चलते रहने दे . . .!

पथ जैसा भी मिला
चलते रहे चलते रहे
ए ज़िंदगी
बोझ नही माना तुझे कभी
ख्वाब की क्या बात करे
जो तूने थमाया
वही नियति मान बैठे
तूने किसी बात का
अर्थ निकलने का मौका ही नही दिया
जो तू कराती रही करते रहे
कोई हमारी वजह से मुकुराया
तो कोई रोया भी
जिसकी खातिर सिर्फ
हमने सर झुकाया
पर अब थकावट का
जोर है
अब इस थकावट पर
तू मौन क्यूं है ?
सबकी अंतिम मंजिल की तरह
मेरे मील के पत्थर को
धर्म पूजा ईश्वर पर मत
डाल बस चलते रहने दे
चलते रहने दे . . .!

अनिल शर्मा ,सिवनी

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