खाद्य पदार्थों विशेषकर मसालों की जांच प्रक्रियाओं पर सवालिया निशान लगना है लाजिमी . . .

लिमटी की लालटेन 637

क्या वाकई है एमडीएच व एवरेस्ट के मसालों से कैंसर का खतरा!

(लिमटी खरे)

भारत में आदि अनादि काल से प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाले मसालों का उपयोग न केवल भोजन को स्वादिष्ट बनाने वरन अनेक बीमारियों से बचाव के लिए भी लगातार ही किया जाता रहा है। मसालों के व्यवसायिक उपयोग से लाभ कमाने की अंधी दौड़ ने इनमें मिलावट भी आरंभ कर दी है। सत्तर अस्सी के दशक में चने में कंकड़, पिसी धनिया में घोड़े की लीद आदि मिलाने की कहानियां जमकर मशहूर हुआ करती थीं। उस वक्त डब्बा बंद मसालों का चलन नहीं था। लोग घरों में ही धनिया, मिर्च, सोंठ, हल्दी आदि अनेक तरह के मसालों को धोकर सुखाकर पीसकर साल भर के लिए भण्डारित कर लिया करते थे। आज के समय में तो बीस ग्राम से लेकर दस बीस किलो तक के डब्बा बंद मसाले बाजार में सरलता से उपलब्ध हैं। इन मसालों की गुणवत्ता कितनी है यह कह पाना मुश्किल ही है।

मीडिया में चल रही खबरों पर अगर यकीन किया जाए तो सिंगापुर और हांगकांग में एमडीएच और एवरेस्ट जैसे देश के नामी गिरामी मसाला किंग कहे जाने वाले ब्रांड्स को बैन कर दिया है। कंपनी कह रही है कि बैन नहीं किया गया है। बैन किया गया है अथवा नहीं यह बात तो एमडीएच और एवरेस्ट कंपनी के कर्ताधर्ता जाने या सरकार, पर एक बात तो तय है कि इस तरह की कवायद और इसके बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चलने वाली खबरों के चलते भारतीय मसालों की साख पर एमडीएच और एवरेस्ट जैसी कंपनियों ने बट्टा लगाने का प्रयास इसे माना जा सकता है, क्योंकि भारत को विश्व में सबसे बड़ा मसाला उत्पदाक, उपभोक्ता, निर्यातक आदि माना जाता है।

राहत की बात मानी जा सकती है कि एमडीएच और एवरेस्ट जैसी कंपनियों के उत्पादों पर दो देशों के द्वारा कथित तौर पर प्रतिबंध लगाने के बाद भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय के द्वारा हांगकांग और सिंगापुर से इस मामले की विस्त्रत रिपोर्ट और वहां के खाद्य सुरक्षा नियामकों से विवरण की मांग की है। इसके पहले भी वैश्विक स्तर पर कुछ कंपनियों के खिलाफ कथित तौर पर शिकायतें प्रकाश में आती रहीं, पर अब नौबत अगर प्रतिबंध तक जा पहुंची हो तो इसे पानी सर के ऊपर तक पहुंचना माना जा सकता है।

खबरों के अनुसार एमडीएच और एवरेस्ट कंपनियों के कुछ मसालों में तय अथवा स्वीकार्य सीमा से अधिक मात्रा में एथिलीन ऑक्साईड नामक कीटनाशक पाया गया है, जिसे कैंसर के लिए जवाबदेह माना जाता है। सवाल यही खड़ा हुआ है कि क्या एमडीएच और एवरेस्ट जैसी कंपनियों ने मुनाफा कमाने के लिए तय मानकों, गुणवत्ता आदि को बलाए ताक रख दिया था! अगर कंपनियां मनमानी कर रहीं थीं तो केंद्र सरकार का खाद्य, कृषि, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय सहित खाद्य सुरक्षा नियामक एफएसएसएआई जैसी जिम्मेदार संस्थाएं और इनमें तैनात मोटी पगार लेने वाले सरकारी नुमाईंदे आखिर क्या कर रहे थे।

जानकारों के अनुसार एथिलीन ऑक्साइड एक रसायन है, यह एक कैंसर पैदा करने वाला कैमिकल है, जो स्तन कैंसर का खतरा बढ़ा सकता है। इससे मानव में डीएनए, मस्तिष्क और कोशिकाओं पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। यह कीटाणुनाशक और स्टरलाइजिंग एजेंट के रूप में भी काम आता हैं। अमेरिका की नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट की जानकारी के मुताबिक, एथिलीन ऑक्साइड से डीएनए को नुकसान पहुंचाता है. यह कैंसर पैदा करने के लिए भी जिम्मेदार ह।. एथिलीन ऑक्साइड इंसानों के शरीर में सांस के मार्ग से पहुंच सकता है।

