(ब्यूरो कार्यालय)
छपारा (साई)। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में विगत दिवस शिशु लिंगानुपात और प्रसव निदान तकनीक अधिनियम 1994 भारत में कन्या भ्रूण हत्या और गिरते शिशु लिंगानुपात को रोकने एवं सामाजिक समस्या पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसके अंतर्गत शिशु लिंगानुपात एवं संबंधित विषय पर चर्चा की गयी।
खण्ड चिकित्सा अधिकारी डॉ.देवाशीष बनर्जी द्वारा इस विषय में समझाईश देते हुए कहा गया कि कन्या भ्रूण हत्या आमतौर पर मानवता एवं स्त्री जाति के विरुद्ध सबसे अधिक अपराध का कारण है। विशेष तौर पर भ्रूण हत्या आमतौर पर अधिक होते हुए देखा गया है।
उन्होंने बताया कि प्रसव पूर्व लिंग का पता लगाना किट से प्रेग्नेंसी की जाँच की जाती है। ग्रामीण स्तर पर आँगनबाड़ी कार्यकर्त्ता, आशा कार्यकर्त्ता द्वारा यूरिन टेस्ट कराकर गर्भ का पता लगाया जाता है। यदि पुत्र ही पुत्र जन्म लेते रहेंगे और यदि पुत्रियां जल्म नहीं लेंगी तो आगे संतान कैसे प्राप्त होगी! बच्चे जन्म कैसे लेंगे!
इस दौरान खण्ड विस्तार प्रशिक्षक श्रीमति ए. सोनकेशरिया द्वारा समझाया गया कि बच्चा पेट में देखने के लिये सोनोग्राफी करवाते हैं, जबकि सोनोग्राफी नहीं करवाना चाहिये। गर्भ का पता लगाने के लिये यूरिन टेस्ट किया जाता है। हाँ, यदि गर्भ में बच्चा पल रहा है, बच्चे का सिर ऊपर है, बच्चा नहीं घूमता है, प्लेसेंटा अंदर हो, तब ही चिकित्सक की जाँच के द्वारा यदि सोनोग्राफी के लिये कहा जाये तब ही संभव हो सकता है। कन्या भ्रूण हत्या करने वालों पर तीन साल की सजा और दस हजार रुपये जुर्माना कानूनी प्रावधान है।

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