कैसी हो ग्रीष्म ऋतुचर्या

वसंत ऋतु की समाप्ति के बाद ग्रीष्म ऋतु प्रारंभ होती है। ग्रीष्म में कफ का शमन व वायु का संचय होने लगता है। अगर इन दिनों में वातप्रकोपक आहार विहार करते रहें तो यही संचित वात ग्रीष्म ऋतु के बाद आने वाली वर्षा ऋतु में अत्यन्त कुपित होकर विविध व्याधियों को आमंत्रण देता है। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की प्रखर किरणों व अतिरूक्ष हवा से प्राणियों के शरीर का जलीयांश कम हो जाता है जिससे कमजोरीबेचौनीग्लानिअनुत्साहथकान आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं और प्यास ज्यादा लगती है। इसलिए ग्रीष्म ऋतु में कम आहार लेकर बार-बार शीतल जल एवं पेय पदार्थ पीना हितकर है।

आहार: इस ऋतु में वायु का शमन करने वाले तथा शरीर में जलीय अंश का संतुलन रखने वाले मधुरतरलसुपाच्यहलकेताजेस्निग्धरसयुक्तशीत गुणयुक्तपौष्टिक पदार्थों का सेवन करना चाहिए।

पुराने साठी के चावलगेहूँदूधमक्खन तथा गाय के घी के सेवन से शरीर में शीतलतास्फूर्ति और शक्ति आती है। सब्जियों में लौकीकुम्हड़ा (पेठा)गिल्कीनेनुआपरवलपालकनींबूचौलाईखीराककड़ीहरा धनियापुदीना और फलों में तरबूजखरबूजानारियलसंतरामौसमीआमसेबअनारफालसे का सेवन लाभदायी है।

ग्रीष्म ऋतु में जठराग्नि मंद होने के कारण अपचदस्तउलटी आदि बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। इनसे बचने के लिए दिन में एक ही बार ताजा हलका सुपाच्य भोजन करें। अन्य समय पर फलों का ताजा रसशिकंजीसत्तू अथवा दूध का प्रयोग करें।

इन दिनों कच्चे आम को भूनकर बनाया गया मीठा पनापानी में नींबू तथा मिश्री मिलाकर बनाया गया शरबतहरे नारियल का पानीफलों का ताजा रसठंडाईजीरे की शिकंजीदूध और चावल की खीरगुलकंद आदि का सेवन खूब लाभदायी है। इससे सूर्य की अत्यन्त उष्ण किरणों के दुष्प्रभाव से शरीर की रक्षा होती है।

ग्रीष्म में आने वाली दुर्बलतारूक्षता व जलीय अंश की कमी की पूर्ति के लिए सत्तू अत्युत्तम है। जौ को भूनकर चक्की में पीसकर सत्तू बनाया जाता है। चने को भूनकरछिलके अलग करके चौथाई भाग भूने हुए जौ उसमें मिलाकर बनाया गया विशेष लाभदायक होता है। इसी प्रकार चावल तथा गेहूँ का भी सत्तू बना सकते हैं। सत्तू मधुरशीतलबलदायककफ-पित्तनाशकभूख व प्यास मिटाने वाला तथा श्रमनाशक (धूपश्रमचलने के कारण आयी हुई थकान को मिटाने वाला) है।

सत्तू को शीतल जल में घी व मिश्री मिलाकर पीना चाहिए। केवल जल के साथ गर्म करकेभोजन के बादरात्रि के समयदिन में दो बार सत्तू नहीं पीना चाहिए। घी न हो तो केवल मिश्री मिलाकर भी ले सकते हैं।

अष्टांगसंग्रहकार वाग्भट्टाचार्यजी ने ग्रीष्म में बल की रक्षा हेतु एक पौष्टिक पेय बताया है जिसका नाम है पंचसार। पंचसार बनाने के लिए मुनक्काफालसाखजूरशहद व मिश्री को मिट्टी के बर्तन में चार गुना ठंडे पानी में भिगोकर रखें। एक घंटे बाद हाथ से मसलकर छान लें तथा हो सके तो मिट्टी के कुल्हड़ अथवा कसोरे में लेकर पीयें। यह शीघ शक्तिस्फूर्ति व ठंडक देने वाला है।

गर्मियों में गुड़ का पानी भी खूब फायदेमंद है। गुड़ को एक घंटा पानी में भिगोकर पीने से गर्मी का प्रतिकार करने की क्षमता आती है।

वाग्भट्टाचार्य के अनुसार गर्मी के दिनों में रात को चंद्रमा व तारों द्वारा शीतल किया गयामिश्री मिला हुआ भैंस का दूध पीना चाहिए।

इन दिनों में फ्रिजकूलर का ठंडा पानी पीने से गलेदाँतों एवं आँतों पर बुरा प्रभाव पड़ता हैइसलिए मटके या सुराही का पानी पियें।

इस ऋतु में नमकीनरूखेबासीतेज मिर्च-मसालेदार तथा तले हुए पदार्थअमचूरआचारइमली आदि तीखेखट्टेकसैले एवं कड़वे रसवाले पदार्थ न खायें। गर्मी से बचने के लिए बाजारू शीतपेय (कोल्ड ड्रिंक्स)आइस क्रीमआइसफ्रूटडिब्बाबंद फलों के रस का सेवन कदापि न करें। ये पदार्थ पित्तवर्धक होने के कारण आंतरिक गर्मी बढ़ाते हैं। रक्तस्रावखुजली आदि चमड़ी के रोग व चिड़चिड़ेपन की बीमारी को जन्म देते हैं।

ग्रीष्म ऋतु में दही अथवा छाछ का सेवन निषिद्ध है। अगर छाछ लेनी ही हो तो ताजीमीठी छाछ में मिश्रीधनिया तथा जीरा मिलाकर कम मात्रा में लें।

चायकॉफीसिगरेटबीड़ीतम्बाकूगुटखा आदि का सेवन अन्य ऋतुओं की अपेक्षा ग्रीष्म में विशेष हानि करता है। सावधान! अपनी सेहत का भविष्य मत बिगाड़ो।

(साई फीचर्स)

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