इन देवालयों में से यह नाग मंदिर खुलता है साल में सिर्फ एक बार . . .

जानिए देश भर के विभिन्न नाग मंदिरों के बारे में विस्तार से . . .
सनातन धर्म में ईश्वर के द्वारा बनाए गए हर प्राणी का सम्मान किया जाता है। हिन्दू धर्म में विषधरों की भी पूजा का विधान है। सनातन धर्म में नाग पंचमी का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाते हैं। इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है। मान्यता है कि देवाधिदेव महादेव भगवान शिव के गले में सर्पों की मला है, इसका अर्थ यही है कि भगवान भोलेनाथ के गले में नाग देवता किसी आभूषण की तरह सजते हैं।
इस तरह की मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने या सर्प को दूध पिलाने से जीवन में सौभाग्य और समृद्धि आती है। 2024 में इस बार 9 अगस्त, शुक्रवार को नाग पंचमी मनाई जा रही है। नाग पंचमी के मौके पर नाग देव के मंदिरों के दर्शन के लिए जा सकते हैं और यहां पूजा अर्चना की जा सकती है।
सनातन परंपरा में नाग देवता की पूजा पौराणिक काल से चली आ रही है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु जहां शेषनाग की शैय्या पर शयन करते हैं तो वहीं यही नाग भगवान शिव के गले का हार बनता है। देवी-देवताओं से जुड़े नाग देवता की पूजा का बहुत ज्यादा माना गया है। यही कारण है कि श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पंचमी जो कि नाग पंचमी के रूप में जानी जाती है, उसमें नाग देवता के विभिन्न स्वरूपों और मंदिरों में दर्शन और पूजन का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है। आईए हम आपको बताते हैं देश के विभिन्न नाग मंदिरों के संबंध में जिनके बारे में मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से कुंडली का कालसर्प और जीवन से जुड़ा सर्पदंश दोष दूर हो जाता है . . ..
सबसे पहले देश के हृदय प्रदेश की धर्म नगरी उज्जयनी जिसे अब उज्जैन कहा जाता है के नागचंद्रेश्वर मंदिर देवालय के बारे में आपको बताते हैं। देश के हृदय प्रदेश में दो ज्योतिर्लिंग देवालय स्थित हैं। वहीं यहां नाग देवता का एक प्राचीन मंदिर भी है। नागचंद्रेश्वर मंदिर उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। यह मंदिर के कपाट साल में एक बार नागपंचमी के दिन ही भक्तों के दर्शन के लिए खुलते हैं। मंदिर में भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। उज्जैन में स्थित महाकाल मंदिर में नाग देवता का प्रसिद्ध मंदिर है जो कि पूरे साल में सिर्फ एक बार नाग पंचमी के दिन खुलता है। हिंदू मान्यता के अनुसार इस मंदिर में तक्षक नाग विराजमान हैं। महाकाल के मंदिर में नागचंद्रेश्वर के दर्शन तीसरी मंजिल स्थित मंदिर में होते हैं, जहां पर नाग देवता भगवान शिव के गले में लिपटे हुए हैं।
इसके अलावा महाकाल की नगरी उज्जैन में भीमताल का कर्कोटक नागराज देवालय भी स्थित है, मान्यता है कि यहां पूजा करने से सर्प दोष से मुक्ति मिलती है। वैसे कर्काेटक नागराज का सबसे प्राचीन मंदिर नैनीताल के पास है। भीमताल के कर्काेटक नाम की पहाड़ी के शिखर पर देवालय बना है। मंदिर का वर्णन स्कंद पुराण के मानसखंड में मिलता है। मंदिर का इतिहास लगभग पांच हजार साल से अधिक पुराना है।
