(हरी शंकर व्यास)
क्या सन 2030 तक अमित शाह प्रधानमंत्री हो चुके होंगे? मैं नरेंद्र मोदी के 2006 से प्रधानमंत्री बन सकने की संभावना बूझता रहा हूं। और 2012 से 2014 के बीच अमित शाह को बारीकी से बूझते-समझते हुए मानता रहा हूं कि अमित शाह की संभावनाएं असीमित है। बंदे में है दम की मेरी धारणा वक्त के साथ लगातार सही साबित होती गई है। उस नाते 2019 में केंद्र की सत्ता में लांच होने के बाद अमित शाह ने अपना जैसा नैरेटिव बनवाया है वह नरेंद्र मोदी से कई गुना अधिक है। बारीकी से विचार करें कि पिछले छह महीनों में सबसे ज्यादा काम, सबसे ज्यादा चर्चा किसकी हुई तो जवाब अमित शाह हैं। दूसरा सवाल है कि हिंदू एजेंडे के नाते आरएसएस, हिंदू मतदाताओं में आज कौन नंबर एक हिट है, तो फिर जवाब है अमित शाह!
उस नाते तय माने कि अगले साढ़े चार साल भी अमित शाह के हैं। क्या यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अच्छा लग रहा होगा? अपना मानना है कि नरेंद्र मोदी के मनोविश्व में अमित शाह कोई खतरा नहीं है। अमित शाह पहले भी उनके हनुमान थे और अब भी हैं और 2024 के आम चुनाव के वक्त में भी रहेंगे। तो क्या माना जाए कि अमित शाह में प्रधानमंत्री बनने की महत्वकांक्षा नहीं है?ऐसा सोचना गलत होगा।
तब क्या नरेंद्र मोदी अपने हाथों अपने हनुमानजी का राजतिलक करेंगे? कुछ जानकार कयास लिए हुए हैं कि नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति बनेंगे और अमित शाह को प्रधानमंत्री बना कर हिंदूशाही का आदर्श सत्ता ट्रांसफर बनवाएंगे। ये सब फालतू बाते हैं। यदि सब ठीक रहा तो नरेंद्र मोदी 2024 का चुनाव हनुमानजी की मेहनत से जीतेंगे और वापिस प्रधानमंत्री बन 2029 तक सत्ता में बने रहेंगे। यदि मोदी पंद्रह साल राज में रहे तो 2029 तक अमित शाह की सेहत, उनका धेर्य और देश के हालातों में क्या बनेगा, इसकी कल्पना की जा सकती है। नेहरू के वक्त सरदार पटेल नहीं बन पाए और वाजपेयी के रहते आडवाणी नहीं हो सके तो 2020 के दशक में रामजी के रहते हुए हनुमानजी कैसे हो सकते हैं?
इसलिए अमित शाह के प्रधानमंत्री बन सकने का मामला पेचीदा और विकट है। सबकुछ है लेकिन कुर्सी खाली नहीं होनी है। यों अमित शाह 55-56 साल के ही हैं पर 2029 तक वे 64 वर्ष के होंगे और तब नरेंद्र मोदी 79 वर्ष के होंगे। इसलिए एक कयास 2024 के चुनाव के बाद 2025-26 में सत्ता हस्तांतरण का है। मतलब 75 साल पूरे होने पर मोदी खुद शाह को गद्दी सौंपे। वैसे भी अमित शाह प्रधानमंत्री बने तो साहेब का रिटायरमेंट सुखद रहेगा। पर यह भी खुशफहमी सा है क्योंकि भारत की जन्मपत्री में कथित लौहपुरूषों का राजयोग नहीं है। मोदी और शाह की केमेस्ट्री के आगे के योग में यूपी के अगले चुनाव तक शायद कुछ स्पष्टता बने। अपना मानना है कि तब तक नरेंद्र मोदी पार्टी और सरकार को जिस अंदाज में अपनी सोच में बदलेंगे उससे आगे का रोडमैप खुलेगा। लगता है कि भाजपा अध्यक्ष और गुजरात में मुख्यमंत्री के फैसले में नरेंद्र मोदी अपनी निर्णायकता दिखाएंगे। जेपी नड्डा का अमित शाह की जगह अध्यक्ष का पूरा काम संभालना व गुजरात में अमित शाह द्वारा मुख्यमंत्री बनवाए गए विजय रूपानी की जगह यदि नितिन पटेल या जयेशभाई राडाडिया का मुख्यमंत्री बनना हुआ तो वह भाजपा की बिसात में चेकमैट लिए हुए होगा। फिर योगी आदित्यनाथ का यूपी में चुनाव वक्त भविष्य भी दांवपेंच लिए हुए होगा।
जो हो, इस सबके बावजूद इतना तय माने कि नया दशक अमित शाह की बहुत गहरी और स्थाई छाप लिए हुए होगा। दस साल बाद 2030 का भारत अमित शाह के ध्वंस और निर्माण की कई गाथाएं लिए हुए होगा।
(साई फीचर्स)

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