माटी की आत्मा है पराली

नरवाई ना जलाएं बेहतर फसल अवशेष प्रबंधन के उपाय अपनायें

कृषि विज्ञान केंद्र सिवनी की वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. शेखर सिंह बघेल ने किसानों से अपील की है कि वह पराली माटी के लिए सोना है, क्योंकि फसल अवशेषों को बेहतर प्रबंधन हेतु वैज्ञानिकों ने शोध द्वारा नवीनतम खोज कर लिया है। अतः फसलों के अवशेष जो धरती माता के प्रमुख आहार हैं इन्हें कृषि यंत्रों के माध्यम से मिट्टी में मिला सकते हैं इसके लिए मल्चर, रिवर्सिबल फ्लो, रोटावेटर का उपयोग किया जा सकता है। किसान भाई स्ट्रा चोपर, हे रैक एवं स्ट्रा बेलर का प्रयोग करके फसल अवशेषों की गांठे या बंडल बनाकर अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही हमारे किसान भाई सुपर एसएमएस के द्वारा फसल अवशेषों को भूसा के रूप में परिवर्तित कर पशुओं के आहार के लिए तैयार कर रखा जा सकता है इसके साथ ही कृषक जीरो टिलेज और सीड कम फर्टिलाइजर ड्रिल, हैप्पी सीडर द्वारा बुवाई कर फसल अवशेष का कारगर प्रबंधन कर सकते हैं। इसके साथ ही फसल अवशेषों को एक स्थान पर एकत्र कर जवाहर जैव विघटक (डीकंपोजर) का प्रयोग कर बेहतरीन खाद बनाकर जैविक एवं प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर हो सकते हैं क्योंकि भूमि में उपस्थित असंख्य सूक्ष्मजीवों का भोजन यह फसल अवशेष है। इनका सही एवं बेहतर प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति व स्वास्थ्य को सुधार कर सकते हैंफ पर्यावरण प्रदूषण कम करने के साथ ही पौधों के लिए प्राकृतिक रूप से पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढाया जा सकता है।

कृषि विज्ञान केंद्र सिवनी की वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डॉ. शेखर सिंह बघेल ने बताया कि वर्तमान में गेहूं व चना फसलों की कटाई का कार्य प्रारंभ है। ऐसे समय में कृषक भाई पराली को समस्या मान कर जला देते है, परिणाम स्वरुप जन-धन, जैवविविधता एंव पर्यावरण को भारी नुकसान होता है।, फसल अवशेषों को जलाने से ग्रीन हाउस गैसें मीथेन, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, नाइट्रोजन आदि का उर्त्सजन बढता है। जिससे ग्लोबलवार्मिंग व पर्यावरण प्रदूषण बढता है।, मृदा के भौतिक गुणों मृदा ताप बढना, मृदा का सख्त व सघन होना व मृदा की जलधारण क्षमता आदि प्रभावित होती हैं।, मृदा को उपजाऊ बनाने में सहायक नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटास, सल्फर आदि पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं।, मृदा में उपस्थित केचुयें, मकडी, मित्र कीट व सूक्ष्म जीव जो अधिकतर 15 सेमी. तक की परत मे सक्रिय होते हैं, नष्ट हो जाते हैं।, फसल अवशेषों को पशु चारे में प्रयोग किया जाता है। जलाने पर इसकी कमी हो जाती है। फसल अवशेषों को खेत में मिलाने से फसलों में कार्बनिक पदार्थों की उपलब्धता बढ जाती है।, मृदा के भौतिक गुण जैसे मृदा ताप व कठोरता में कमी आती है तथा मृदा की जलधारण क्षमता बढ जाती है, मृदा में पोषक तत्वों की उपलब्धता, विद्युत चालकता व मृदा पी-एच मान में सुधार होता है, मृदा में खरपतवार अंकुरण व उनके बढबार में कमी के साथ फसल उत्पादकता में वृद्धि होती है, खेत में जैवविविधता बनी रहती है। फसल अवशेष प्रबंधन हेतु कृषक फसल की कटाई के बाद अवशेषों को 20 से 25 कि. ग्राम नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर की दर से छिडक कर उसे रोटावेटर या कल्टीवेटर से अच्छी तरह से मिला देते हैं। इससे एक माह में अवशेष सडकर आगामी फसल को पोषक तत्वों के रूप में उपलब्ध हो जाते हैं।, कटाई के बाद फसल अवशेषों एक जगह गढ्ढे में इकठ्ठा करके कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट बनायी जा सकती है।, मशरूम उत्पादन में इसका उपयोग कर सकते हैं।, बोर्ड, रफ कागज बनाने, पैकेजिंग मैटीरियल व एथेनाल बनाने के कच्चे माल के रूप में इसका उपयोग किया जा सकता है।

(साई फीचर्स)