(अनिल शर्मा, सिवनी.)
गाँव की शुरुवात पर
मोहल्ले के मोड़ पर
और मेरे घर की
दालान पर कुछ पेड़ थे
जो अपने से लगते थे
जब मै स्कूल जाता था
देते थे मुझे छाय
ठंडी ठंडी हवा के झोके
कच्चे पक्के फलो से
मिटाते थे मेरी शरारती भूख
उम्र के साथ लगता है
वे भी मुझसे नाराज हो गये
अब नज़र नहीं आते
वैसे ही जैसे मेरा बचपन
अब हवा पंखा कूलरो की
छाय है कंक्रीट की
डब्बो में बंद फल
आयातीत है सोच
पर मुझे तलाश है
उन्ही पेड़ो की…