गणपति बप्पा मोरया की धूम किन किन देशों में रहती है यह जानिए . . .

जानिए भारत के अलावा किन किन देशों में मनाया जाता है गणेश उत्सव . . .
गणेशजी का पूजन अर्चन भारत गणराज्य में सभी प्रांतों, सभी शहरों, कस्बों आदि में किया जाता है। संपूर्ण भारत में भगवान श्री गणेश जी पूजनीय और प्रार्थनीय माने गए हैं। इसके अलावा विश्व भर में बुद्धिविनायक भगवान श्री गणेश का पूजन किया जाता है। मध्य एशिया, चीन, जापान और मैक्सिको में हुई एक खुदाई में भगवान श्री गणेश जी और माता लक्ष्मी जी की प्रतिमाएं पाई गई, जिससे यह सिद्ध होता है कि भगवान श्री गणेश जी की पूजा का प्रचलन कितना व्यापक था। इसके अलावा कंबोडिया, बर्मा, मलेशिया, थाईलैंड, जावा, सुमात्रा, तिब्बत आदि भारतीय उपमहाद्वीप के राष्ट्रों में भी गणेश पूजा के प्रचलन के प्रमाण मिलते हैं।
माना जाता है कि हिंदू-धर्म में उपासना के अनेक मार्ग हैं, जैसे-शैव, वैष्णव, शाक्त आदि। इनमें भगवान श्री गणेश की उपासना करने वालों को गाणपत्य कहते हैं। ये लोग गणेश पंचायतन की उपासना करते हैं। इनके उपासक दक्षिण में और विशेष रूप से महाराष्ट्र में मिलते हैं। श्रीमन्त पेशवा सरकार गणेश की उपासक थी। उनके शासनकाल में गणेशोत्सव बड़े ही राजकीय ठाट-बाट से मनाया जाता था।
अगर आप बुद्धि के दाता भगवान गणेश की अराधना करते हैं और अगर आप एकदंत भगवान गणेश के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय गणेश देवा लिखना न भूलिए।
जानकार विद्वानों की मानें तो वर्तमान में दुनिया पर बादशाहत करने वाले अमेरिका की खोज करने वाले कोलम्बस से पूर्व ही वहां सूर्य भगवान, चंद्र देव तथा भगवान श्री गणेश की मूर्तियां पहुंच गई थीं। विश्व के कई देश ऐसे भी हैं, जहां खुदाई के दौरान भारतीय देवताओं की मूर्तियां मिली हैं, लेकिन विशेषता यह रही है कि इनमें गणेश जी हर जगह विद्यमान थे। ये मूर्तियां हजारों वर्ष पूर्व की होने का अनुमान लगाया गया है।
इस आलेख को वीडियो में देखने के लिए क्लिक कीजिए . . .

जानकार विद्वानों के अनुसार पश्चिम में रोमन देवता जेनस को गणपति के समकक्ष माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जब भी इतालवी व रोमन पूजा-अर्चना करते थे, तो वे अपने इष्ट जेनस का नाम लेते थे। अठ्ठारहवीं शताब्दी के संस्कृत के प्रकांड विद्वान विलियम जोन्स ने जेनस व गणेश की पारस्परिक तुलना करते हुए माना है कि गणेश जी में जो विशेषताएं पाई गई हैं, वे सभी जेनस में भी हैं। रोमन व संस्कृत शब्दों में जेनस और गणेश के उच्चारण में भी समानता पाई जाती है।
जापान में गणेश को कातिगेन नाम से पुकारा जाता है। यहां पर बनी गणेशजी की मूर्तियों में 2 या 4 हाथ दिखाए गए हैं। सन 804 ईस्वी में जब जापान का कोबोदाइशि धर्म की खोज करने हेतु चीन गया तो उसे वहां वज्रबोधि और अमोधवज नामक भारतीय आचार्य विद्वानों द्वारा मूल ग्रंथों का चीनी अनुवाद करने का मौका मिला तो चीन की मंत्र विद्या प्रणाली में गणेशजी की महिमा को भी वर्णित किया गया।
