दुर्गा सप्तशती के पाठ से माता दुर्गा होती हैं बहुत जल्दी प्रसन्न, देती हैं भक्तों को आर्शीवाद . . .

जगत जननी माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए जरूर करें दुर्गा सप्तशती का पाठ!
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महर्षि व्यास जी के द्वारा रचित महापुराणों में से एक मार्कण्डेय पुराण में दुर्गा सप्तशती की रचना की गई है। इसका उद्देश्य मानवों का कल्याण करना है। दुर्गा सप्तशती को शक्ति और उपासना का श्रेष्ठ ग्रंथ माना गया है। दुर्गा सप्तशती में सात सौ श्लोक और 13 अध्याय हैं। इसे तीन भागों में विभाजित किया गया है, जिनमें प्रथम चरित्र (महाकाली), मध्यम चरित्र (महालक्ष्मी) तथा उत्तम चरित्र (महा सरस्वती) है। दुर्गा सप्तशती के प्रत्येक चरित्र में सात देवियों का उल्लेख मिलता है। दुर्गा सप्तशती का पाठ करना भक्तों के लिए बहुत शुभ माना गया है।
अगर आप जगत जननी माता दुर्गा की अराधना करते हैं और अगर आप माता दुर्गा जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय भवानी, जय दुर्गा अथवा जय काली माता लिखना न भूलिए।
दुर्गा सत्पशती के प्रथम चरित्र में तारा, काली, छिन्नमस्ता, सुमुखी, बाला और कुब्जा का उल्लेख किया गया है।
द्वितीय चरित्र में लक्ष्मी, काली, ललिता, दुर्गा, गायत्री, अरुन्धती और सरस्वती का उल्लेख मिलता है।
तृतीय और अंतिम चरित्र में माहेश्वरी, ब्राम्ही, वैष्णवी, कौमारी, वाराही, नारसिंही और चामुंडा का उल्लेख है।
मार्कण्डेय पुराण में ब्रहदेव जी कहते हैं कि जो भी जातक दुर्गा सप्तशती का पाठ करेगा उसे सुख की प्राप्ति होगी। भगवत पुराण में भी ये बात वर्णित है कि मॉं जगदम्बा का अवतरण श्रेष्ठ मानवों की रक्षा के लिए हुआ है। इसी तरह ऋगवेद के अनुसार मॉं दुर्गा ही आद्य शक्ति हैं और उन्हीं के द्वारा पूरे संसार का संचालन होता है और उनके अलावा इस जगत में कोई अविनाशी नहीं है। दुर्गा सप्तशती के तेरह अध्यायों का विवरण नीचे दिया गया है।
अब जानिए दुर्गा सप्तशती के तेरह अध्याय और उनसे प्राप्त होने वाले फल के संबंध में, दुर्गा सप्तशती में तेरह अध्याय हैं और हर अध्याय का अपना महत्व है। नीचे इन अध्यायों के बारे में बताया गया है।

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सबसे पहले जानते हैं प्रथम अध्याय के बारे में, मेधा ऋषिका राजा सुरथ और समाधि को भगवती की महिमा बताते हुए मधु कैटभ प्रसंग इसमें मिलता है।
अब जानिए प्रथम अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल के बारे में, इस अध्याय का पाठ करने से चिंताएं मिट जाती हैं। अगर आपको मानसिक विकार हैं और इसकी वजह से जीवन में परेशानियां आ रही हैं तो इस अध्याय का पाठ करने से मन सही दिशा की ओर अग्रसर होता है और खोई हुई चेतना वापस लौट आती है।
अब जानिए द्वितीय अध्याय के बारे में, इसमें देवताओं के तेज से देवी मॉं का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना के वध का उल्लेख मिलता है। द्वितीय अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल को जानिए, इस अध्याय का पाठ करने से मुकदमे, झगड़े आदि में विजय प्राप्त होती है। लेकिन आपने यदि इस अध्याय का पाठ दूसरे का बुरा या बुरी नियत से किया तो इसका फल प्राप्त नहीं होता।
दुर्गा सप्तशती के तृतीय अध्याय में सेनापतियों सहित महिषासुर का वध कैसे हुए यह बताया गया है। तृतीय अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल को जानते हैं, इस अध्याय का पाठ आप अपने विरोधियों या शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए कर सकते हैं। यदि आपके शत्रु बिना कारण बन रहे हों और आपको अपने गुप्त शत्रुओं का पता न चल पा रहा हो तो इस अध्याय का पाठ करना आपके लिए उपयुक्त है।