उत्तराखंड के प्रसिद्ध नाग मंदिरों में नैनीताल का करकोटक मंदिर शामिल है। नाग देवता के इस मंदिर को भीमताल का मुकुट कहा जाता है। पहाड़ के घने जंगलों में स्थित इस मंदिर में नागपूजा का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है। मान्यता है कि कर्काेटक मंदिर में पूजा करने पर व्यक्ति के जीवन से सर्पदंश का दोष दूर हो जाता है। इस मंदिर में लोग दूर-दूर से कालसर्प दोष की पूजा कराने के लिए पहुंचते हैं।
वहीं, नाग देवता का एक पावन तीर्थ उत्तराखंड के बागेश्वर में स्थित है। धौलीनाग मंदिर का संबंध कालिया नाग से जुड़ा हुआ है। हिंदू मान्यता के अनुसार धौली नाग कालिया नाग के सबसे बड़े पुत्र हैं। जिनकी पूजा करने के लिए लोग बड़ी संख्या में नागपंचमी के दिन इस मंदिर में पहुंचते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि धौलीनाग की पूजा करने पर उनकी तमाम तरह की प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा होती है।
सनातन धर्म के प्रमुख तीर्थ उत्तर प्रदेश के प्रयाग राज में तक्षक नाग मंदिर का अपना अलग महत्व है। सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार पाताल लोक में रहने वाले आठ प्रमुख नागों में एक तक्षक नाग को सर्पजाति का स्वामी माना गया है। इनसे जुड़ा पावन तीर्थ उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर में स्थित है। तक्षक नाग से जुड़े तक्षकेश्वर महादेव मंदिर के बारे में मान्यता है कि नागपंचमी के दिन यहां दर्शन मात्र से कुंडली का कालसर्प दोष एवं सर्पदंश दोष दूर हो जाता है। उत्तर प्रदेश की संगम नगरी कहलाने प्रयागराज में नाग वासुकी का मंदिर गंगा नदी के किनारे दारागंज मोहल्ले में स्थित है। इस मंदिर में नाग पंचमी के दिन भक्तों की भारी भीड़ दर्शन एवं पूजन के लिए पहंचती है। नाग पंचमी के दिन लोग इस मंदिर में जाकर नाग देवता को दूध एवं गंगाजल चढ़ाकर अपने परिवार की खुशहाली की कामना करते हैं।
आईए इसके बाद हम चर्चा करते हैं दक्षिण भारत में केरल में स्थित मन्नारशाला नाग मंदिर के संबंध में। यह देवालय केरल प्रांत के अलेप्पी जिले में लगभग 40 किलो मीटर दूर स्थित जगह पर मन्नारशाला नाग मंदिर स्थित है। नाग के इस देवालय में एक दो नहीं लगभग 30 हजार नागों की प्रतिमाएं हैं। दक्षिण भारत में स्थित नागों का यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। हिंदू मान्यता के अनुसार इस मंदिर को महाभारत काल से जोड़कर देखा जाता है। मान्यता यह भी है कि मन्नारशाला सर्प मंदिर में दर्शन और पूजन करने पर संतान सुख की कामना पूरी होती है। स्थानीय लोग इसे स्नेक टेंपल के नाम से पुकारते हैं। नागों के इस मंदिर में कालसर्पदोष की विशेष पूजा का विधान है। यहां नागराज के साथ उनकी जीवनसंगिनी नागायक्षी देवी विराजमान हैं।
इसके बाद बात करते हैं उत्तर भारत में जम्मू के करीब बने शेषनाग मंदिर के बारे में। यह देवालय जम्मू और कटड़ा की पर्वत श्रृंखलाओं पर विराजी माता वैष्णो देवी के मध्य में स्थित पत्नी टॉप में स्थित है। शेषनाग मंदिर के नाम से प्रसिद्ध यह नाग मंदिर पीर पंजाल पर्वत श्रृंखला में पत्नि टॉप में स्थित है। इस मंदिर का इतिहास 600 साल पुराना है। कश्मीर का अनंतनाग क्षेत्र पहले नागवंशियों का गढ़ था। इस मंदिर में नागपंचमी का भव्य उत्सव होता है, जिसमें हजारों तीर्थयात्री शामिल होते हैं। नाग देवता का यह अतिप्राचीन देवालय जम्मू के पत्नि टॉप में स्थित है। हिंदू मान्यता के अनुसर इस मंदिर में नाग देवता की पूजा करने पर व्यक्ति के जीवन से जुड़े कष्ट दूर और कामनाएं पूरी होती हैं। यही कारण है कि नागपंचमी के पावन पर्व पर यहां पर नागदेवता के भक्तों की भारी भीड़ पहुंचती है। मान्यता है कि यहां पर कभी इच्छाधारी नाग देवता ने ब्रह्मचारी रूप में कठिन तप किया था और उसके बाद उन्होंने यहां पर पिंडी रूप धारण कर लिया था, और उसके बाद तब से यहां पर महिलाओं का प्रवेश मना है।
