जानिए भगवान विश्वकर्मा की पूजन विधि, महूर्त, कथा आदि को विस्तार से . . .

कब मनाई जाएगी विश्वकर्मा जयंति 16 या 17 सितंबर को!
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ब्रम्हांड के सबसे पहले इंजीनियर कहे जाने वाले भगवान विश्वकर्मा की जयंती हर साल 17 सितंबर को मनाई जाती है। इस दिन हर कारखाने, फैक्ट्री और दुकानों में उनकी धूमधाम से पूजा की जाती है। इस दिन औजार से जुड़ा काम करने वाले कुशल मजदूर और कामगार औजार का प्रयोग नहीं करते बल्कि उनकी पूजा करके उन्हें एक दिन के आराम देते हैं। इस दिन कल कारखानों, फैक्ट्रियों में सभी मशीनों और कलपुर्जों की पूजा की जाती है। तकनीकी क्षेत्र से जुड़े लोग भगवान विश्वकर्मा जी को अपना भगवान मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
श्री विश्वकर्मा पूजा हिंदू पंचांग के अुनसार कन्या संक्रांति को मनाया जाता है। भारत के अलावा नेपाल में भी एक बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता है। भारत के कर्नाटक, असम, पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखण्ड, ओडिशा, त्रिपुरा ओर उतर प्रदेश, आदि प्रदेशों में यह आम तौर पर हर साल 17 या 18 सितंबर की ग्रेगोरियन तिथि को मनायी जाती है। यह उत्सव प्रायः मुख्य तौर पर भगवान विश्वकर्मा के पांच पुत्रों मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और देवज्ञ की संतानों द्वारा मनाई जाती है। भगवान विश्वकर्मा को विश्व का निर्माता तथा देवताओं का वास्तुकार माना गया है।
अगर आप बुद्धि के दाता भगवान विश्वकर्मा जी की अराधना करते हैं और अगर आप उनके भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विश्वकर्मा देव लिखना न भूलिए।
भगवान विश्वकर्मा के इस विशेष पूजन को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है। हर साल 17 सितंबर को यह पूजा की जाती है। लेकिन इस बार लोगों के मन में 16 सितंबर को लेकर संशय बना हुआ है। इस बार सूर्य 16 सितंबर की शाम को 7 बजकर 29 मिनट पर कन्या राशि में प्रवेश कर रहे हैं। इसलिए विश्वकर्मा जयंती अगले दिन यानी कि 17 सितंबर को मनाई जाएगी, किन्तु कुछ लोगों का मत है कि यह 16 सितंबर को ही मनाई जाएगी। बिहार, बंगाल और झारखंड के साथ ही उत्तर प्रदेश में विश्वकर्मा पूजा विधि विधान से की जाती है। इस दिन कुशल कामगार जैसे कारपेंटर, बिजली के उपकरणों को सही करने वाले या फिर अन्य तकनीकी क्षेत्र से जुड़े लोग भी भगवान विश्वकर्मा को भोग प्रसाद चढ़ाते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
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जानिए भगवान श्री विश्वकर्मा जी की पूजा विधि के बारे में, विश्वकर्मा पूजा के दिन सुबह सबसे पहले मशीनों की खूब अच्छे से साफ सफाई करें और उसके बाद इन मशीनों को बंद करके इनकी पूजा करें। भगवान विश्वकर्मा की तस्वीर या मूर्ति को मशीनों के पास में रखकर साथ में दोनों की पूजा करनी चाहिए। इस दिन मशीनों के साथ साथ आपको अपने वाहनों की पूजा करनी चाहिए। इस दिन घर की सभी छोटी बड़ी मशीनों की पूजा करनी चाहिए और साथ ही आपको भोग व प्रसाद भी इस दिन चढ़ाना चाहिए। विश्वकर्मा पूजा के दिन आपको घर की बनी शुद्ध चीजों का ही भोग लगाना चाहिए। इनमें मोतीचूर के लड्डू, मीठी बूंदी, चावल की खीर या हलवे का भोग आप लगा सकते हैं। इस दिन कुछ स्घ्थानों पर भंडारे का भी आयोजन किया जाता है। विश्वकर्मा पूजा के दिन गरीब और जरूरतमंद लोगों को रोजाना में प्रयोग आने वाली वस्तुओं का दान भी करना चाहिए।
आईए जानते हैं भगवान विश्वकर्मा के इस विशेष पूजन के महत्व को, विश्वकर्मा पूजा न सिर्फ मजदूरों और कामगारों बल्कि हम सभी के लिए भी जरूरी मानी जाती है। आज के युग में हर व्यक्ति मोबाइल और लैपटॉप के बिना अपना काम नहीं कर पाता है। इसलिए ये भी एक प्रकार की मशीन हैं और इनका प्रयोग करने वाले सभी लोगों के लिए भी विश्वकर्मा पूजा का महत्व बहुत खास माना गया है। इसलिए विश्वकर्मा पूजा के दिन हम सभी को पूजा करनी चाहिए और साथ ही यह भी प्राार्थना करनी चाहिए कि हम जिस भी मशीन से जुड़ा काम करते हैं साल भर वह मशीन ठीक से सुचारू रूप से कार्य करे, ताकि हमारे रोजाना के काम में बाधा न आएं।
आईए जानते हैं भगवान विश्वकर्मा पूजा की तिथि महूर्त आदि के बारे में, हर वर्ष भाद्रपद मास में सूर्य जब सिंह राशि से निकलकर कन्या राशि में प्रवेश करते हैं तो विश्वकर्मा पूजा मनाई जाती है। इस साल सूर्य 16 सितंबर की शाम को 7 बजकर 29 मिनट पर कन्या राशि में प्रवेश कर रहे हैं। इसलिए विश्वकर्मा जयंती अगले दिन यानी कि 17 सितंबर को मनाए जाने की बात विद्वान जानकारों के द्वारा कही जा रही है।
आईए अब जानते हैं पूजन महूर्त, विद्वान जानकारों के अनुसार पंचांगानुसार इस साल विश्वकर्मा पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह के समय ही है। क्योंकि दोपहर के समय में भद्रा है। ऐसे में आप विश्वकर्मा पूजा सुबह 6 बजकर 7 बजे से दिन में 11 बजकर 43 बजे के बीच कर सकते हैं।
