जानिए स्कंदमाता की पूजा विधि, कथा, भोग, मंत्र आदि के बारे में विस्त्रत जानकारी . . .

नवरात्र का पांचवा दिन, माता के स्कंदमाता स्वरूप की करें अराधना, पाएं मनोवांछित फल . . .
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नवरात्रि चाहे वह शारदेय हो वासंतेय हर नवरात्र के पांचवें दिन स्कंदमाता की अराधना की जाती है। भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय को स्कंद के नाम से भी जाना जाता है। भगवान स्कंद को माता पार्वती ने प्रशिक्षित किया था, इसलिए माता दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता कहते हैं। स्कंदमाता का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है, स्कंद व माता और इसका अर्थ होता है – स्कंद की माता। स्कंद का अर्थ है कार्तिकेय, जो कि महादेव और माता पार्वती के पुत्र हैं। माता का अर्थ है मां और इसी प्रकार स्कंदमाता माता, पार्वती का ही एक रूप हैं।
अगर आप जगत जननी माता दुर्गा की अराधना करते हैं और अगर आप माता दुर्गा जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय भवानी, जय दुर्गा अथवा जय काली माता लिखना न भूलिए।
वहीं, एक पौराणिक कथा के अनुसार, कहते हैं कि एक तारकासुर नामक राक्षस था। जिसका अंत केवल शिव पुत्र के हाथों की संभव था। तब मां पार्वती ने अपने पुत्र स्कंद जिन्हें कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है, को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कंद माता का रूप लिया था। स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षण लेने के बाद भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का अंत किया था।
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वैसे स्कंदमाता को इन नामों से भी जाना जाता है,
स्कंदमाता, हिमालय की पुत्री पार्वती हैं। इन्हें माहेश्वरी और गौरी के नाम से भी जाना जाता है। पर्वत राज हिमालय की पुत्री होने के कारण पार्वती कही जाती हैं। इसके अलावा महादेव की पत्नी होने के कारण इन्हें माहेश्वरी नाम दिया गया और अपने गौर वर्ण के कारण गौरी कही जाती हैं। माता को अपने पुत्र से अति प्रेम है। यही कारण है कि मां को अपने पुत्र के नाम से पुकारा जाना उत्तम लगता है। मान्यता है कि स्कंदमाता की कथा पढ़ने या सुनने वाले भक्तों को मां संतान सुख और सुख संपत्ति प्राप्त होने का वरदान देती हैं।
अब जानिए मॉ स्कंदमाता की कथा,
मां स्कंदमाता की 4 भुजाएं हैं। मां एक हाथ में कार्तिकेय को पकड़े हुए हैं और उनके दूसरे व तीसरे हाथ में कमल का पुष्प है। अपने चौथे हाथ से स्कंदमाता अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। स्कंदमाता की सवारी एक शेर है। स्कंदमाता विशुद्धि चक्र की अधिष्ठात्री देवी हैं। विशुद्धि चक्र हमारे गले के उभरे हुए भाग के ठीक नीचे स्थित होता है। मां स्कंदमाता की सच्चे मन से पूजा करने से विशुद्धि चक्र जागृत हो जाता है, जिससे वरी की सिद्धि प्राप्त होती है। मां स्कंदमाता का वाहन मयूर भी है, इसलिए इन्हें मयूर वाहन के नाम से भी जाना जाता है। उनका वर्ण यानी त्वचा का रंग शुभ्र है। माता हमेशा कमल पर विराजित रहती हैं और इसलिए, वह पद्मासना देवी के रूप में भी मानी और पूजी जाती हैं। मां स्कंदमाता का मन पूर्ण रूप से लौकिक और सांसारिक संबंधों से दूर रहता है। स्कंदमाता का पूजन करने वाले व्यक्ति और जीव, मुख्यतः सांसारिक बंधनों में रहकर भी उनसे मुक्त होते हैं।
