कोविड की वैक्सीन लगी 2021 में, तीन साल बाद भी उसके दुष्प्रभावों की जांच की चिंता क्यों नहीं की भारत सरकार ने!

लिमटी की लालटेन 641

कोविशील्ड के खिलाफ बन रहा माहौल, कहीं एंटी कोविशील्ड वैक्सीन हेतु उपजाऊ भूमि तो नहीं हो रही तैयार!

(लिमटी खरे)

कोविड जैसी महामारी का नाम लेते ही रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा होना स्वाभाविक है। कोविड काल में जिन्होंने अपने परिजनों को खोया है उनकी पीड़ा तो समझी जा सकती है, पर जो मौत को परास्त कर वापस लौटे हैं उनके मन में किस तरह का अनुभव हो रहा होगा, वे क्या महसूस कर रहे होंगे और आज जब कोविड की वेक्सीन के दुष्प्रभावों को लेकर सोशल मीडिया रंग चुका है तब इन लोगों की मानसिक स्थिति क्या हो रही होगी जिन्होंने बहुत ही भरोसे के साथ वैक्सीन के एक दो नहीं वरन तीन तीन डोज लगवाए थे। भारत में कुल 175 करोड़ टीके लगाए गए हैं।

यद्यपि अभी तक आधिकारिक तौर पर इस बात की पुष्टि नहीं हुई है कि कोविड काल में कोविशील्ड नामक वेक्सीन को लगाने के बाद उसके दुष्प्रभाव क्या हैं, पर इस वेक्सीन को बनाने वाली इंग्लैण्ड की फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेकाका मानना है कि उसके द्वारा निर्मित वेक्सीन के दुष्प्रभाव या साईड इफेक्ट हो सकते हैं। 29 अप्रैल को ब्रिटेन के उच्च न्यायालय में दिए गए दस्तावेजों में एस्ट्राजेनिका नामक कंपनी ने माना है कि उसकी वेक्सीन से थ्रॅम्बोसिस, थ्रॉम्बोसाईटापेनिया सिंड्रोम अर्थात टीटीएस हो सकता है। टीटीएस एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर में न केवल खून के थक्के जम सकते वरन प्लेटलेट्स की तादाद घट भी सकती है। इस तरह की स्थितियों में ब्रेन हेमरेज या हार्ट अटैक की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। कहा जा रहा है कि दस लाख में एक व्यक्ति में यह देखने को मिल सकता है। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि फाइजर, मोडेरना, और जॉनसन एंड जॉनसन जैसी कंपनियों के वैक्सीन के दुष्प्रभाव की पहले ही पुष्टि हो चुकी है।

इसका सबसे खतरनाक पहलू यह माना जा सकता है कि कोविड काल में जब चिकित्सकों को यह पता तक नहीं था कि यह बीमारी क्या है, इसके सटीक लक्षण किस तरह के हैं, इसका सही व प्रभावी ईलाज क्या है, तब एस्ट्राजेनेका कंपनी के फार्मूले पर देश में सीरम इंस्टीट्यूट के द्वारा कोविशील्ड नामक वैक्सीन का निर्माण किया गया था। देश में सबसे ज्यादा लगने वाली यही वेक्सीन थी। इससे भी ज्यादा विचारणीय बात यह है कि भारत सरकार के द्वारा कोविड वेक्सीन लगाए जाने के लिए परोक्ष तौर पर दबाव भी बनाया गया था। कोविड वेक्सीनेशन के प्रमाण पत्र के बिना न तो आप कहीं प्रवेश करने के अधिकारी थे और न ही सार्वजनिक परिवहन के अंग ही बनने के पात्र थे। इसके अलावा सोशल मीडिया पर यह प्रचारित हो रहा था कि अगर समय सीमा में वैक्सीन नहीं लगवाई गई तो तय समय सीमा के बाद इस वैक्सीन को लगाए जाने का भारी भरकम शुल्क अदा करना होगा। यही कारण था कि लोगों ने निशुल्क टीके लगवाना ही मुनासिब समझा।