इस बार की विश्वकर्मा पूजा रवि योग का निर्माण हो रहा है। आपको बता दें कि 17 सितंबर को विश्वकर्मा पूजा के दिन रवि योग सुबह 6 बजकर 7 मिनट से शुरू हो रहा है, जो दोपहर 1 बजकर 52 मिनट तक रहेगा।
आईए जानते हैं कि आखिर कौन हैं भगवान विश्वकर्मा, शास्त्रों में भगवान विश्वकर्मा को वास्तुकार और शिल्पकार बताया गया है। साथ ही भगवान विश्वकर्मा ने ही इंद्रपुरी, द्वारिका, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक, लंका और जगन्नाथपुरी का निर्माण किया था। शास्त्रों के अनुसार उन्होंने ही भगवान शिव का त्रिशूल और विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र तैयार किया था। इस वजह से ही विश्वकर्मा जयंती पर शस्त्रों की पूजा अर्चना की जाती है।
अब विश्वकर्मा पूजा का धार्मिक महत्व जानिए, इस दिन विश्वकर्मा भगवान की पूजा अर्चना करने से जीवन में सुख समृद्धि बनी रहती है। साथ ही नौकरी व व्यापार में उन्नति के योग बनते हैं। साथ ही इस दिन मशीन, औजार और वाहन आदि की पूजा करने से वे कभी बीच काम या वक्त बेवक्त धोखा नहीं देते, जिससे काम आसानी से पूरे हो जाते हैं।
भगवान विश्वकर्मा के प्रतीक औजार हैं। उनके पिता वास्तुदेव और माता अंगिरसी हैं। आपकी संतान बृहस्मति, नल निल,संध्या, रिद्धि, सिद्धि और चित्रांगदा हैं। वैसे उनके पांच पुत्र क्रमशः मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी और दैवज्ञ बताए गए हैं, जो समस्त शिल्प शास्त्र में निष्णात् थे। मनु विश्वकर्मा सानग गोत्रीय हैं। ये लौह कर्म के अधिष्ठाता थे, तो ऋषि मय मूलतः सनातन गोत्र के दूसरे पुत्र थे, जो कुशल काष्ठ शिल्पी थे।
जानकार विद्वानों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा जी के द्वारा द्वारका के पवित्र शहर का निर्माण किया गया, जहां भगवान श्री कृष्ण ने शासन किया, पांडवों की माया सभा, और देवताओं के लिए कई शानदार हथियारों के निर्माता थे। ऋग्वेद में उल्लेख किया गया है, और इसे यांत्रिकी और वास्तुकला के विज्ञान, आदि के साथ श्रेय दिया जाता है।
आईए अब जानते हैं भगवान विश्वकर्मा के कुछ देवालयों के संबंध में, देश की राजनैतिक राजधानी नई दिल्ली में महाभारत कालीन भगवान विश्कर्मा मंदिर भगवान विश्कर्मा का सबसे पुराना मंदिर दिल्ली में है। कहा जाता है कि देवलोक के वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा ने महाभारत काल के सबसे प्राचीन नगर इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया था। पांडवों ने खांडव वन पर इंद्रपस्थ नामक नगर की स्थापना की थी। यह नगर पांडवों की राजधानी रहा और अब वर्तमान में दिल्ली के नाम से विख्यात है जो भारत की राजधानी है।
मान्यता है कि औरंगाबाद का एकमात्र सूर्य मंदिर है जिसका निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं किया था। कहा है कि जाता है कि इस मंदिर का निर्माण एक रात में पूरा हो गया था। इस मंदिर की खासियत है कि यह अस्ताचल गामी सूर्य मंदिर है। सभी सूर्य मंदिरों के द्वार पूर्व की ओर खुलते हैं जबकि इस मंदिर का द्वार पश्चिम की ओर खुलता है।
आईए अब जानते हैं भगवान विश्कर्मा जयंती पर तरक्की के उपायों के संबंध में, विश्वकर्मा पूजा के दिन भगवान विश्वकर्मा को हरी मिठाई का भोग लगाएं। मान्यता है कि ऐसा करने से कारोबार में तरक्की होती है और धन लाभ के योग बनते हैं। विश्वकर्मा जयंती के दिन पूजा के बाद भगवान विश्वकर्मा को हल्दी, नारियल, फूल और कुमकुम अर्पित करें। धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से व्यापार में तरक्की के मार्ग खुलते हैं। धन व्यापार में वृद्धि के लिए विश्वकर्मा जयंती पर धन, सुख संपदा में वृद्धि के लिए ओम कूमयि नमः और ओम अनन्तम नमः मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।
अगर आप बुद्धि के दाता भगवान विश्वकर्मा जी की अराधना करते हैं और अगर आप उनके भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विश्वकर्मा देव लिखना न भूलिए।
यहां बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन आदि सिर्फ मान्यता और जानकारियों पर आधारित हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी मान्यता या जानकारी की समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है। यहां दी गई जानकारी में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंतकथाओं, किंवदंतियों आदि से संग्रहित की गई हैं। आपसे अनुरोध है कि इस वीडियो या आलेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया पूरी तरह से अंधविश्वास के खिलाफ है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
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(साई फीचर्स)