मृत्यु के उपरांत कैसे निर्धारित किया जाता है आत्मा का भविष्य . . .

जीवन के पूर्व और मृत्यु के पश्चात क्या? हर सवाल का जवाब छिपा है गरूड़ पुराण में!
आप देख, सुन और पढ़ रहे हैं समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया की साई न्यूज के धर्म प्रभाग में विभिन्न जानकारियों के संबंद्ध में . . .
जीवन के पूर्व और मृत्यु के पश्चात क्या होता है, इस प्रश्न का जवाब आज भी विज्ञान खोज ही रहा है, किन्तु आदि अनादिकाल में रचे गए गरूड़ पुराण में इन समस्त प्रश्नों के जवाब मिल जाते हैं। मरने के बाद क्या होता है? क्या मृत्यु के बाद जीवन है? क्या मौत दर्दनाक है? पुनर्जन्म कैसे हो? मृत्यु के बाद आत्मा कहां जाती है? जब हमारे किसी सगे संबंधी का निधन होता है तब हमारे मन में इस तरह के सवाल आते हैं। ऐसे समय में हम सोचते हैं कि क्या उस व्यक्ति के साथ हमारा रिश्ता खत्म हो गया है? क्या हम उस व्यक्ति को फिर कभी नहीं देख सकते हैं?
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
जानकार विद्वानों का मानना है कि इस तरह के हर सवाल का जवाब गरूड़ पुराण में निहित है। मृत्यु वास्तव में एक दिलचस्प कार्रवाई या कालक्रम है। मृत्यु से लगभग 2 से 3 घंटे पहले पैरों के तलवे ठंडे होने लगते हैं। इन लक्षणों से संकेत मिलता है कि पृथ्वी चक्र जो पैर के तल पर है, यह शरीर से मुक्त होता जा रहा है। ऐसा कहा जाता है कि जब शरीर छोड़ने का समय आता है तब यमदूत मृतक का मार्गदशर्न करने आते हैं।
वहीं लाईफ लाईन का सामान्य अर्थ आत्मा और शरीर का संबंध माना जा सकता है। जब शरीर का संबंध आत्मा से काट दिया जाता है उस प्रक्रिया को ही मृत्यु कहा जाता है। जीवन रेखा के बाधित हो जाने के बाद पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण के विपरीत खींचे जाने का अनुभव होता है। वहीं, आत्मा जिस शरीर में इतने लंबे समय तक रही, वह उस शरीर को छोड़ने को तैयार नहीं होती है, वह बार बार शरीर में प्रवेश की नाकाम कोशिश में लगी रहती है। कई बार मृत्यु के उपरांत भी हाथ, पैर या शरीर के किसी हिस्से में हलचल महसूस होती है।
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विद्वानों के अनुसार जब आत्मा के द्वारा शरीर को त्यागा जाता है तब वह अनेक प्रकार की आवाजें सुनने में सक्षम हो जाती है। आसपास खड़े लोग मन में जो भी सोचते हैं वह सब कुछ आत्मा के द्वारा सुन लिया जाता है। आत्मा उन सभी से बात करने की कोशिश करती है पर कोई आत्मा की आवाज नहीं सुन पाता, धीरे धीरे आत्मा को पता चलने लगता है कि वह शरीर को त्याग चुकी है। अंतिम संस्कार तक आत्मा शरीर के आसपास ही विद्यमान रहती है। आत्मा अंतिम यात्रा में भी साथ होती है और जब शरीर पंचतत्व में विलीन होता है तब वह उसकी साक्षी बनती है, एवं उसके बाद वह स्वयं को मुक्त हुआ महसूस करती है।
विद्वानों के अनुसार गरूड़ पुराण में इस बात का भी उल्लेख है कि आत्मा पहले सात दिनों के लिए अपने मनपसंद स्थान पर जाती है, अगर उसे अपनी पत्नि, संतनों से प्रेम होगा तो वह उनके कमरे में विद्यमान रहेगी, रूपए पैसों से मोह होगा तो तिजोरी के आसपास रहेगी, पशुओं से प्रेम होगा तो घर के पशुओं के आसपास रहेगी। सात दिनों के उपरांत आत्मा अपने परिवार को अलविदा कहकर दूसरी दुनिया की ओर प्रस्थान करने लगती है। यही कारण है कि कहा जाता है कि मृत्यु के 12 दिनों तक आत्मा की बहुत ही कठिन परीक्षा होती है।
जानकारों के अनुसार मृतक के परिजनों के लिए 12 वें या 13वें शास्त्र संस्कार, पिंडदान और क्षमा याचना में जो कुछ भी है, उसकी विधि करना बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए कि वह आत्मा अपने साथ नकारात्मक उर्जा, क्रोध, राग, द्वेष आदि साथ लेकर न जाए। आत्मा के पीछे प्रत्येक अनुष्ठान को सकारात्मक उर्जा के साथ इसलिए किया जाना जरूरी है ताकि वह आत्मा के स्वर्गारोहण में सहायक सिद्ध हो सके।
