(अरुण दीक्षित)
एक बार फिर महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा में पेश हुआ है। आंकड़ों के हिसाब से देखें तो 1996 से लेकर अब तक की यह छठी कोशिश है। लेकिन यह पहली बार है जब किसी प्रधानमंत्री ने इतने विश्वास के साथ अचानक इसे पेश किया है। इस विश्वास की मूल वजह संसद सदस्यों का वह आंकड़ा है जो यह बता रहा है कि भले ही इस विधेयक पर विचार विमर्श नही किया गया है लेकिन संख्या बल इसे पारित करा सकता है।
शायद यही वजह है कि अतिआत्मविश्वास से लबरेज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में यह कहते सुने गए कि – यह सपना अधूरा था! ईश्वर ने इसके लिए मुझे चुना! अब यह तो ईश्वर ही जानते होंगे कि उन्होंने मोदी को चुना है या फिर मोदी ने विधान सभा और लोकसभा चुनाओं को ध्यान में रख कर इस विधेयक को संसद में लाने के लिए यह समय चुना है। क्योंकि यह साफ है कि अभी संसद में पारित हो जाने के बाद भी यह विधेयक लागू नही हो पाएगा। अगर सब कुछ ठीक रहा तो 2029 में इसका असर दिखाई देगा। अभी यह सिर्फ चुनावी सभाओं में श्रेय लेने के काम आएगा। 5 राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों को यदि छोड़ भी दें तो यह 2024 के लोकसभा चुनाव में भी यह लागू नहीं हो पाएगा।
उनकी मंशा और रणनीति पर बात करने से पहले एक नजर महिला आरक्षण को लेकर इससे पहले हुई कोशिशों पर डाल लेते हैं।
संसद के इतिहास पर नजर डालने से पता चलता है कि चर्चा भले ही चलती रही हो पर पहली ठोस कोशिश केंद्र में संयुक्त मोर्चा सरकार की अगुवाई कर रहे एच डी देवेगौड़ा ने की थी। करीब 27 साल पहले 12 सितंबर 1996 को तत्कालीन प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने महिला आरक्षण विधेयक संसद में पेश किया था। लेकिन उसका सबसे मुखर विरोध उनकी सरकार में शामिल लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव और शरद यादव ने किया था। इन तीनों नेताओं ने तब इस विधेयक पर क्या कहा था, संसद की कार्यवाही में दर्ज है। तब क्या क्या नहीं बोला गया था इस विधेयक के खिलाफ! और तो और खुद बीजेपी भी इसके पक्ष में नही थी। इसलिए इस विधेयक की अकाल मौत हो गई थी।
इसके बाद अटलबिहारी वाजपेई के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी। जानकारी के मुताबिक तीन बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले अटल जी ने महिला आरक्षण विधेयक को पास कराने की तीन गंभीर कोशिशें की। चूंकि उनकी सरकार भी बैसाखियों पर टिकी थी इसलिए वे भी अपनी कोशिश में सफल नहीं हो पाए।
इसके बाद 2010 में यूपीए सरकार की अगुवाई कर डाक्टर मनमोहन सिंह ने इस दिशा में प्रयास किया। तब यह विधेयक राज्यसभा में पारित हो गया था। लेकिन लोकसभा में पारित नही हो पाया था। मनमोहन सरकार भी सहयोगियों की बैशाखी के सहारे थी। इसलिए वे और उनकी पार्टी कांग्रेस भी कुछ ज्यादा नही कर पाई।
महिला आरक्षण को लेकर एक तथ्य यह भी है कि इस दिशा में सबसे पहली कोशिश पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने की थी। उन्होंने 1989 में ग्राम पंचायतों, नगर पालिकाओं और नगर निगमों में महिलाओं को आरक्षण देने की बात की थी। उनके निधन के बाद 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव की सरकार ने इस संबंध में कानून बनाया था।
यह तो था महिलाओं को आरक्षण देने की कोशिशों का इतिहास! अब बात करते हैं वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की। पिछले दस साल में यह साफ हो चुका है कि मोदी को मनमाने फैसले लेने की आदत है। जो उनके मन में आ जाए वे कर गुजरते हैं। नोटबंदी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। वैसे तो ऐसे फैसलों की सूची बहुत लंबी है। लेकिन अब संघ और बीजेपी सहित सभी समझ चुके हैं कि मोदी जो करना चाहते हैं, वह करते हैं। लोकसभा में संख्या बल उनके पास है। राज्यसभा में उनकी टीम कुशल प्रबंधन के जरिए बहुमत जुटा लेती है।
अतः लोकसभा चुनाव के 6 महीने पहले अचानक महिला आरक्षण विधेयक को लोकसभा में “नारी शक्ति वंदन” की संज्ञा के साथ पेश किए जाने पर किसी को भी आश्चर्य नही हुआ। क्योंकि लोकतंत्र में चर्चा की जो जगह रही है उसे फिलहाल उन्होंने हाशिए पर धकेल रखा है। अपनी पार्टी के भीतर तो क्या वे जरूरी मुद्दों पर विपक्ष से भी चर्चा करना जरूरी नहीं समझते हैं। यही उनकी “लोकतांत्रिक कार्यशैली” है।