चूंकि यह पूरा का पूरा मामला भारत के प्राचीन मसालों से जुड़ा हुआ है इसलिए भारत सरकार को भारतीय मसालों की साख बचाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए। इस मामले में एमडीएच और एवरेस्ट जैसी कंपनियों से सारे दस्तावेज, उनकी प्रयोगशालाओं के रिकार्ड आदि तत्काल ही सीज कर लेना चाहिए। इसके अलावा एमडीएच और एवरेस्ट से न केवल जवाब तलब किया जाना चाहिए, वरन उसे सार्वजनिक भी किया जाना चाहिए। इसके अलावा सिंगापुर और हांगकांग की सरकारों से यह जानकारी भी समय सीमा में बुलाना चाहिए कि किस आधार पर इन कंपनियों के मसालों को उनकी सरकारों ने अपने देश में प्रतिबंधित किया है। सरकार को इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि कहीं भारतीय मसालों की बढ़ती मांग को देखते हुए भारतीय मसालों को बदनाम करने के लिए तो इस तरह की कवायद हांगकांग और सिंगापुर के द्वारा नहीं की गई है।

इस आलेख को वीडियो में देखने के लिए क्लिक कीजिए . . .

वैसे इन संभावनाओं को भी सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है कि देश में अब कीटनाशकों का उपयोग तय सीमा से बहुत अधिक मात्रा में होने लगा है। फसलों, पशु पक्षियों, मवेशियों यहां तक कि इंसानों पर भी इसका प्रभाव साफ दिखाई देने लगा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि मसालों की खेती या इन्हें उगाने के दौरान कीटनाशकों की मात्रा अधिक रहती हो, जिसके कारण इस तरह की स्थितियों से कंपनियों को दो चार होना पड़ रहा हो।

वहीं इन कंपनियों की ओर से किए जाने वाले दावों के अनुसार किसी भी देश में इन कंपनियों के मसालों को प्रतिबंधित नहीं किया गया है। कंपनी के अनुसार उनके सभी उत्पाद पूरी तरह सुरक्षित और उच्च गुणवत्ता वाले हैं। सिंगापुर और हांगकांग में कंपनी के उत्पादों पर लगाए गए प्रतिबंध के संबंध में कंपनी का कहना है कि उनके पांच दर्जन अर्थात 60 उत्पादों में सिर्फ एक उत्पाद को जांच के लिए रखा गया है। कंपनी के अनुसार यह मानक प्रक्रिया का हिस्सा है इसे प्रतिबंध कहना उचित नहीं होगा।

देश में अजीब तंत्र है। त्यौहारों पर बिकने वाली मिठाई, नमकीन एवं खाद्य पदार्थों के नमूने लिए जाते हैं। इसके बाद बेधड़क खाद्य सामग्री बिकती है। खाद्य सामग्री गुणवत्ता युक्त है अथवा गुणवत्ता विहीन इस बात का पता नमूना लेने के साल भर बाद आई रिपोर्ट में पता चल पाता है। इसी तरह सरकारी अस्पतालों में मरीजों के लिए निशुल्क वितरण के लिए आने वाली दवाओं की गुणवत्ता का पता तब चल पाता है जब उस लाट के बाद दो तीन लाट और मरीजों के बीच बट चुके होते हैं।

अगर उत्पाद लोकप्रिय हांेंगे तो उनकी शिकायतों के होने की संभावनाएं उतनी ही अधिक बढ़ जाती है। प्रतिस्पर्धा व्यवसाय का अंग माना जाता है। इस लिहाज से भारत सरकार को चाहिए कि वह इस पूरे मामले को बहुत ही संवेदनशीलता के साथ संभाले। इसे साथ ही इन संभावनाओं को भी सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता है कि मसालों में तय मात्रा से अधिक मात्रा में कीटनाशक डाले गए हैं। इस लिहाज से सरकार को चाहिए कि व्यवसाय को बढ़ावा देने के नाम पर गुणवत्ता से समझौता नहीं करने दिया जाए। भारत सरकार को चाहिए कि वह खाद्य पदार्थों के लिए निर्धारित किए गए मानकों को एक बार फिर आज के हिसाब से संशोधित करे, ताकि देश के अंदर और देश के बाहर भी लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने से बचाया जा सके।

(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)

(साई फीचर्स)