भगवान श्री गणेश जी के महोदर अवतार की कथा जानिए . . .

गणेश जी ने आखिर क्यों लिया था महोदर का अवतार!
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भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान श्री गणेश जी के जन्म का पर्व गणेश चतुर्थी पर्व के रूप में मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान श्री गणेश जी ने भी समय समय पर धर्म की रक्षा के लिए आठ अवतार लिए हैं। ये आठ अवतार ही अष्टविनायक कहलाते हैं।
हम किसी भी शुभ कार्य के शुरू करने पर स्वास्तिक के साथ शुभ लाभ लिखते हैं। स्वास्तिक को भगवान श्री गणेश जी का ही प्रतीक माना जाता है। स्वास्तिक के दाएं बाएं हम शुभ लाभ लिखते हैं। शुभ लाभ भगवान श्री गणेश जी के पुत्रों के नाम है। जहां शुभ होता है वहां लाभ होने लगता है और रिद्धि और सिद्धि हो जाती है। स्वास्तिक की अलग अलग रेखाएं भगवान श्री गणेश जी की पत्नी रिद्धि और सिद्धि को दर्शाती हैं।
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आईए आपको बताते हैं कि आखिर क्या वजह थी कि भगवान श्री गणेश को महोदर का अवतार धारण करना पड़ा . . .
मुदगल पुराण में महोदर को भगवान श्री गणेश जी के एक अवतार के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। भगवान श्री गणेश जी ने मोहासुर नामक राक्षस को हराने के लिए यह रूप धारण किया था। मोहासुर भौतिक संपत्ति के प्रति आसक्ति और आकर्षण के कारण होने वाले भ्रम या उलझन का प्रतिनिधित्व करता है।
दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नामक एक राक्षस को अस्त्र शस्त्र की शिक्षा दीक्षा देकर देवताओं के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार किया। मोहासुर के अत्याचारों से परेशान देवी देवताओं मिलकर भगवान श्री गणेश जी का आव्हान किया। तब भगवान श्री गणेश जी ने महोदर अवतार लिया। महोदर का अर्थ होता है बड़े पेट वाला। महोदर अपने मूषक पर सवार होकर मोहासुर से युद्ध करने पहुंचे थे।
दरअसल, दैत्यगुरु शुक्राचार्य का शिष्य मोहासुर ने सूर्यदेव को अपनी तपस्या से प्रसन्न किया था। सूर्यदेव ने प्रसन्न होकर उसे सर्वत्र विजय का वरदान दिया था। वहीं, शुक्राचार्य ने उसे असुरों का राजा भी घोषित कर दिया था। इसी वरदान का गलत उपयोग करते हुए उसने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त की थी। उसने आतंक का साम्राज्य स्थापित कर दिया था। सभी देवी, देवता, ऋषि और मुनि दैत्य मोहासुर के आतंक से परेशान हो गए थे। धरती पर भी धर्म और कर्म की हानि होने लगी थी। इस परेशानी के निवारण के लिए समस्त देवगण और ऋषि मुनि, सूर्यदेव की शरण में पहुंचे। वहां, उन्हें इससे निजात पाने का उपाय पूछा। सूर्यदेव ने उन्हें भगवान श्री गणेश जी का एकाक्षरी मंत्र दिया। सभी ने पूरे भक्ति भाव से उस मंत्र का जाप किया और भगवान श्री गणेश जी को प्रसन्न किया। गणपति बप्पा प्रसन्न होकर महोदर के रूप में प्रकट हुए।
सभी ने महोदर अवतार से मोहासुर से मुक्ति दिलाने का आग्रह किया। भगवान जी ने उन्हें मोहासुर का वध करने का आश्वासन दिया। फिर महोदर मूषक पर सवार होकर दैत्य राज को सबक सिखाने निकल पड़े। वहीं, नारद मुनि ने मोहासुर को महोदर की शक्ति के बारे में बताया। इसी तरह दैत्यों के गुरू शुक्राचार्य ने भी मोहासुर को देवी महोदरा की शरण में जाने की सलाह दी। इसी बीच विष्णु जी ने भी मोहासुर से कहा कि वो महोदर से जीत नहीं सकता है। ऐसे में वो उनकी शरण में चला जाए और मैत्री कर ले। अगर वो देवताओं, मुनियों और ब्राम्हणों को धर्म पूर्ण जीवन व्यतीत करने का आश्वासन देता है महोदर तुम्हारे प्राण बख्श देगा। अन्यथा तुम्हारी मृत्यु निश्चित है।
यह सब सुनकर मोहासुर का अहंकार नष्ट हो गया। उसने अपने नगर में महोदर को पूरे आदर सत्कार के साथ बुलाया और उनकी शरण ग्रहण की। साथ ही पापक्रम से दूर रहने का निश्चय किया।
कुछ विद्वानों के द्वारा महोदर के प्रतीकवाद की व्याख्या भी की है। दरअसल, महोदर, संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है बड़ा पेट। यह भगवान श्री गणेश जी के बड़े पेट की ओर इशारा करता है। कई ग्रंथों, मूर्तियों और भक्ति संगीत में, उन्हें उनके विशाल शरीर के साथ वर्णित किया गया है। भरा हुआ पेट मन की संतुष्टि और आराम की स्थिति को दर्शाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि जिस व्यक्ति का पेट निकला होता है, वह धनवान होता है और उसका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। वह तनावपूर्ण जीवन नहीं जीता।
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