपये थी, इस हिसाब से शहर में लगभग 35 लाख रूपये की लागत से यातायात सिग्नल लगवाये गये थे। यह काम इसके पहले वाली परिषद के कार्यकाल के अंतिम समय अर्थात 2014 में करवाया गया था।

भाजपा के नेत्तृत्व वाली नयी परिषद अस्तित्व में आयी। इसके द्वारा भी लगभग ढाई सालों तक इसकी सुध नहीं ली गयी। बाद में इन्हें चालू कराया गया, पर कोई भी यातायात सिग्नल माह के पूरे 30 दिन चालू नहीं रह पाया। आश्चर्य तो इस बात पर होता है कि इन यातायात सिग्नल्स वाले चौराहों से हर रोज सांसद, विधायक, नगर पालिका के कर्णधारों सहित जिला प्रशासन के अधिकारियों के गुजरने के बाद भी उनकी नज़रें इन ठूंठ के मानिंद खड़े, बंद पड़े सिग्नल्स की ओर क्यों नहीं जा सकीं।

सिवनी शहर में लगाये गये यातायात सिग्नल्स को बिना जेब्रा क्रॉसिंग के ही संस्थापित कर दिया गया था। यातायात पुलिस या परिवहन विभाग से सलाह मशविरा किये बिना ही संस्थापित किये गये ये सिग्नल लोगों के लिये सुविधा की बजाय परेशानी का सबब ज्यादा बनते दिखे।

यह सही है कि लगभग पाँच सालों पूर्व संस्थापित इन यातायात सिग्नल्स का अगर उपयोग नगर पालिका को नहीं करना था तो इन्हें संस्थापित कराने का क्या औचित्य था! इस तरह का काम सरकारी धन के अपव्यय की श्रेणी में ही आता है। यह काम तत्कालीन मुख्य नगर पालिका अधिकारी किशन सिंह ठाकुर के कार्यकाल में कराया गया था। इनकी संस्थापना के बाद लंबे समय तक वे सिवनी में ही पदस्थ रहे।

जिला प्रशासन से अपेक्षा है कि इस तरह के मामले में संज्ञान लिया जाकर जिस भी अधिकारी के हस्ताक्षरों से इनको संस्थापित कराया गया था, इसका भुगतान किया गया था, उनके वेतन भत्तों और अगर वे सेवा निवृत्त हो चुके हैं तो उनकी पेंशन से इनकी संस्थापना में कराये गये व्यय की वसूली की जाकर एक नज़ीर पेश की जाये, ताकि भविष्य में इस तरह की बर्बादी को रोका जा सके।

 

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