उपराष्ट्रपति ने आगाह किया कि . . .

उपराष्ट्रपति ने आगाह किया कि कुछ राष्ट्रविरोधी लोग साजिशन नैरेटिव चला रहे हैं कि भारत में भी पड़ोसी देश जैसा घटनाक्रम दोहराया जायेगा

ये लोग जिम्मेदारी वाले पदों पर रहे हैं, फिर ऐसा गैरजिम्मेदाराना बयान कैसे दे सकते हैं – उपराष्ट्रपति

ऐसी राष्ट्र विरोधी ताकतें देश तोड़ने को तत्पर हैं, राष्ट्र के विकास को पटरी से उतारना चाहती हैं – उपराष्ट्रपति

राष्ट्रहित सर्वोपरि है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता – उपराष्ट्रपति

न्याय व्यवस्था में राज्यों के उच्च न्यायालयों और इनके मुख्य न्यायाधीशों की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण है – उपराष्ट्रपति

न्यायपालिका का लोकतंत्र की मजबूती में सराहनीय योगदान सिवाय आपातकाल के काले दौर के – उपराष्ट्रपति

आपातकाल में संविधान पर कुठाराघात किया गया और उसकी मूल भावना को कुचला गया – उपराष्ट्रपति

भारत सरकार द्वारा 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने की घोषणा सराहनीय प्रयास – उपराष्ट्रपति

युवा पीढ़ी को आपातकाल के काले दौर से अवगत कराना जरूरी – उपराष्ट्रपति

हमारी न्यायपालिका श्रीमती इंदिरा गांधी की तानाशाही के आगे झुक गई और आजादी एक व्यक्ति की बंधक बन कर रह गई। – उपराष्ट्रपति

यदि इमरजेंसी नहीं लगती तो भारत दशकों पहले ही विकास की नई ऊंचाईयों को छू लेता – उपराष्ट्रपति

शक्तियों के प्रथक्करण का हो सम्मान, संसद न्यायिक निर्णय नहीं दे सकती, उसी तरह न्यायालय भी कानून नहीं बना सकते – उपराष्ट्रपति

उपराष्ट्रपति ने जोधपुर में राजस्थान हाई कोर्ट की प्लेटिनम जुबली कार्यक्रम को संबोधित किया

(ब्यूरो कार्यालय)

जोधपुर (साई)। भारत के उपराष्ट्रपति, श्री जगदीप धनखड़ ने आज चिंता जताई कि देश में कुछ लोग साजिश के तहत एक नैरेटिव चला रहे हैं कि हमारे पड़ौसी देश में हाल में जो घटनाक्रम हुआ है, भारत में भी वैसा ही घटित होगा। ऐसे लोगों से सावधान रहने की अपील करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि ये लोग अपने जीवन में उच्च पदों पर रहे हैं, देश की संसद के सदस्य रहे हैं, मंत्री रहे हैं, और उनमें से एक को विदेश सेवा का लंबा अनुभव है, ऐसे जिम्मेदार पदों पर रहे लोग ऐसा मिथ्या प्रचार कैसे कर सकते हैं कि पड़ोसी देश जैसा घटनाक्रम भारत में दोहराया जायेगा।

जोधपुर में राजस्थान हाई कोर्ट की प्लेटिनम जुबली के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में देश भर से आए न्यायाधीशों व वकीलों को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने चेताया कि ऐसी राष्ट्र विरोधी ताकतें वैधता प्राप्त करने के लिए संवैधानिक संस्थानों को प्लेटफार्म के रूप में प्रयोग कर रही हैं। ये ताकतें देश तोड़ने को तत्पर हैं और राष्ट्र के विकास व लोकतंत्र को पटरी से उतारने के लिए मनगढ़ंत नैरेटिव चलाती हैं। श्री धनखड़ ने आगाह करते हुए कहा कि राष्ट्रहित सर्वोपरि है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता।

इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने भारत में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने में न्यायपालिका की भूमिका को सराहा और कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में केवल एक समय ऐसा आया जब आपातकाल के दौरान न्यायपालिका एक व्यक्ति की तानाशाही के आगे झुक गई। इस विषय पर उन्होंने आगे कहा कि नई पीढ़ी के लोगों को आपातकाल के काले दौर की जानकारी बहुत कम है। उन्होने आह्वान किया कि देश के युवाओं को भारत के इतिहास के उस काले अध्याय के बारे में बताना चाहिए।

इस संदर्भ में भारत सरकार द्वारा 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने की घोषणा की सराहना करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह दिन देशवासियों को आगाह करेगा कि किस तरह 1975 में संविधान पर कुठाराघात किया गया और उसकी मूल भावना को कुचला गया।

उपराष्ट्रपति धनखड़ ने राजस्थान हाई कोर्ट में बिताए अपने दिनों को याद करते हुए कहा कि उन्हें गर्व है कि यह कोर्ट उन नौ हाई कोर्ट में शामिल है जिन्होंने इंदिरा गांधी द्वारा लगाए आपातकाल के बावजूद निर्णय दिया कि आपातकाल में भी व्यक्ति को बिना वजह गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। उपराष्ट्रपति ने कहा कि खेद का विषय है की हमारा सम्मानित सुप्रीम कोर्ट जिसने देश में लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ाने में महान योगदान दिया है, वह इमरजेंसी के दौरान देश के नागरिकों के हक में नहीं खड़ा हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने इन नौ न्यायालयों के फैसलों को पलट दिया और निर्णय दिया कि आपातकाल लागू रहने के दौरान व्यक्ति को न्यायालय राहत नहीं दे सकता और सरकार जब तक चाहे आपातकाल लागू रख सकती है।

श्री धनखड़ ने अफसोस जताया कि हमारी सम्मानित न्यायपालिका श्रीमती इंदिरा गांधी की तानाशाही के आगे झुक गई और स्वतंत्रता एक व्यक्ति की बंधक बन कर रह गई। उन्होने कहा कि यदि इमरजेंसी नहीं लगती तो भारत दशकों पहले ही विकास की नई ऊंचाईयों को छू लेता।

अपने संबोधन में श्री धनखड़ ने कहा कि संविधान में सभी अंगों के कार्यक्षेत्र का स्पष्ट बंटवारा है और शक्तियों के इस प्रथक्करण का सबके द्वारा सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने हल्के अंदाज में यह भी जोड़ा कि संसद न्यायिक निर्णय नहीं दे सकती, उसी तरह न्यायालय भी कानून नहीं बना सकते।

समारोह में माननीय न्यायमूर्ति श्री ए.जी. मसीह, न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय; माननीय न्यायमूर्ति श्री संदीप मेहता, न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय; माननीय न्यायमूर्ति श्री अरुण भंसाली, मुख्य न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय; माननीय न्यायमूर्ति श्री एम.एम. श्रीवास्तव, मुख्य न्यायाधीश, राजस्थान उच्च न्यायालय; और श्री जोगा राम पटेल, माननीय कानून मंत्री, राजस्थान सरकार, सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।