मां-इंजन, बैग-बोगी, नींद में बच्चा…

जिंदगी की यह गाड़ी रुला रही है

(ब्‍यूरो कार्यालय)

नई दिल्‍ली (साई)। मजबूरी बेहद बुरी होती है। लॉकडाउन में जो बस किसी तरह अपने घर पहुंच जाना चाहते हैं, उनकी मजबूरी समझिए। दूसरे राज्‍यों में फंसे मजदूर पैदल घरों की तरफ निकले हैं तो कोई वजह रही होगी। यूं ही किसी गाड़ी के नीचे आकर कुचले जा रहे। मजबूरी एक पल में मौत से दो-चार करा रही है।

कोई इस एहसास से थोड़े ही निकलता है कि राह में दम तोड़ देगा। मौत तो बिन बताए आती है। कुछ की मंजिल बेहद करीब थी, इतनी कि सिर्फ कुछ घंटों में घर पहुंच जाते। मगर होनी को शायद उनके परिवार को और दुख देने थे। अपने घर जाने की कोशिश में जान गंवा बैठे प्रवासियों के परिवार का दर्द महसूस कीजिए। उन्‍हें मजदूर ही रहना चाहिए था, मजबूर नहीं बनने देना था। हश्र सब देख रहे हैं।

रेल का इंतजार करते-करते महीने भर से ज्‍यादा गुजर गए। जब चली भी तो जाने वाले लाखों में थे और सीटें चंद हजार। मरता क्‍या ना करता, हजारों मजदूर पैदल ही अपना परिवार लेकर निकल पड़े। पंजाब से उत्‍तर प्रदेश के महोबा के लिए निकले एक जत्‍थे की तस्‍वीर देखिए। एक बच्‍चा है, उसे आप इस सफर का यात्री मानिए। एक ट्रॉली-बैग है, उसे ट्रेन समझिए। तो ट्रेन पर वो यात्री पसरा हुआ। दोनों हाथों से बैग के दोनों छोर पकड़े हैं, गिरने का भी खतरा है। और इस ट्रेन को खींच रही है एक मजबूर मां। उसे चलते जाना है मगर बच्‍चे को तो नींद आती है। उसे क्‍या समझ कि क्‍यों उसकी मां अचानक निकल पड़ी है यूं पैदल। कहां जा रही है, उसे कुछ आइडिया नहीं।

ट्रॉली बैग पर सोया बच्चा, रस्सी बांध खींचती रही मांकोरोना वायरस के खतरे के बीच दूसरे राज्यों से अपने घरों की ओर लौट रहे प्रवासी मजदूरों की भावुक कर देने वाली तस्वीरें सरकारी दावों पर सवाल खड़े कर रही हैं। ताजा तस्वीर आगरा से सामने आई है, जहां पंजाब से उत्तर प्रदेश के महोबा जाने के लिए निकले एक जत्थे में शामिल बच्चा इतना थक गया कि वह चलते हुए ट्रॉली बैग पर ही सो गया। और उसकी मां ट्रॉली बैग को रस्सी से बांधकर खींचती रही।

उत्‍तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में 13 मई की रात एक भयानक हादसा हुआ। बिहार के कुछ मजदूर पंजाब में फंसे थे और पैदल ही निकल पड़े। झोले में पूड़‍ियां बांध रखी थीं कि भूख लगेगी तो खा लेंगे। बड़ा लंबा सफर है। स्‍टेट हाइवे के रोहाना टोल प्‍लाजा पर रोडवेज बस उनको कुचलती हुई निकल गई। वो पूड़‍ियां सड़क पर बिखर गईं, उनमें मजदूरों का खून मिल गया। बिस्‍कुट के कुछ पैकेट जो शायद जिस्‍म को बुरी तरह थका देने वाले इस सफर में थोड़ा ताकत देते, वो खुलकर ताश के पत्‍तों जैसे उस खौफनाक दृश्‍य के बीच बिछ गए।

पैदल निकले, घर से थोड़ी दूर पहले मौत

पिछले सप्‍ताह, गुजरात से उत्‍तर प्रदेश जा रहे संतराज नाम के मजदूर की राजगढ़ के पास पैदल चलते-चलते अचानक तबीयत खराब हो गई। थोड़ी देर में उसने दम तोड़ दिया। महाराष्‍ट्र से निकले सिद्धार्थनगर के आशिक खान झांसी बॉर्डर पर बेहोश हो गए थे। अगली सुबह उन्‍होंने दम तोड़ दिया। सिद्धार्थनगर के तीन और मजदूर भी घर वापसी की कोशिश में बेहद करीब आकर चूक गए। हैदराबाद से एक ट्रक में निकले मजदूरों को भी घर नसीब नहीं हुआ। गोरखपुर के सहजनवां के पास ट्रक पलट गया और दो लोग मारे गए।

दो दिन पहले की बात है। हैदराबाद से ओडिशा जा रहे एक मजदूर की पैदल चलते-चलते भद्राचलम के पास तबीयत खराब हो गई। सीने में दर्द उठा, उलटी की, फिर गश खाकर सड़क पर ही गिर पड़ा। साथ चल रहे लोगों ने पुलिस को बताया। अस्‍पताल में उसकी मौत हो गई। डॉक्‍टर ने बताया कि लू लगने से मौत हुई। महाराष्‍ट्र के औरंगाबाद में हुए रेल हादसे के वीभत्‍स नजारे पूरे देश ने देखे। रेल की पटरियों पर बिखरी रोटियां गवाह थीं कि भूख किस कदर मजबूर करती है। 16 मजदूरों के ऊपर से मालगाड़ी गुजर गई। वहीं के वहीं दम तोड़ दिया। 5 और घायल हो गए। सब गहरी नींद में थे। संभलने का कोई मौका मिला ही नहीं।

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