इसका चौथ अध्याय, पूरी तरह इन्द्रादि दवताओं द्वारा देवी मात की स्तुति के लिए समर्पित है। चतुर्थ अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल को जानिए, इस अध्याय का पाठ उन लोगों के लिए लाभकारी होता है जो भक्ति, शक्ति तथा दर्शन से जुड़ना चाहते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो इस अध्याय का पाठ करना उनके लिए अच्छा है जो माता की भक्ति और साधना के द्वारा समाज का कल्याण करना चाहते हैं।
इसका पंचम अध्याय, देवताओं के द्वारा देवी की स्तुति, चण्ड मुण्ड के मुख से अम्बिका के रुप की प्रशंसा सुनकर शुम्भ का उनके पास दूत भेजना और दूत का निराश लौटना आदि को चित्रित करता है। पंचम अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल को जानते हैं, इस अध्याय का पाठ उन लोगों के मनोरथ भी पूरा कर सकता है जिनकी मनोकामनाएं कहीं पूरी नहीं हुई हैं। इस अध्याय का नियमित पाठ करना बहुत शुभ माना गया है।
षष्ठम अध्याय में धूम्रलोचन वध का चित्रण है, अब षष्ठम अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल को जानिए, इस अध्याय का पाठ डर से मुक्ति या किसी बाधा से मुक्ति के लिए करना शुभ होता है। अगर आपकी कुंडली में राहु खराब स्थिति में है या केतु पीड़ित है तो भी इस अध्याय का जाप करना शुभ होता है। अगर तंत्र, जादू या भूत प्रेत से जुड़ी कोई समस्या है तो इस अध्याय का पाठ करें।
दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में चण्ड मुण्ड का वध का चित्रण मिलता है। सातवें अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल के बारे में कहा जाता है कि मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इस अध्याय का पाठ किया जाता है। लेकिन किसी के अहित में यदि आप इस अध्याय का पाठ करते हैं तो आपको बुरे प्रभाव मिल सकते हैं।
इसके अष्टम अध्याय में रक्तबीज का वध का वृतांत है, एवं अष्टम अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल के बारे में कहा जाता है कि इस अध्याय का पाठ वशीकरण या मिलाप के लिए किया जाता है। वशीकरण गलत तरीके नहीं बल्कि भलाई के लिए किया जाए, कोई बिछड़ गया हो तो इस अध्याय का जाप करना असरदायक होता है।
इसके नवम अध्याय में विशुम्भ का वध किस तरह हुआ इसका विवरण है एवं नवम अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल में इस अध्याय का पाठ कामनाओं की पूर्ति के लिए पुत्र प्राप्ति के लिए और खोए हुए लोगों की तलाश के लिए किया जाता है।
इसके दशम अध्याय में शुम्भ का वध है एवं दशम अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल को जानिए, इस अध्याय का पाठ संतान प्राप्ति के लिए करना शुभ माना जाता है। इसके साथ ही संतान गलत रास्ते पर न जाए इसके लिए भी इस अध्याय का पाठ करना शुभ होता है।
दुर्गा सप्तशती के एकादश अध्याय में देवताओं के द्वारा देवी की स्तुति तथा देवी द्वारा देवताओं को वरदान प्रदान किया जाने की कथा है, एकादश अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल के संबंध में कहा जाता है कि इस अध्याय का पाठ करना व्यापारियों के लिए शुभ होता है। इस अध्याय का पाठ करने से व्यापार में सफलता और सुख संपत्ति मिलती है। यदि आपके कारोबार में हानि हो रही है तो इस अध्याय का पाठ करना शुभ है। अगर पैसा नहीं रुकता तो इस अध्याय का पाठ करें।
इसके द्वादश अध्याय में देवी चरित्रों के पाठका माहात्म्य बताया गया है, द्वादश अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल के बारे में कहा गया है कि इस अध्याय का पाठ मान सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिए किया जाता है। यदि आप पर कोई आरोप प्रत्यारोप करता हो तो यह पाठ करें।
मार्कण्डेय पुराण में रचित दुर्गा सप्तशती के त्रयोदश अध्याय में सुरथ और वैश्य को देवी का क्या वरदान मिला है यह बताया गया है एवं त्रयोदश अध्याय के पाठ से मिलने वाले फल के बारे में कहा जाता है किइस अध्याय का पाठ भक्ति मार्ग पर सफलता पाने के लिए किया जाता है। साधना के बाद पूर्ण भक्ति के लिए यह पाठ करें।
अब जानिए कि दुर्गा सप्तशती के तांत्रिक मंत्र क्यों और कैसे शापित हुए,