कोविड काल में लगे लाक डॉऊन की समाप्ति के बाद जम दिनचर्या सामान्य होना आरंभ हुई तब उसके बाद कोविड के दौरान स्थिति परिस्थितियों को संभालने, व्यापक स्तर पर वेक्सीनेशन करवाने के लिए सोशल मीडिया और कुछ मीडिया संस्थानों में सरकार की जमकर पीठ ठोंकी जाती रही। कोविड काल का भयानक मंजर सभी के सामने रहा है। लगातार ही जलती चिताएं, श्मशान में जगह की कमी, लोगों में भय का माहौल, सरकारी अस्पतालों में अराजकता, निजि अस्पतालों में लूट न जाने क्या क्या देखने को मिला इस कोविड काल में। इस दौर में सत्ता में बैठे लोगों ने जमकर मनमानी की। जिलों में प्रशासनिक मुखियों और स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों के द्वारा की गई मुगलई किसी से छिपी नहीं है। कोविड काल के बाद हृदयाघात से जितनी मौतें हुईं हैं, उन्हें सामान्य तौर पर दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत की संज्ञा दे दी गई। यहां तक कि कोविड काल में अस्पतालों में हुई मौतों में अधिकांश में हृदय गति रूकने से हुई मौत ही निरूपित किया गया था।

इंग्लैण्ड के प्रतिष्ठित अखबार द टेलीग्राफ की एक अन्य खबर के अनुसार एस्ट्राजेनेका के द्वारा बनाई गई कोविड वेक्सीन के बाजार में आने के कुछ समय बाद ही वहां के वैज्ञानिकों ने इस खतरे को पूरी तरह न केवल भांपा वरन इस वैक्सीन के स्थान पर दूसरी वैक्सीन लगाए जाने की तगड़ी अनुशंसा भी कर दी। इसका नतीजा यह हुआ कि कोविशील्ड का उपयोग ब्रिटेन में बहुत ही कम हुआ। ब्रिटेन में मुआवजे के लिए प्रकरण वहां के न्यायालय में विचाराधीन है। उम्मीद है कि इंग्लैण्ड के लोगों को न्याय मिल जाएगा, पर भारत में पीड़ितों को क्या मुआवजा मिलने के मार्ग प्रशस्त हो पाएंगे, क्योंकि सरकार के द्वारा कोविड पीड़ितों के लिए बने पीएम केयर फंड की जानकारी देने से पहले ही इंकार किया जा चुका है।

इसके साथ ही एक और खबर आई कि कोविड 19 की इस वैक्सीन के दुष्प्रभावों की बात सामने आने के उपरांत कोविन की वेबसाईट पर डाले गए वैक्सीनेशन के प्रमाणपत्रों पर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फोटो को हटा दिया गया है। यह खबर सोशल मीडिया की सुर्खियां बनीं, उसके बाद मीडिया में भी यह खबर आई। पहले तो कोविड वैक्सीन को सरकार ने अपनी बड़ी उपलब्धि निरूपित किया था पर अब उसे यह शायद नुकसान का ही सौदा प्रतीत होता नजर आ रहा है।

कोविड महामारी के दौरान मची अफरातफरी, आनन फानन किया गया लॉक डाऊन, प्रशासनिक सख्ती आदि के चलते जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर निरंकुशता पूरी तरह हावी हो गई थी। इस दौरान जिला स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक अनेक तक के खेल भी हुए। लोगों ने इस आपदा को अवसर में तब्दील करने से भी गुरेज नहीं किया। सत्ताधारियों और दवा के कारोबारियों के बीच एक अलग तरह की सांठगांठ की बू भी आती दिखी। धीरे धीरे कलई खुली पर कमजोर विपक्ष और पूरी तरह सेट मीडिया के चलते यह सब मानो कुछ दब ही गया।

देश में कोविशील्ड की निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट के कर्ताधर्ता अदार पूनावाला ने भी सरकारी स्तर पर बेची इस कोविशील्ड वैक्सीन में मोटा मुनाफा कमाया। अदार पूनावाला ने लंदन में 14 सौ करोड़ रूपए का एक भव्य बंगला खरीदा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ खिची उनकी तस्वीरें भी जमकर वायरल हुईं। अदार पूनावाला की कंपनी विश्व भर में मशहूर हुई और अगले ही साल 2022 में उन्होंने 50 करोड़ रूपए का चंदा दिया, इसके एक पखवाड़े बाद ढाई करोड़ रूपए चंदे के रूप में दिए गए। 52 करोड़ 50 लाख रूपए की रकम इस कंपनी ने चुनावी चंदे के रूप में भाजपा को सौंप दी बताई जा रही है। एक जानकारी के अनुसार एक तारीख को 40 करोड़, 02 अगस्त को 10 करोड़ और 17 अगस्त को ढाई करोड़ इस तरह सीरम कंपनी ने अगस्त 2022 में प्रूडेंट ट्रस्ट को 52 करोड़ 50 लाख रूपए दिए। प्रूडेंट के द्वारा 18 अगस्त को ही यह पैसा भाजपा के खाते में जमा करवा दिया गया।

