सही तिथि का इंतजार

 

(प्रणव प्रियदर्शी) 

अभी-अभी 26 जनवरी और फिर 30 जनवरी बीती है। सोशल मीडिया के इस दौर में ऐसी तिथियां देशप्रेम, त्याग और बलिदान की भावनाओं का ज्वार ले आती हैं। भले ही ये ज्वार तिथियां बीतने के साथ बिना कोई विशेष प्रभाव छोड़े भाटे में तब्दील हो जाते हों।

उसी ज्वार के दौरान कहीं पढ़ने में आया कि कैसे अशफाक उल्ला खां फांसी तय हो जाने के बाद मौत का इंतजार करते हुए रामप्रसाद बिस्मिल से ईर्ष्या महसूस करते थे कि वह हिंदू है और अपने धार्मिक विश्वासों के अनुरूप उसे इस संकल्प के साथ मरने की गुंजाइश मिली हुई है कि वह बार-बार जन्म लेकर बार-बार अपनी मातृभूमि पर बलिदान होता रहेगा। ध्यान आया, बचपन में ऐसी कहानियां पढ़ कर हम रोमांचित हो उठते थे जिनमें किसी शहीद की मां का यह कथन सामने आता कि भगवान ने मुझे एक ही बेटा दिया, काश मेरे और बेटे होते तो मैं उन्हें भी देश पर न्योछावर कर देती।

तिथि बदली, देशभक्ति की लहरें शांत हुईं और मैं भी उन भावनाओं से मुक्त होकर उन्हें करीब-करीब बिसरा चुका था। तभी यह खबर आई कि शाहीन बाग में रिकॉर्ड तोड़ ठंडी रातों में विरोध प्रदर्शनों को अपनी मासूम मुस्कुराहट की गर्मी देने वाला चार महीने का बच्चा मोहम्मद जहान आखिर ठंड की चपेट में आकर दम तोड़ गया। खास बात यह कि पुत्र शोक की यह सूनामी भी बच्चे की मां को हिला नहीं पाई। वह कहती है, शाहीन बाग के प्रदर्शनों में जाना मैंने इसलिए शुरू किया कि मेरे बच्चों और देश के सभी बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहे। उनके सिर पर देशनिकाले की तलवार न लटकती रहे। एक बच्चा मर गया तो क्या, सभी बच्चों की खातिर यह लड़ाई मैं लड़ती रहूंगी।

यह खबर दिखी और फिर उस पर लोगों की प्रतिक्रियाएं दिखीं। प्रतिक्रियाएं ऐसी जो शोक संतप्त माता-पिता के जज्बे को सलाम करने के बजाय उन पर लानतें भेज रही थीं कि जरूरत क्या थी इतने छोटे बच्चे को लेकर विरोध प्रदर्शन में जाने की। नतीजा यह कि शाहीन बाग और वहां शहीद हुए इस बच्चे के मां-बाप तो अपनी जगह रहे, सवालों के भंवर में मैं फंस गया। क्या यह महज तिथि बदलने का मामला है या हमारा दिमाग पलटने का?

गणतंत्र दिवस और महात्मा गांधी की पुण्यतिथि बीत गई तो क्या हम उस मां के जज्बे तक को नहीं पहचान पाएंगे? नागरिकता कानून के बारे में उसकी समझ चाहे जैसी भी हो, इससे क्या उसकी तकलीफ कम हो जाती है? सबके हित की खातिर अपने बच्चे की मौत जैसे दुख का जहर पी जाने वाली मां अगर हमारी राष्ट्रभक्ति में आड़े आने लग जाए तो राष्ट्रभक्ति के उस चश्मे का हमें क्या करना चाहिए? जवाब के लिए शायद अगली ऐसी तारीख यानी 15 अगस्त तक इंतजार करना होगा।

(साई फीचर्स)

 

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