(ब्यूरो कार्यालय)
जबलपुर (साई)। सूकरों की धमाचौकड़ी से न सिर्फ स्वच्छता अभियान को बट्टा लग रहा है। बल्कि सूकरों की फैलाई गंदगी से स्मार्ट सिटी के नागरिक भी परेशान हैं।
सूकरों को शहर से बाहर करने के लिए जिला प्रशासन और नगर निगम ने कई जतन किए। यहां तक कि जिला प्रशासन को धारा 144 तक लगानी पड़ी। लेकिन कामयाबी नहीं मिली। अब जिला प्रशासन और नगर निगम सूकरों को शहर से बाहर करने नया प्रयोग करने जा रहा है।
जिसके तहत सूकरों को बेहोश (ट्रैंकुलाईज्ड ) किया जाएगा और फिर जंगल में छोड़ दिया जाएगा। इसमें वेटरनरी विश्वविविद्यालय की अनुभवी टीम नगर निगम का सहयोग करेगी। कलेक्टर भरत यादव ने वेटरनरी विवि प्रबंधन से चर्चा कर निगम को अनुभवी टीम उपलब्ध कराने कहा है।
ठेके के कर्मी भी नहीं पकड़ पा रहे
नगर निगम ने सूकरों को पकड़ने के लिए ठेके पर कर्मचारी रखे हैं। लेकिन पालकों द्वारा छोड़े गए सूकरों को ठेका कर्मी भी नहीं पकड़ पा रहे हैं। अब वेटरनरी की टीम निगम कर्मियों के साथ मिलकर सूकरों को दवाओं का इंजेक्शन देकर बेहोश करेगी और तुरंत ही उन्हें जंगल में छोड़ आएगी।
अब तक किए यह जतन
– निगम की टीम सूकर पकड़ लेती थी लेकिन पालक जोर जर्बदस्ती कर भगा देते थे
– सूकर पालकों पर लगाया गया प्रतिबंधात्मक आदेश, सिर्फ 13 को भेजा गया जेल
– कठौंदा में बनाया पिक हाउस कुछ दिन बाद ही बंद, अब यहां डॉग हाउस बना दिया गया है
निगम अपने ही जंगल में छोड़ेः वन विभाग
नगर निगम ने भले ही सूकरों को बेहोश कर जंगल में छोड़ने का निर्णय लिया है। लेकिन वन विभाग का कहना है कि दवा से बेहोश सूकरों को निगम अपने ही जंगली क्षेत्र डुमना या मदनमहल पहाड़ियों में छोड़े। डीएफओ रविन्द्र मणि त्रिपाठी का कहना है कि निगम अपने क्षेत्र सूकर छोड़ सकता है विभाग को उससे कोई आपत्ति नहीं है। यदि वनविभाग के क्षेत्र में छोड़ा गया तो आपत्ति की जाएगी।
वन्य प्राणी विशेषज्ञों का कहना
वन्य प्राणी विशेषज्ञों का कहना है कि पालतू जानवरों को जंगल में छोड़ने से पहले उनके स्वास्थ्य की जांच करना जरूरी है। कहीं कोई बीमारी तो नहीं? यदि कोई बीमारी होगी तो वह जंगल के दूसरे वन्यप्राणियों को प्रभावित कर सकती है। दो बार पहले भी स्वाइन फीवर के केस सामने आ चुके हैं जिसमें बड़ी संख्या में सूकरों की मौत हुई थी।

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