जानिए गरूण पुराण के अनुसार श्राद्ध कर्म करना क्यों है जरूरी . . .

पितृ पक्ष में कौओं को खिलाया जाता है भोजन . . .

गरूण पुराण में श्राद्ध के बारे में कहा गया है कि . . .

आप देख, सुन और पढ़ रहे हैं समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की साई न्यूज के धर्म प्रभाग में विभिन्न जानकारियों के संबंद्ध में . . .
वैसे तो जीवन और मृत्यु दोनों ही ईश्वर के हाथ में मानी गई है, किन्तु मृत्यु के उपरांत क्या होता है यह जिज्ञासा हर किसी को रहती है। मृत्यु के उपरांत परिवार जनों को क्या करना चाहिए इस संबंध में गरूण पुराण में बहुत ही स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया गया है। आज हम आपको यही बताने जा रहे हैं कि गरूण पुराण के अनुसार श्राद्ध कर्म करना क्यों जरूरी है।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा लिखना न भूलिए।
गरुड़ पुराण वैष्णव संप्रदाय का ऐसा ग्रंथ है, जिसे हिंदू धर्म के 18 महापुराणों में एक माना गया है। गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु अपने वाहन पक्षीराज गरुड़ को बताते हैं कि मरने के बाद जीवात्मा का क्या होता है और उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है या फिर नरक में अगनित यातनाएं भोगनी पड़ती है। इसमें यह भी बताया गया है कि क्या मृत्यु के बाद आत्मा को दोबारा धरती पर जीवन की प्राप्ति होगी या फिर किसी कीड़े या जानवर के रूप में उसका जन्म होगा। गरुड़ पुराण में किसी की मृत्यु के बाद श्राद्ध और तेरहवीं जैसे संस्कार के महत्व के बारे में भी बताया गया है।
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व्यक्ति अपने जीवनकाल में चाहे पुण्य करे या फिर पापकर्म, लेकिन उसकी मृत्यु निश्चित है। हालांकि कर्मों से मृत्यु को संवारा जा सकता है। अच्छे कर्म करने वालों को मृत्युपश्चात स्वर्ग की प्राप्ति होती है और व्यक्ति सभी सुखों का भोग करता है। गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद होने वाले कार्यक्रमों जैसे कि श्राद्ध और तेरहवीं का भी वर्णन मिलता है।
गरुड़ पुराण में श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व बताया गया है। श्राद्ध के जरिए व्यक्ति अपने पूर्वजों के किए अहसान के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करते हैं, कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं। कहा जाता है कि जिस घर में पितरों का श्राद्ध श्रद्धापूर्वक, विधि विधान और पूरे मन से किया जाता है, वहां परिवार फलता फूलता है। परिवार में यश, कीर्ति, सफलता, संतान और धन धान्य आदि बना रहता है। पितर संतुष्ट होते हैं और अपने बच्चों को आशीर्वाद देते हैं। लेकिन जो लोग जीवित रहते हुए अपने माता पिता का अनादर करते हैं, मृत्यु के बाद अपने पितरों की श्राद्ध नहीं करते, किसी निर अपराध की हत्या करते हैं और मृत्यु के बाद अपने सम्माननीय जनों का विधि पूर्वक श्राद्ध नहीं करते, उनके घर में पितृ दोष लगता है। गरुड़ पुराण में श्राद्ध के कुछ नियम भी बताए गए हैं। इन नियमों के अनुसार श्राद्ध करने का अधिकार भी परिवार के लोगों के लिए तय किए गए हैं।
जानिए किन्हें है श्राद्ध करने का अधिकार,
किसी की मृत्यु के बाद यदि उसका पुत्र नहीं है तो पत्नी अपने पति के निमित्त श्राद्ध कर सकती है। पत्नी के न होने पर सगे भाई को श्राद्ध करने का अधिकार दिया गया है। भाई के न होने पर संपिंडों को श्राद्ध करना चाहिए। एक से ज्यादा पुत्रों के होने पर श्राद्ध का अधिकार सबसे बड़े या सबसे छोटे पुत्र को दिया जाता है। पुत्र के न होने पर पौत्र और प्रपौत्र को श्राद्ध करने का अधिकार प्राप्त है। पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के न होने पर विधवा स्त्री भी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी का श्राद्ध को पति तभी कर सकता है।पत्नी का श्राद्ध को पति तभी कर सकता है, जब उसका कोई पुत्र न हो। पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र या पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजों को श्राद्ध का अधिकार प्राप्त है। इसके अलावा गोद लिए अधिकारी को भी श्राद्ध करने का अधिकार दिया गया है।