मां दुर्गा के स्कंदमाता अवतार की ऐसी मान्यता है, कि माता सती द्वारा अपना देह त्यागने के बाद, भगवान शिव ने खुद को सजा देने के लिए स्वयं को सांसारिक बंधनों से दूर कर लिया था और एक तपस्वी के रूप में पहाड़ों के बीच, कड़ी सर्दी में तपस्या करने चले गए थे। इसी दौरान, तारकासुर और सुरपद्मन नाम के दो राक्षसों ने देवताओं पर हमला कर दिया। उस वक्त, देवताओं की मदद करने के लिए कोई नहीं था।
तारकासुर और सुरपद्मन नाम के दोनों राक्षसों को ब्रम्हा जी द्वारा यह वरदान प्राप्त था, कि उन्हें मारने के लिए शिव जी की संतान को ही आना होगा। उन राक्षसों ने चारों ओर हाहाकर मचाई और कलह का माहौल बनाया हुआ था और अपने आसपास, हर किसी को परेशान करके रखा था। इन दोनों राक्षसों के अत्याचारों को देख, देवतागण भी चिंतित थे। तब सभी देवतागण भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें अपना दुख सुनाया। परंतु विष्णु जी ने उनकी कोई मदद नहीं की। विष्णु जी से मदद न मिलने पर, देवताओं ने नारद जी के पास जाने का विचार किया।
उन्होंने नारद जी से कहा, कि यदि वह माता पार्वती से भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या करने को कहेंगे, तब शायद भगवान शिव उनसे शादी कर लें और उनके मिलन से महादेव की संतान जन्म ले, जो उन राक्षसों का वध कर सके। इसलिए नारद जी के कहे अनुसार, माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की और उनकी भक्ति से खुश होकर, भगवान शिव ने उनसे विवाह करने का निर्णय लिया।
विवाह के पश्चात, माता पार्वती और भगवान शिव की ऊर्जा से एक बीज का जन्म हुआ। बीज के अत्यधिक गर्म होने के कारण, उसे अग्नि देव को सर्वाना नदी में सुरक्षित रखने के लिए सौंपा दिया गया। अग्निदेव भी उसकी गर्मी सह नहीं पाए, इसलिए उन्होंने उस बीज को गंगा को सौंप दिया, जो उसे आखिर में सर्वाना झील में ले गईं, जहां माता पार्वती पहले से ही पानी के रूप में मौजूद थीं और उस बीज को धारण करते ही, वह गर्भवती हो गईं। कुछ समय पश्चात, कार्तिकेय ने अपने छह मुखों के साथ जन्म लिया।
भगवान कार्तिकेय के जन्म के बाद, उन्हें तारकासुर और सुरपद्मन का विनाश करने के लिए तैयार किया गया। सभी देवताओं ने मिलकर, उन्हें अलग अलग तरीके का ज्ञान दिया और राक्षसों से लड़ने के लिए, उन्हें महत्वपूर्ण शस्त्र भी दिए। आखिर में कार्तिकेय ने सभी राक्षसों का वध कर दिया। इसी कारण मां दुर्गा को स्कंदमाता यानी कार्तिकेय की माता के रूप में जाना जाता है। स्कंदमाता के मंदिर पूरे भारतवर्ष में कई जगह स्थापित हैं, लेकिन उनमें से एक बहुत प्रचलित, उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित है।
देवी स्कंदमाता का स्वरूप जानिए,
उन्हें अत्यंत दयालु माना जाता है। कहते हैं कि देवी दुर्गा का यह स्वरूप मातृत्व को परिभाषित करता है। स्कंदमाता कमल के आसन पर भी विराजमान होती हैं इसलिए इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। कहते हैं कि संतान सुख की प्राप्ति के लिए माता की पूजा के साथ ही उनके मंत्र की आराधना भी विशेष फलदायी होता है।
माता का वाहन सिंह है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा। इसकी गोद में स्कंद बालस्वरूप में विराजित हैं। देवी स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं। अपनी दाईं ओर की भुजा से देवी स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं और नीचे भुजा में कमल का फूल है। बाईं ओर ऊपर की भुजा में वरदमुद्रा में है और नीचे भुजा में भी कमल का फूल है। इनका वर्ण बिल्कुल शुभ्र है। कमल पर विराजमान होने के कारण इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है।