महिला आरक्षण विधेयक को लोकसभा में पेश किए जाने के बाद प्रधानमंत्री ने भगवान की आड़ ली। उन्होंने कहा – यह अधूरा सपना था। ईश्वर ने इसके लिए मुझे चुना! अब ईश्वर से तो यह पूछ नही सकते कि आपने चुना या ये इकतरफा ऐलान आपके नाम पर किया गया है! लेकिन एक बात पूरी तरह साफ है कि मोदी इस विधेयक के जरिए एक बार फिर खुद को “चुनवाना” चाहते हैं। ईश्वर की आड़ उन्होंने स्थाई रूप से ले रखी है।
संसद में जो विधेयक पेश हुआ है उसके पारित होने में कोई संदेह नहीं है। संख्या बल उनके पास है। साथ ही आज जो हालात हैं उन्हें देखते हुए कोई भी राजनीतिक दल इसका विरोध करने की स्थिति में नहीं है। मतलब मैदान साफ है। नारी शक्ति वंदन का श्रेय सिर्फ और सिर्फ मोदी को ही मिलेगा। समर्थन करने या न करने वालों की कोई गिनती ही नही होगी।
अब यह सवाल कि आखिर महिला आरक्षण कब से लागू हो पाएगा। विधेयक का जो मसौदा संसद के सामने रखा गया है उसके मुताबिक संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित हो जाने के बाद भी इसका लाभ महिलाओं को अगले लोकसभा चुनाव में नही मिलेगा। कानून बनने के बाद जनगणना होने और फिर उसके आधार पर लोकसभा सीटों का परिसीमन हो जाने के बाद ही महिलाओं के लिए आरक्षित होने वाली सीटें तय होंगी। राज्यसभा और राज्यों की विधान परिषदों में यह आरक्षण लागू नहीं होगा।
यह स्पष्ट है कि 2026 से पहले महिला आरक्षण कानून बन जाने के बाद भी कागजों तक ही सीमित रहेगा। वर्तमान प्रारूप के मुताबिक अगर सब कुछ ठीक रहा तो 2027 में 8 राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव और 2029 में होने वाले लोकसभा चुनाव में महिला आरक्षण लागू हो पाएगा।
महिलाओं को आरक्षण देने के लिए संविधान में 128 बाँ संशोधन किया जा रहा है। अनुच्छेद 368 के मुताबिक संसद में पारित हो जाने के बाद भी संविधान संशोधन के लिए देश के आधे राज्यों की सहमति आवश्यक है। आज जो स्थिति है उसके हिसाब से राज्यों का जरूरी समर्थन आसानी से मिल जायेगा।
लेकिन इस काम में समय लगेगा। अगर सरकार चाहती तो यह काम तत्काल कर सकती थी। अगर ऐसा होता तो 2024 में लोकसभा में 181 महिला सांसद दिखाई देतीं! साथ ही यदि सरकार चाहे तो वह अब भी यह कानून तो बना ही सकती है कि सभी राजनीतिक दल 33 प्रतिशत टिकट महिलाओं को देंगे। इसमें न किसी परिसीमन की जरूरत होती और न ही संसद में संशोधन विधेयक पारित कराने की।
अब होगा यह कि संसद में विधेयक पारित हो जाने के बाद भी महिलाओं को आरक्षण के लिए सालों तक इंतजार करना होगा। जनगणना और परिसीमन का काम कब तक हो पाएगा, यह आज बताने की स्थिति में खुद मोदी भी नहीं हैं।
हां एक बात जरूर है – मंगलवार से ही मोदी की “महिला मसीहा” के रूप में “प्राणप्रतिष्ठा” शुरू हो गई है। संघ और बीजेपी के साथ साथ गोदी मीडिया भी इस काम में जुट गया है। मोदी तो हर मंच पर सीना ठोंक कर और ताली बजाकर इसका श्रेय लेंगे ही।
सबसे पहले 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में इस आरक्षण को भुनाया जायेगा। आमतौर पर महिलाएं भावुक होती हैं। 5 किलो अनाज मुफ्त में पाने वाली गरीब महिलाएं हों या लाडली लक्ष्मी के रूप में 1250 रुपए हर महीने पाने वाली! राजनीति में भाग्य आजमाने वाली हों या सरकारी नौकरी करने वाली! सभी को 33 प्रतिशत खाली सीटें दिखाई जाएंगी। उन्हें भावनाओं में बहाने के लिए लच्छेदार भाषण तो भगवान के नाम पर शुरू हो ही गए हैं।
मोदी इसका पूरा लाभ लेंगे! लेकिन जिनके नाम पर यह सब होगा उन्हें अभी अपने एक तिहाई हक के लिए इंतजार करना होगा। तब तक उन्हें सिर्फ “वोट बैंक” की भूमिका में रह कर मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के सपने को पूरा करवाना होगा। यह भी संभव है कि चौथी पारी के लिए भी महिलाओं का ही सहारा लिया जाए!
अब महिलाओं का अपना हक पाने का अधूरा सपना पूरा हो या न हो ..देश पर 20 साल राज करने का मोदी का सपना तो मजबूत होगा ही!
(साई फीचर्स)
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