जानिए क्या हैं श्राद्ध के नियम,
पूर्वजों की जिस तिथि में मृत्यु हुई है, पितृ पक्ष की उन्हीं तिथियों में पितरों का श्राद्ध किया जाता है। यदि किसी कारणवश उस तिथि में श्राद्ध नहीं कर पाए हैं तो अमावस्या के दिन आप श्राद्ध कर सकते हैं। सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा का स्थान और पितरों के स्थान को गोबर से लीपना चाहिए और गंगाजल से पवित्र करना चाहिए। फिर पितरों के नाम पर ब्राम्हण से तर्पण वगैरह कराना चाहिए। उसके बाद दिन के 12 बजकर 24 मिनट तक पितर के नाम से ब्राम्हण को भोजन कराना चाहिए। इसके अलावा ब्राम्हण को भोजन हमेशा पत्ते या थाली में खिलाना चाहिए। वर्तमान समय में डिस्पोजेबल प्लेट्स आदि का चलन चल पड़ा है, पर आप कभी डिस्पोजल का इस्तेमाल न करें। खाने को बनाते समय शुद्धता का खयाल रखें और ब्राम्हण को खाना खिलाने से पहले गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के नाम से भोजन निकालें। भोजन कराने के बाद ब्राम्हण को यथा सामर्थ्य दक्षिणा देकर सम्मानपूर्वक विदा करें।
हिंदू धर्म में परिजन की मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार का विधान है और इसके बाद 13 दिनों तक मृतक के निमित्त पिंड दान किए जाते हैं। वहीं तेरहवें दिन मृतक का तेरहवीं संस्कार किया जाता है। इसे लेकर ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बार पूरे 13 दिनों तक मृतक की आत्मा घर पर ही रहती है। तेरहवीं के उपरांत आत्मा भी परलोक की ओर गमन कर जाती है।
आखिर क्यों जरूरी है श्राद्ध क्या है इसका महत्व,
हिंदू धर्म में श्राद्ध कर्म को जरूरी माना गया है। मान्यता है कि मृतक का विधिवत श्राद्ध करने से उसे इस लोक से मुक्ति मिलती है। श्राद्ध के बाद आत्मा को यह आभास हो जाता है कि इस दुनिया में अब उसका कोई स्थान नहीं है और इस तरह आत्मा अपनों से विदा लेती है। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि प्रत्येक मृतक के घरवालों के विधिवत पिंडदान और श्राद्धकर्म की प्रकिया करनी चाहिए। श्राद्ध न करने पर आत्मा प्रेत बनकर तड़पती है।
पितृपक्ष की शुरुआत बुधवार 18 सितंबर 2024 से होने जा रही है। इस दौरान अगले 15 दिनों तक श्राद्ध, तर्पण के जरिए पितरों को संतुष्ट किया जाएगा। श्राद्ध पक्ष में नियम है कि इसमें पितरों के नाम से जल और अन्न का दान किया जाता है और उनकी नियमित कौएं को भी अन्न जल दिया जाता है। कई बार इसलिए आपने सुना भी होगा की कोए न मिलने से लोग परेशान हैं। आइए जानते हैं श्राद्ध पक्ष में कौएं अन्न खिलाने का इतना महत्व क्यों है इसे लेकर गरुड़ पुराण में क्या बताया गया है।
श्राद्ध के समय लोग अपने पूर्वजों को याद करके यज्ञ करते हैं और कौए को अन्न जल अर्पित करते हैं। दरअसल, कौए को यम का प्रतीक माना जाता है। गरुण पुराण के अनुसार, अगर कौआ श्राद्ध को भोजन ग्रहण कर लें तो पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही ऐसा होने से यम भी प्रसन्न होते हैं और उनका संदेश उनके पितरों तक पहुंचाते है।
गरुण के अनुसार कौवे को यम का वरदान प्राप्त है। यम ने कौवे को वरदान दिया था तुमको दिया गया भोजन पूर्वजों की आत्मा को शांति देगा। पितृ पक्ष में ब्राम्हणों को भोजन कराने के साथ साथ कौवे को भोजन करना भी बेहद जरूरी होता है। कहा जाता है कि इस दौरान पितर कौवे के रूप में भी हमारे पास आ सकते हैं।
इसको लेकर एक और मान्यता प्रचलित है कहा जाता है कि एक बार कौवे ने माता सीता के पैरों में चोंच मार दी थी। इसे देखकर श्री राम ने अपने बाण से उसकी आंखों पर वार कर दिया और कौए की आंख फूट गई। कौवे को जब इसका पछतावा हुआ तो उसने श्रीराम से क्षमा मांगी तब भगवान राम ने आशीर्वाद स्वरुप कहा कि तुमको खिलाया गया भोजन पितरों को तृप्त करेगा। भगवान राम के पास जो कौवा के रूप धारण करके पहुंचा था वह देवराज इंद्र के पुत्र जयंती थे। तभी से कौवे को भोजन खिलाने का विशेष महत्व है।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)