देवाधिदेव महादेव का सबसे प्रिय है श्रावण माह

वर्तमान समय में विक्रम संवत 2081 एवं अंग्रेजी साल 2024 का श्रावण माह चल रहा है। श्रावण मास भगवान भोलेनाथ का प्रिय माह माना जाता है। इस माह में अगर आप देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव की अराधना करते हैं तो भोलेनाथ बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। अगर आप भोलेनाथ के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में हर हर महादेव जरूर लिखिए।
साल के बारह माहों में से श्रावण का माह देवाधिदेव महादेव का सबसे प्रिय माह माना जाता है। इस महीने में भगवान शिव की अराधना करने से भोलेनाथ बहुत ही जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। वैसे सांसारिक मूल्यों की तलाश के लिए जीवन में शिव तत्व की खोज बहुत आवश्यक है। भगवान शिव को ब्रम्हाण्ड का राजा माना गया है।
हमारे शास्त्रों एवं पुराणों के अनुसार श्रावण माह भगवान शिव एवं माता पार्वती को समर्पित है। भगवान शिव को श्रावण का महीना अत्यंत प्रिय है। आचार्य तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में श्रावण माह के बारे में लिखा है।
हरषे हेतु हेरि हर ही को।
किय भूषन तिय भूषन ती को।।
नाम प्रभाउ जान सिव नीको।
कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।
भगवान शिव सदैव तपस्या, ध्यान व चिंतन के पथ पर चलते हैं। माना जाता है कि इससे उनको शक्ति और ऊर्जा प्राप्त होती है। इस शक्ति के कारण ही वे अभय होते हैं और ऊर्जा के कारण प्रभुत्व की कामना नहीं रहती है। ऊर्जा का विस्तार ही शिव को असीम और अनंत बनाता है। अपने अंदर ऊर्जा के विस्तार के कारण शिव नृत्य करते हैं और खुद के अंदर प्रकृति के विभिन्न शक्ति रूपों को देखकर प्रसन्न होते हैं।
भगवान शिव को सावन या श्रावण का माह बहुत प्रिय है क्योंकि प्रकृति अपने संपूर्ण रस, उन्माद, वैभव और रंगों के साथ अठखेलियां करती है। सावन एक अवसर देता है कि हम अपने अंदर की उर्जा, अंदर निहित शक्तियों की प्रकृति की शक्तियों को बेहतर तरीके से जान लें। हम जन्म लेते हैं, भोजन करते हैं, अध्ययन करते हैं, खेलते कूदते हैं, सीखते हैं और इसके साथ ही हमारा विकास भी होता है। इसे ही प्रकृति माना जा सकता है। हम प्राकृतिक शक्तियों के अधीन हैं। वह हमें बाध्य करती हैं, लेकिन जब हम आध्यात्मिक रूप से जाग जाते हैं, तब हमारा साक्षात्कार इस लोक के राजा देवाधिदेव महादेव भगवान शिव से होता है। इसके लिए संयम, स्वाध्याय, नियंत्रण और ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह सब कुछ हमें तप, ध्यान और चिंतन से ही प्राप्त होगा। माना जाता है कि सावन इसके लिए अनुकूल महीना है। माता पार्वती ने तप और ध्यान के माध्यम से ही भगवान शिव को पाया, इसलिए मनुष्य भी दिव्य प्रकृति और उसके परम सत्य को जानने का अधिकारी है। श्रावण माह भी हमें उस परम सत्य को जानने के लिए आध्यात्मिक स्वतंत्रता का संदेश देता है।
श्रावण माह वर्षा एवं हरियाली का समय होता है और यह अति मनमोहक समय होता है, जो आपके मन को पूरी तरह न केवल प्रफुल्लित करता है वरन उर्जा से भर देता है। श्रावण माह का प्रत्येक दिन महत्वपूर्ण है, लेकिन श्रावण माह में सोमवार का विशेष महत्व है, इसका विशेष फल है। श्रावण माह में भगवान भोलेनाथ का पूजन अर्चन करने तथा जलाभिषेक, रुद्राभिषेक, जप इत्यादि का विशेष फल है। कहा जाता है कि इस महीने में भगवान भोलेनाथ की कृपा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस श्रावण माह में रामचरित मानस एवं राम नाम संकिर्तन का विशेष महत्व है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्रावण के महीने में माता पार्वती ने तपस्या करके भोलेनाथ को प्रसन्न किया था और उन्हें पति रूप में प्राप्त किया था। इसलिए भी भगवान भोले नाथ को यह माह अत्यधिक प्रिय है। दूसरी मान्यता के अनुसार समुद्र मन्थन के समय समुद्र से निकले हलाहल विष को भगवान भोलेनाथ अपने गले में धारण किया, जिससे उनके गले में हो रही जलन को शांत करने के लिए सभी देवताओं ने मिलकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया। इससे उनको उस हलाहल विष के प्रभाव से शांति मिली और वह प्रसन्न हुए। तब से भगवान शिव को जलाभिषेक करने का विशेष महत्व है।