सन 720 ईस्वी में चीन की राजधानी लो-यांग अमोध्वज पहुंचा, जो भारतीय मूल का ब्राम्हण था जिसे चीन के कुआंग-फूं मंदिर में पुजारी के रूप में नियुक्त किया गया था। बाद में अमोध्वज से एक चीनी धर्मपरायण व्यक्ति हुई-कुओ ने पहले दीक्षा ली, फिर उसने कोषोदाइशि को दीक्षा दी जिसने वहां के विभिन्न मठों से संस्कृत की पाडुंलिपियां एकत्र कीं व सन 806 में जब वह जापान लौटा तो वज्र धातु के महत्वपूर्ण सूत्रों के साथ गणेशजी के चित्र भी साथ ले गया जिसे सुख-समृद्धि के रूप में माना गया। जापान के कोयसान सन्तसुजी विहार में गणेश की 4 चित्रावलियां रखी गई हैं जिनमें युग्म गणेश, षड्भुज गणेश, चतुर्भुज गणेश तथा सुवर्ण गणेश प्रमुख हैं।
एलिस गेट्टी द्वारा लिखित गणेश-ए-मोनोग्राफ ऑफ द एलीफेन्ट फेल्ड गॉड के अनुसार विश्व के कई देशों में गणेश प्रतिमाएं बहुत पहले से पहुंच चुकी थीं और विदेशों में पाई जाने वाली गणेशजी की प्रतिमाओं में इनके विभिन्न स्वरूप अलग-अलग देखे गए हैं।
जावा में गणेश की मूर्तियों में वे पालथी मारकर बैठे दिखाए गए हैं, उनके दोनों पैर जमीन पर टिके हुए हैं व उनके तलुए आपस में मिले हुए हैं। हमारे देश में गणेशजी की मूर्तियों में उनकी सूंड प्रायः बीच में दाहिनी या बाईं ओर मुड़ी हुई है किंतु विदेशों में वह पूर्णतया सीधी, सिरे से मुड़ी हुई है।
तिब्बत के हरेक मठ में भी गणेश पूजन की परंपरा काफी पुरानी है। यहां गणपति अधीक्षक के रूप में पूजे जाते हैं। नौवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में ही तिब्बत के अनेक स्थानों में गणेश पूजा का प्रचलन शुरू हो गया था। चीन के तुन-हू-आग में एक पहाड़ी पर गणेश मूर्तियां सन् 644 ईस्वी में स्थापित की गई थीं। गणेश की मूर्ति के नीचे चीनी भाषा में लिखा हुआ है कि ये हाथियों के अमानुष राजा हैं।
चीन में गणपति कांतिगेन कहलाते हैं। कम्बोडिया की प्राचीन राजधानी अंगारकोट में तो मूर्तियों का खजाना मिला है, उसमें भी गणेश के विभिन्न रंग-रूप पाए गए हैं। श्याम देश, अर्थात थाईलैण्ड जहां पर बसे भारतीयों ने वैदिक धर्म को कई सौ वर्ष पूर्व ही प्रचारित कर दिया था, के कारणवश यहां पनपी धार्मिक आस्था के फलस्वरूप यहां निर्मित की गई गणेश की मूर्तियां आयूथियन शैली में दिखाई देती हैं। स्याम देश में वैदिक धर्म राजधर्म के रूप में प्रसिद्ध था जिसके कारण यहां आज भी धार्मिक अनुष्ठान वैदिक रीति से ही संपन्न होते हैं।
अगर आप बुद्धि के दाता भगवान गणेश की अराधना करते हैं और अगर आप एकदंत भगवान गणेश के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय गणेश देवा लिखना न भूलिए।
यहां बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन आदि सिर्फ मान्यता और जानकारियों पर आधारित हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी मान्यता या जानकारी की समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है। यहां दी गई जानकारी में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंतकथाओं, किंवदंतियों आदि से संग्रहित की गई हैं। आपसे अनुरोध है कि इस वीडियो या आलेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया पूरी तरह से अंधविश्वास के खिलाफ है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
(साई फीचर्स)