प्रकृति का महोत्सव है यह पर्व
(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। बसंत तो सारे विश्व में आता है पर भारत का बसंत कुछ विशेष है। भारत में बसंत केवल फाल्गुन में आता है और फाल्गुन केवल भारत में ही आता है।
गोकुल और बरसाने में फाल्गुन का फाग, अयोध्या में गुलाल और अबीर के उमड़ते बादल, खेतों में दूर-दूर तक लहलहाते सरसों के पीले – पीले फूल, केसरिया पुष्पों से लदे टेसू की झाड़ियां, होली की उमंग भरी मस्ती, जवां दिलों को होले – होले गुदगुदाती फाल्गुन की मस्त बयार, भारत और केवल भारत में ही बहती है।
बसंत पंचमी उत्सव और महत्व : माघ शुक्ल पंचमीं को बसंत पंचमीं उत्सव मनाया जाता है। इसे श्री पंचमीं, ऋषि पंचमीं, मदनोत्सव, वागीश्वरी जयंति और सरस्वती पूजा उत्सव भी कहा जाता है। इस दिन से बसंत ऋतु प्रारंभ होती है और होली उत्सव की शुरुआत होती है।
बसंत पंचमीं के दिन ही होलिका दहन स्थान का पूजन किया जाता है। होली में जलाने के लिये लकड़ी और गोबर के कंडे आदि एकत्र करना आरंभ करते हैं। इस दिन से होली तक 40 दिन फाग गायन यानी होली के गीत गाये जाते हैं। होली के इन गीतों में मादकता, एन्द्रिकता, मस्ती, और उल्लास की पराकाष्ठा होती है। कभी – कभी तो समाज व पारिवारिक संबंधों की अनेक वर्जनाएं तक टूट जाती हैं।
भारत की छः ऋतुओं में बसंत ऋतु विशेष है। इसे ऋतुराज या मधु मास भी कहते हैं। बसंत पंचमीं प्रकृति के अद्भुत सौन्दर्य, श्रृंगार और संगीत की मनमोहक ऋतु यानी ऋतुराज के आगमन की सन्देश वाहक है। बसंत पंचमीं के दिन से शरद ऋतु की बिदाई के साथ पेड़ – पौधों और प्राणियों में नव जीवन का संचार होने लगता है। प्रकृति नव यौवना की भांति श्रृंगार करके इठलाने लगती है।
पेड़ों पर नयी कोपलें, रंग – बिरंगे फूलों से भरी बागों की क्यारियों से निकलती भीनी सुगंध, पक्षियों के कलरव और पुष्पों पर भंवरों की गुंजार से वातावरण में मादकता छाने लगती है। कोयलें कूक-कूक के बावरी होने लगती हैं।
बसंत ऋतु में श्रृंगार रस की प्रधानता है और रति इसका स्थायी भाव है। इसीलिये बसंत के गीतों में छलकती है मादकता, यौवन की मस्ती और प्रेम का माधुर्य। भगवान श्रीकृष्ण, बसंत पंचमीं उत्सव के अधि – देवता हैं अतः ब्रज में यह उत्सव विशेष उल्लास और बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। सभी मंदिरों में उत्सव और भगवान के विशेष श्रृंगार होते हैं।
वृन्दावन के श्री बांके बिहारी और शाहजी के मंदिरों के बसंती कक्ष खुलते हैं। बसंती भोग लगाये जाते है और बसंत राग गाये जाते हैं। महिलाएं और बच्चे बसंती – पीले वस्त्र पहनते हैं। वैसे भारतीय इतिहास में बसंती चोला त्याग और शौर्य का भी प्रतीक माना जाता है जो राजपूती जौहर के अकल्पनीय बलिदानों की स्मृतियों को मानस पटल पर उकेर देता है।

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