श्री रामचरित मानस में तुलसीदास जी श्रावण माह के विषय में लिखते हैं
बरषा रितु रघुपति भगति, तुलसी सालि सुदास।
रामनाम बर बरन जुग, सावन भादव माह।।
आदि अनादिकाल के वेद पुराणों चली आ रही परंपराओं के अनुसार श्रावण माह में ही समुद्र मंथन से 14 विभिन्न बेशकीमति रत्न प्राप्त हुए थे, जिसमें एक हलाहल विष भी था। इस विष को शिवजी ने अपने गले में स्थापित कर लिया था, जिससे उनका नाम नीलकंठ पड़ा। विष की जलन रोकने के लिए सभी देवताओं ने उन पर गंगा जल डाला।
देखा जाए तो संपूर्ण श्रावण माह ही भगवान शिव की खूबियां से भरा है। महादेव की तरह यह सावन का महीना भी भीषण गर्मी वाले ग्रीष्म काल में तपती धरती को बारिश से तृप्त करता है। जीव-जंतु और प्रकृति का यह सृजन का काल है। सावन का स्वागत करना है तो अपने अंदर से ईष्या, द्वेष, भय, क्रोध और अहंकार को मिटाना होगा। इसके लिए हृदय को निर्मल और पवित्र बनाना होगा। जब हमारे आचरण में सरलता, आनंद, पवित्रता और प्रेम का गुण होगा, तभी प्रकृति में स्थित शिव को देख पाएंगे।
सावन एक तरह से आद्र रूपी रस का माह भी कहा जा सकता है। रसीले फलों के साथ बारिश की फुहार तन-मन को संतुष्ट करती है। यह अगर दिल तक नहीं पहुंच पा रही है, तो इसका तात्पर्य है कि हम शिव तत्व से दूर हैं। ऐसे में इस महीने को यूं ही नहीं जाने देना चाहिए। इस महीने में स्वाध्याय, आत्म चिंतन के जरिए खुद बदलें। बदलाव प्रकृति की विशेषता है। बदलाव ही शिव है। सावन संदेश देता है कि शिव को देखो, जो आशा और जीवन के प्रतीक है। सावन अगर भीतर आया, हरियाली को जब हम स्पर्श करेंगे, तो जीवन में रस आएगा। प्रकृति सावन में रस का भरपूर बौछार कर रही है। हमें उस रस का स्वाद लेना है। इस प्रकार से श्रावण माह भक्ति एवं हरियाली का प्रतीक है।
श्रावण माह में सोमवार व्रत या अन्य व्रत शुरू किया जा सकता है। इस माह में जो व्यक्ति सोमवार को विल्वपत्र अर्थात बेल पत्र एवं दूध-दही, घी, शहद, गन्ने का रस इत्यादि से भोलेनाथ का अभिषेक करता है, भोलेनाथ उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। श्रावण माह में पार्थिव शिव लिंग पूजन का विशेष महत्व होता है। जिन भक्तों को पुत्र की कामना होती है, वो पार्थिव शिव लिंग पूजन करें, शिवार्चन करें और गाय के दूध से अभिषेक करें, इससे उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इसी तरह जो भक्त रोग, शोक से पीड़ित हों, वह भगवान भोलेनाथ को गंगाजल एवं कुश मिश्रित जल से अभिषेक करें। सुहागिन स्त्रियां अपने पति एवं पुत्र की लंबी आयु के लिए व्रत रख सकती हैं। कुंवारी कन्याएं अच्छे पति को प्राप्त करने के लिए सोमवार व्रत करती हैं। जो भक्त जिस कामना को लेकर भोलेनाथ के दरबार में जाता है और श्रद्धा से पूजन-पाठ करता है, उसकी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। ज्योतिष के दृष्टिकोण से श्रावण माह में सूर्य राशि परिवर्तन करते हैं, जिसका प्रभाव सभी 12 राशियों पर पड़ता है। श्रावण माह में भोलेनाथ और माता जी की असीम अनुकंपा रहती है।
इस माह में अगर आप देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव की अराधना करते हैं तो भोलेनाथ बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। अगर आप भोलेनाथ के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में हर हर महादेव लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)