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कोविड काल में लगाई जाने वाली वैक्सीन को मोबाईल नंबर से भी संबद्ध किया गया ताकि यह प्रमाण लोग अपने साथ लेकर घूम सकें। सड़क मार्ग, हवाई मार्ग, रेल मार्ग से अगर आप सफर कर रहे हैं तो आपको सार्वजनिक परिवहन में प्रवेश तभी मिल पाता था जब आप वेक्सीनेटेड होने का प्रमाण या तो कागज पर दिखाते या मोबाईल पर, इस तरह सरकार ने हर नागरिक को इसके लिए परोक्ष तौर पर बाध्य भी किया। कोविड काल में या उसके बाद जिस तरह से लोगों ने दम तोड़ा वह बात सभी के सामने है, बावजूद इसके विपक्ष सिर्फ रस्म अदायगी के लिए चीत्कार करता दिखा, इसका लाभ सत्ताधारियों ने उठाया और इस अनजान बीमारी की रोकथाम के लिए निशुल्क टीका लगाए जाने का यह लाखों मौतों के तांडव के बाद भी बखूबी ले ही लिया।

सोशल मीडिया पर एक चर्चा और चल पड़ी है कि कोविशील्ड नामक वैक्सीन के दुष्प्रभावों की बात सामने आते ही अब एंटी कोविशील्ड नाम की वैक्सीन बाजार में न आ जाए। इसके लिए कहीं सार्वजनिक परिवहन के उपयोग के लिए कम से कम दो, तीन या चार डोज लगाना अनिवार्य न कर दिया जाए। हो सकता है यह बात मजाक में ही चल रही हो पर बात में गंभीरता का पुट भी कहीं न कहीं प्रतीत होता दिखता है।

देश में विपक्ष नाममात्र के लिए ही रह गया है। एक समय था जब सरकार के खिलाफ विपक्ष जब सड़कों पर उतरता था तब सरकारें हिल जाया करतीं थीं। दो तीन दशकों से बाहुबलियों, धनाड्य लोगों, व्यापारियों, गुण्डे बदमाशों, जरायमपेशा लोगों ने अपने अपने धंधे बचाने के लिए राजनीति की ओर रूख किया है, तब से विपक्ष की आवाज गले से बाहर निकलती नहीं दिखती है। वरना 2021 में लगाई गई कोविड वैक्सीन के संबंध में विपक्ष ने अब तक सरकार को इसलिए क्यों नहीं हिला दिया कि उस समय तो आनन फानन वैक्सीन लगवा दी गई, पर इसके दूरगामी अथवा नजदीकि दुष्प्रभावों की जांच क्यों नहीं कराई जा रही है। देश में उन्नत तकनीक की प्रयोगशालाएं हैं, वैज्ञानिकों की फौज है, फिर क्या कारण है कि ब्रिटेन में इस मामले को अदालत में ले जाने के बाद भारत में कोविशील्ड नामक वैक्सीन को लेकर सियासी दलों विशेषकर विपक्ष की चेतना जागी। 2021 के बाद संसद सत्र आहूत होते रहे पर विपक्ष के द्वारा इस तरह के संवेदनशील मसले जो कि देश की सवा करोड़ से ज्यादा जनता के स्वास्थ्य से सीधा जुड़ा हुआ था पर एक बार भी सक्षम मंच लोकसभा या राज्य सभा में आवाज बुलंद करना मुनासिब नहीं समझा की कोविड के दौरान लगाई गई वैक्सीन के दुष्प्रभावों की न केवल जांच की जाए वरन समय सीमा में जांच पूरी की जाकर उसकी रिपोर्ट सदन के माध्यम से जनता के समक्ष भी रखी जाए। पर क्या किया जा सकता है जब सारे कुंए में ही भांग घुली हुई हो तब . . .

(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)

(साई फीचर्स)