जानिए स्कंदमाता को क्या भोग पसंद है,
स्कंदमाता को पीले रंग की वस्तुएं सबसे प्रिय हैं। इसलिए उनके भोग में पीले फल और पीली मिठाई अर्पित की जाती है। आप इस दिन केसर की खीर का भोग भी मां के लिए बना सकते हैं। विद्या और बल के लिए मां को 5 हरी इलाइची अर्पित करें और साथ में लौंग का एक जोड़ा भी चढ़ाएं।
जानिए पीले रंग के महत्व के बारे में,
स्कंदमाता की पूजा में पीले या फिर सुनहरे रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। मां का श्रृंगार पीले फूल से करें और मां को सुनहरे रंग के वस्त्र अर्पित करें और पीले फल चढ़ाएं। पीला रंग सुख और शांति का प्रतीक माना जाता है और इस रूप में दर्शन देकर मां हमारे मन को शांति प्रदान करती हैं।
अब जानिए मां स्कंदमाता की पूजाविधि,
मां स्कंदमाता के लिए आप ब्रम्ह महूर्त में जल्दी उठकर स्नान कर लें और पूजा के स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर लें। उसके बाद लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर मां की मूर्ति या फिर तस्वीर को स्थापित करें। पीले फूल से मां का श्रृंगार करें। पूजा में फल, फूल मिठाई, लौंग, इलाइची, अक्षत, धूप, दीप और केले का फल अर्पित करें। उसके बाद कपूर और घी से मां की आरती करें। पूजा के बाद क्षमा याचना करके दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें। मां आपका कल्याण करेंगी और आपकी सभी इच्छाएं पूर्ण करेंगी।
आइए, जानते हैं माता की आराधना का विशेष मंत्र-
ओम देवी स्कन्दमातायै नमः
इसका अर्थ होता है, ओमकार स्वरूपी स्कंध माता जो कि अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं को क्षण भर में पूर्ण कर देने वाली है, उनके चरणों में बारंबार नमस्कार है।
स्कंदमाता की उपासना से बाल रूप स्कंद भगवान की उपासना स्वयं हो जाती है। मां स्कंदमाता की उपासना से उपासक की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। हमें भी स्कंदमाता की शरण प्राप्त हो यही प्रार्थना करना चाहिए।
जानिए मां स्कंदमाता का पूजा मंत्र,
सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
मां दुर्गा का स्कंदमाता अवतार हमें यह सिखाता है, कि कैसे एक मां सदैव अपने बच्चे को अच्छाई की और बढ़ना सिखाती है। यदि कभी जीवन में बुराई का सामना करने के लिए शस्त्र भी उठाने पड़े, तो मां अपना पूरा समर्थन देती है। इसलिए हमें अपनी मां का सदैव सम्मान करना चाहिए और उन्हें हर चीज़ के लिए आभार प्रकट करना चाहिए।
अगर आप जगत जननी माता दुर्गा की अराधना करते हैं और अगर आप माता दुर्गा जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय भवानी, जय दुर्गा अथवा जय काली माता लिखना न भूलिए।
यहां बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन आदि सिर्फ मान्यता और जानकारियों पर आधारित हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी मान्यता या जानकारी की समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है। यहां दी गई जानकारी में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंतकथाओं, किंवदंतियों आदि से संग्रहित की गई हैं। आपसे अनुरोध है कि इस वीडियो या आलेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया पूरी तरह से अंधविश्वास के खिलाफ है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
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(साई फीचर्स)