हर साल रिश्वत, काला धन आदि के मामले मीडिया की सुर्खियां बनते हैं, फिर भी जहां तहां छापों में कैसे उगलते हैं लॉकर इस काले धन को . . .

लिमटी की लालटेन 645

अनेक अभियानों के बाद भ्रष्टाचारियों की तिजोरियां कहां से उगल रहीं है लाखों करोड़ रूपए!

(लिमटी खरे)

आजादी के बाद सियासी नेता हों, सरकारी नुमाईंदे हों, ठेकेदार हों अथवा अन्य कोई भी हो, हर किसी के अंदर ईमानदारी, शुचिता, नैतिकता कूट कूट कर भरी दिखाई देती थी। हां, उस दौर में कालाबाजारी करने वाले व्यापारियों की खबरें बहुत आम हुआ करती थीं। आजादी के पहले का समय हो या आजादी के बाद का दौर, अगर आप उस दौर में रूपहले पर्दे पर बनी फिल्में देखेंगे तो आपको बाकी सब तो ईमानदार छवि वाले दिखेंगे पर कालाबाजारी करने वाले अलग से चित्रित किए जाते थे। इसका तातपर्य यही लगाया जा सकता है कि कालाबाजारी करके काला धन कमाने की पिपासा बहुत पहले से ही विद्यमान है।

कालेधन के खिलाफ जमकर अभियान चलते आए हैं। काला धन जप्त करने के लिए बने विभागों के नाम, काम, दायरे बदलते रहे पर काला धन बरामद भी होता रहा। जांच एजेंसियां भी पूरी तरह मुस्तैद ही नजर आती हैं। इन सारी कवायदों के बीच काला धन को रोक पाना वास्तव में एक बहुत बड़ी चुनौति से कम प्रतीत नहीं होता है। आए दिन मीडिया में काला धन बरामद किए जाने की सुर्खियां दिखाई दे जाती हैं। काला धन भी जिस तादाद में जप्त होता है और उस धन को गिनने के लिए नोट गिनने वाली मशीनें अगर लगाना पड़े तो समझा जा सकता है कि सरकारी कार्यालयों में बिना चढ़ावे के कुछ भी नहीं होता है।

गलत, गुणवत्ता विहीन, नियम विरूद्ध काम होने की जानकारी अगर किसी को मिले और वह इसकी शिकायत संबंधित विभाग के आला अधिकारी को करे, तो यकीन मानिए उसकी एड़ियां घिस जाएंगी या जिसके खिलाफ आपने शिकायत की है वह सेवानिवृत हो जाएगा, पर उसका बाल भी बांका नहीं हो पाएगा। देश के कमोबेश हर जिले में इस तरह के उदहारण मिल जाएंगे जिसमें शिकायत करने के बाद भी कार्यवाही सिफर ही नजर आती है। देश के हृदय प्रदेश में सीएम हेल्प लाईन में भ्रष्टाचार की शिकायतें साल दर साल चलती रहती हैं और जिलाधिकारी हर सप्ताह समय सीमा की बैठक में सीएम हेल्प लाईन में 100 दिन से ज्यादा लंबित शिकायतों पर कार्यवाही करने के कठोर निर्देशजारी करते नजर आते हैं। सुखराम के अलावा और किसी मंत्री का उदहारण नहीं मिलता जिसे भ्रष्टाचार के आरोप में सजा हुई हो।

हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय अर्थात ईडी के द्वारा झारखण्ड की राजधानी रांची में सूबे के एक मंत्री आलमगीर आलम के निज सचिव के घरेलू सहायक के घर पर छापेमारी कर पेंतीस करोड़ रूपए से अधिक की रकम की जप्ती की खबर वायरल हुई है। खबर के अनुसार झारखण्ड ग्रामीण विकास विभाग के मुख्य अभियंता से जुड़े एक मामले में की गई छापेमारी में यह सब हुआ है। अब आप समझ सकते हैं कि मंत्री के निज सचिव के घर से नहीं, वरन मंत्री के निज सचिव के घरेलू सहायक के घर से यह सब बरामद हुआ है। इतनी भारी भरकम राशि एक घरेलू सहायक के घर आखिर कैसे पहुंची! जाहिर है घरेलू सहायक को तो इस पूरे मामले का ककहरा भी नहीं पता होगा। वह तो बस एक इंस्टूमेंट मात्र ही रहा होगा। है न आश्चर्य की बात, अब हो सकता है कि दस पांच सालों तक यह केस चलेगा फिर घरेलू सहायक को बली का बकरा बनाकर बाकी सब मौज करेंगे। यहां मजे की बात तो यह है कि गरीबी के आंकड़ों में नीति आयोग के आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो झारखण्ड भारत के सबसे अधिक गरीब तीन राज्यों में शामिल है।