माना जाता है कि भारत में नाग देवता की पूजा का प्रचलन प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। नाग नाम की एक प्राचीन प्रजाती हुआ करती थी जिसके वंशज आज भी भारत में विद्यमान है। एक समय था जबकि धरती पर आधे मानव और आधे पशु के समान लोग रहते थे। पुराणों में सर्पमानव के होने का उल्लेख मिलता है। जिस तरह सूर्यवंशी, चंद्रवंशी और अग्निवंशी माने गए हैं उसी तरह नागवंशियों की भी प्राचीन परंपरा रही है। महाभारत काल में पूरे भारत वर्ष में नागा जातियों के समूह फैले हुए थे। विशेष तौर पर कैलाश पर्वत से सटे हुए इलाकों से असम, मणिपुर, नागालैंड तक इनका प्रभुत्व था। कुछ विद्वान मानते हैं कि शक या नाग जाति हिमालय के उस पार की थी। अब तक तिब्बती भी अपनी भाषा को नागभाषा कहते हैं।
3000 ईसा पूर्व आर्य काल में भारत में नागवंशियों के कबीले रहा करते थे, जो सर्प की पूजा करते थे। उनके देवता सर्प थे। पुराणों अनुसार कैस्पियन सागर से लेकर कश्मीर तक ऋषि कश्यप के कुल के लोगों का राज फैला हुआ था। कश्यप ऋषि की पत्नी कद्रू से उन्हें आठ पुत्र मिले जिनके नाम अनंत अथवा शेष, वासुकी, तक्षक, कर्काेटक, पद्म, 6महापदम, शंख और कुलिक हैं। कश्मीर का अनंतनाग इलाका अनंतनाग समुदायों का गढ़ था उसी तरह कश्मीर के बहुत सारे अन्य इलाके भी दूसरे पुत्रों के अधीन थे।
नाग वंशावलियों में शेष नाग को नागों का प्रथम राजा माना जाता है। शेष नाग को ही अनंत नाम से भी जाना जाता है। इसी तरह आगे चलकर शेष के बाद वासुकी हुए फिर तक्षक और पिंगला। वासुकी का कैलाश पर्वत के पास ही राज्य था और मान्यता है कि तक्षक ने ही तक्षकशिला जिसे तक्षशिला के नाम से जाना जाता है, बसाकर अपने नाम से तक्षक कुल चलाया था। उक्त तीनों की गाथाएं पुराणों में पाई जाती हैं।
अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन है, जिसमें वासुकी, तक्षक, पद्म, महापद्म प्रसिद्ध हैं। नागों का पृथक नागलोक पुराणों में बताया गया है। अनादिकाल से ही नागों का अस्तित्व देवी-देवताओं के साथ वर्णित है। जैन, बौद्ध देवताओं के सिर पर भी शेष छत्र होता है। असम, नागालैंड, मणिपुर, केरल और आंध्रप्रदेश में नागा जातियों का वर्चस्व रहा है।
अगर आप नागदेवता की कृपा चाहते हों तो तो कमेंट बाक्स में जय नागदेवता लिखना न भूलिए। यहां बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन आदि सिर्फ मान्यता और जानकारियों पर आधारित हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी मान्यता या जानकारी की समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है। यहां दी गई जानकारी में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंतकथाओं, किंवदंतियों आदि से संग्रहित की गई हैं। आपसे अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया पूरी तरह से अंधविश्वास के खिलाफ है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
(साई फीचर्स)