सृजनशील वे चित्रकार हैं,
क्या क्या नहीं उकेरे हैं?
‘कर‘ मन का अनुसरण
चित्रफलक को घेरे है,
चित्र सृजन का शौक ही ऐसा,
वक्त का वे न भान करें
यावत् कार्य सिद्ध न होवे
तावत् न आराम करें,
भिन्न-भिन्न कूँची रखते हैं,
रखते रंगों का सन्दूक
“अनिल” अजब-गजब के रचनाधर्मी,
बस रंगों की ही रखतें भूख
ज्यों का त्यों हो चित्र बनाना,
या कि कोई नई कल्पना
भौंचक्के रह जाते सब जन,
देखकर “हीना” की चित्र-सर्जना
कलयुग के कैनवस पर “यूसुफ़”, “लाडो”, “भूरी” जैसे बिंदुवादी कलाकार उभरे हैं
राम छटपार में आज “सुलेमान”, जैसे हुसैन उतरे हैं
“भूप्रेंद्र”, “विम्मी” वॉन गॉग बन मटमैले रंगों से जीवंतता झोक दिए
रंगों की पिचकारी से “अनूप”, “अंबरिश” नव नजरिए को
एक नया सोच दिए,
उंगलियों कलाइयों का खेल चला
“सुनील” सर्वेसर्वा बन जाते हैं
सौन्दर्य भाव से युक्त निरंकुश
रेखा से आग लगाते हैं
सब दर्शक को अचंभित कर
संपूर्ण वाहवाही भर ले जाते हैं,
“रबी”, “राजीव”अपने कल से अंजान बने,
आज को अनुभवी बनाते हैं
मौन सघन भावनाएं समेटे
“सुरेश” , “उदय” प्रेरणाओं के रूप कहलाते हैं
“मृदुला” के रंगों के कहानी की अद्भुत यह फनकारी हैं
जब तक है पटल में रंग “अनीता”, “लक्की” का सृजन जारी है,
“सोनम” के चित्रों की परम्परा यह
इसकी उम्र पुरानी है
प्रतिबिम्ब पेटिका कर्षित फोटो,
“कृति”, “सुप्रिया” के चित्रों के आगे पानी है
राजा-रंक भले मानुष
सब करते “पूनम” का मान है
“संजय”, “हरेन” की कलाकृति ही
उनका असली सम्मान है।
(साई फीचर्स)