विद्वानों के अनुसार गरूड़ पुराण में यह भी निहित है कि 11वें एवं 12वें संस्कारों में होम हवन आदि किए जाते हैं ताकि आत्मा अपने देवलोकवासी पिता, माता, सखाओं एवं रिश्तेदारों आदि से मिल सके। जिस तरह पृथ्वी लोक पर लंबे समय बाद मिलने पर आलिंगन किया जाता है उसी तरह वहां भी होता है। इसके बाद उस जीव की आत्मा को उसके मार्गदर्शकों के द्वारा कर्म समिति के पास ले जाया जाता है जहां हिसाब किताब भगवान चित्रगुप्त के द्वारा किया जाता है। यहां कोई अन्य देव या न्यायधीश मौजूद नहीं रहते हैं।
गरूण पुराण के अनुसार बहुत ही तेजमय वातावरण में आत्मा के द्वारा अपने पिछले जीवन को चलचित्र की भांति देखा भी जा सकता है, जिसकी वहां समीक्षा चल रही होती है। यहां उसके द्वारा पूर्व में लोगों को दिए गए कष्ट, किसी से बदला लेना, बुरे कर्म आदि से आवगत कराया जाता है, जहां आत्मा को अपराधबोध होने लगता है। इससे वह पश्चाताप कर सकता है और अगले जन्म के लिए इसकी सजा भी मांग सकता है। इसके उपरांत यहां आत्मा अब अहंकारमुक्त निर्मल हो जाती है। यहां लिया गया निर्णय उसके अगले जन्म का आधार भी बनता है। यहां उसके नए जन्म का एक खाता भी तैयार किया जाता है। इसमें पिछले जन्म में किए गए पापों की सजा और पुण्य कर्मों के लिए पारितोषक तय कर दिए जाते हैं।
जानकार विद्वानों के अनुसार गरूड़ पुराण में इस बात का उल्लेख भी है कि इसी नए खाते के अनुसार आत्मा के पुर्नजन्म का समय भी तय हो जाता है। वहां उस आत्मा को अपने माता पिता चुनने का अधिकार भी प्रदान किया जाता है। माता के गर्भ में वह कब प्रवेश करेगा इसका अधिकार भी उसे ही दिया जाता है। यही कारण है कि कहा जाता है कि व्यक्ति को जन्म से 40 दिनों तक उसका पिछला जन्म याद रहता है, पर वह अवस्था शैशवकाल की होती है इसलिए व्यक्ति उसे याद नहीं रख पता है। आपने देखा होगा कि महज एक माह का शिशु कई बार सोते सोते या देखते देखते हंसने लगता है। 40 दिनों बाद उसकी पुरानी यादों को विस्मृत कर दिया जाता है। आने वाले समय में वह व्यक्ति अपने बुरे या अच्छे समय के लिए पूर्व जन्म के कर्मों के बजाए ग्रहों या भगवान को इसका श्रेय या दोष देता है। जबकि हकीकत यही है कि उस आत्मा ने इस शरीर में प्रवेश के पहले ही माता, पिता, मित्र, रिश्तेदार, जीवनसाथी, शत्रु आदि को भी चुनती है। कहा जाता है कि निधन के 12 दिनों के बाद हर आत्मा को स्वर्ग के लिए प्रस्थान करना होता है, उसके बाद वहां का प्रवेश द्वार बंद हो जाता है, फिर वह स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर पाता और इसी पृथ्वी पर भूत योनि में रह जाता है।
जानकार विद्वानों के अनुसार 84 लाख योनियों का जिक्र केवल पुराणों में वर्णित किया गया है। अब आप सोचिए 84 लाख योनियाँ हैं तो उनके कर्म निर्धारण का भी कोई लेखा जोखा के निमित्त इस ग्रंथ की रचना की गयी। जिस प्रकार मानवीय व्यवहार के लिये हम उनके लिये क़ानून, नियम, समयसारणी, कार्य निर्धारण, साम, दाम, दंड, भेद की नीतियों को लागू कर देतें हैं। तांकि उनके जीवन को सुसज्जित रूप से जीवन को सुधारा जा सके। उसी प्रकार सम्पूर्ण जीव मंडल को 84 के फेर से मुक्त कराने के लिये उसको अनेकानेक दुष्कार्य के आने वाले परिणामों को दर्शाना और येन केन प्रकारेण सम्पूर्ण जीवमंडल को उत्तम कार्य करने की ओर उन्मुख करना ही इस महान ग्रंथ का उद्देश्य रहा है।
अब यह धारणा भी बनी हुई है कि क्या जीवित रहते हुए गरूड़ पुराण नहीं पढ़ना चाहिए! इसका जवाब यही है कि अगर जीवित व्यक्ति गरुड़ पुराण नहीं पढता, तो कौन पढता है? मृतक आत्मा या शव? क्या आत्मा या शवों के लिए गरुड़ पुराण लिखा और बांचा जाता रहा है। इसे कोई भी कभी भी पढ़ सकता है। पुराण पढ़ने के लिए कोई नियम नहीं है।
पितृ पक्ष में अगर आप भगवान विष्णु जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)