रांची राजधानी है झारखण्ड की, जिसे अस्तित्व में आए महज 23 साल ही हुए हैं। इस दौरान दस सरकारों ने इस सूबे पर राज किया है। इन 23 साल में सूबे के दो निजामों को भ्रष्टाचार के आरोप में अपना पद तजना भी पड़ा था। इनमें से एक पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को तीन साल की सजा भी सुनाई गई थी। इसे महज संयोग कहा जाए या कुछ और कि जिस समय ईडी के द्वारा रांची में 30 करोड़ रूपए की बरामदगी की बात फिजा में तैर रही थी, उसी वक्त देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में शराब नीति में हुए कथित घोटालों के संबंध में गिरफ्तार किए गए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जमानत याचिका पर सुनवाई जारी थी।

साल दर साल भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाए जाने के दावे केंद्र और प्रदेश सरकारों के द्वारा किए जाते रहे हैं। भ्रष्टाचार और काला धन समाप्त करने के लिए बाकायदा अभियान चलाए जाते हैं और इसके खात्मे के लिए हर स्तर पर कार्यवाही की जाती है। तीन चार दशकों में इस तरह की कार्यवाहियां जमकर हुई हैं। इसे लेकर तरह तरह के वायदे भी किए जाते रहे हैं, पर आखिर ये सारी कार्यवाहियां बीच में कहां अटक जाती हैं, जो हर साल किसी न किसी के घर की तिजोरी करोड़ों अरबों रूपए उगलती नजर आती है।

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एक बात समझ से परे ही नजर आती है कि साल दर साल जांच एजेंसियों के द्वारा छापेमारी की जा रही है, सघन कार्यवाही के जरिए भारी भरकम रकम भी जप्त की जा रही है फिर छप्पर फाड़कर इतनी भारी तादाद में करोड़ों अरबों रूपए आखिर आ कहां से रहे हैं! मतलब साफ है कि काले धन पर नियंत्रण के लिए बनाए गए कायदे कानून कहीं न कहीं या तो लचीले ही हैं या ईडी, सीबीआई आदि जांच एजेंसियों पर विपक्ष के द्वारा भाई भतीजावाद अपनाने एवं सरकार के द्वारा इनका दुरूपयोग करने के जो आरोप लगाए जाते रहे है वे आधारहीन नहीं ही हैं!

किसी भी राज्य के परिवहन विभाग के कार्यालय में चले जाएं, अस्पताल हो या नगर पालिका, अथवा राजस्व कार्यालय, हर जगह सिक्कों की खनक के बिना काम नहीं होता है। अंतर्राज्यीय परिवहन जांच चौकियों में तो सीसीटीवी कैमरों के सामने खुलेआम रिश्वत का खेल होता है। परिहवन जांच चौकियां ठेके पर दिए जाने तक की खबरें हैं, पर इनके खिलाफ कोई कार्यवाही आज तक हुई हो यह याद नहीं पड़ता।

एक बार समझ से परे ही मानी जा सकती है कि भ्रष्टाचार के जरिए काला धन कमाने के लिए जिस तरह के कानून बनाए गए हैं, उन कानूनों या कार्यवाहियों का भय लोगों के अंदर नहीं रह गया है। भ्रष्ट आचरण में लिप्त नेताओं, सरकारी नुमाईंदों आदि को लाखों, करोड़ों यहां तक कि अरबों रूपए अपने घरों में छिपाकर रखने में कोई गुरेज ही नजर नहं आता है, उनके अंदर किसी तरह का कोई खौफ ही नहीं रह गया है। कहने को सरकारी एजेंसीयों के द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाई हुई है ताकि भ्रष्टाचार और काले धन की समस्या पूरी तरह समाप्त हो सके, किन्तु हालात देखकर इस तरह की कार्यवाहियां पर्याप्त नहीं मानी जा सकती हैं। इसके लिए केंद्र और सूबाई सरकारों को चाहिए कि वे कठोर कानून बनाएं पर यह बात भी उतनी ही सच है, जितनी दिन और रात, कि बिना उच्च स्तरीय राजनैतिक संरक्षण के इस तरह भ्रष्टाचार करके करोड़ों कमाना और सीना ठोंककर उसे अपने घर में रखना संभव नहीं है, इसलिए दो तीन दशकों से मजाक में ही सही लोगों के द्वारा भ्रष्टाचारको शिष्टाचारकी संज्ञा दी जाने लगी है। इसलिए अब तो यही लगता है कि भ्रष्टाचार और काले धन की समस्या को जड़ से समाप्त होने में अभी बहुत ज्यादा समय लगने वाला है ….

(लेखक समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के संपादक हैं.)

(साई फीचर्स)