ऐसा माना जाता है कि दुर्गा सप्तशती के तांत्रिक मंत्र शापित हैं। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार एक समय माता पार्वती को किसी कारण वश अत्यधिक क्रोध आ गया और उन्होंने रौद्र रुप धारण कर लिया, उनके इसी रौद्र रुप को हम मॉं काली कहते हैं। कथा के अनुसार मॉं काली के रुप में क्रोध से भरी मॉं पार्वती ने पृथ्वी पर विचरण करना शुरु कर दिया और सामने आने वाले हर प्राणी का वध वो करने लगीं। उनके इस रुप को देखकर सुर असुरों सहित सभी देवी देवता भी भयग्रस्त हो गए माता के क्रोध को शांत करने के लिए सारे देवी देवता भगवान शिव के पास गए और उनसे प्रार्थना करने लगे। देवी देवताओं ने शिव जी से कहा कि आप ही मॉं काली को शांत कर सकते हैं।
देवी देवताओं के अनुरोध पर देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण के राजा भगवान शिव जी ने सृष्टि के रचयिता ब्रम्हजी को जवाब दिया कि अगर वो ऐसा करते हैं तो इसका परिणाम भयानक हो सकता है। ऐसा करने से पृथ्वी पर दुर्गा के रुप मंत्रों से भयानक शक्ति का उदय होगा और दानव इसका प्रयोग गलत कामों को करने में कर सकते हैं। इसकी वजह से संसार में आसुरी शक्तियों का वास हो जाएगा।
इसके उत्तर में ब्रम्हजी ने भोलेनाथ से कहा कि, आप रौद्र रुप धारण कर देवी को शांत कर दीजिए और इस दौरान उदय होने वाले मां दुर्गा के रुप मंत्रों को शापित कर दीजिए, ताकि भविष्य में किसी के भी द्वारा इन मंत्रों का दुरुपयोग न किया जा सके। इस दौरान वहां भगवान नारद भी मौजूद थे जिन्होंने ब्रम्हजी से पूछा कि हे पितामह अगर भगवान शिव ने उदय होने वाले मॉं दुर्गा के सभी रुप मंत्रों को शापित कर दिया तो, संसार में जिसको सच में देवी के रुपों की आवश्यकता होगी वे लोग तो दुर्गा के तत्काल जाग्रत मंत्र रुपों को पाने से वंचित रह जाएंगे। उन्हें ऐसा क्या उपाय करना पड़ेगा जिससे वो इन जाग्रत मंत्रों का फायदा उठा सकें?
नारद जी के इस सवाल के जवाब में भगवान शिव ने दुर्गा सप्तशती को शापमुक्त करने की विधि बतलाई, जो कि नीचे बताई गई है। जो व्यक्ति इस विधि का अनुसरण नहीं करता और इसके बिना दुर्गा सप्तशती के वशीकरण, मारण और उच्चाटन जैसे मंत्रों को सिद्ध करने की कोशिश करता है तो उसे दुर्गा सप्तशती के पाठ का पूरा लाभ प्राप्त नहीं होता।
दुर्गा सप्तशती शाप मुक्ति की विधि जानिए,
शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति माता दुर्गा के रुप मंत्रों को किसी अच्छे कार्य के लिए जाग्रत करना चाहता है उसे सबसे पहले दुर्गा सप्तशती को शाप मुक्त करना पड़ता है। दुर्गा सप्तशती को शापमुक्त करने के लिए सर्वप्रथम जिन मंत्र का सात बार पाठ करना चाहिए, उनमें
ऊँ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशागुग्रहं कुरू कुरू स्वाहा,
इस मंत्र का उच्चारण करने के बाद जिस मंत्र का उच्चारण 21 बार करना होता है वह है,
ऊँ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरू कुरू स्वाहा,
इसके बाद जिस मंत्र का जाप 21 बार करना चाहिए वह है,
ऊँ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विधे मृतमूत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा,
एवं अंत में जिस मंत्र का 108 बार जप करना होता है वह है,
ऊँ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ऊँ ऐं क्षोंभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं,
जानकार विद्वानों के अनुसार ऊपर दी गई विधि को पूरा करने के बाद दुर्गा सप्तशती ग्रंथ भगवान शिव के शाप से मुक्त हो जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को दुर्गा पाठ की कुंजी के नाम से भी जाना जाता हैं। जब तक इस कुंजी का पाठ नहीं किया जाता तब तक दुर्गा सप्तशती के पाठ से उतना अच्छा फल प्राप्त नहीं होता जितना आप चाहते हैं। शापमुक्त होने के बाद ही दुर्गा सप्तशती का पाठ करना फलदायी साबित होता है।
अगर आप जगत जननी माता दुर्गा की अराधना करते हैं और अगर आप माता दुर्गा जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय भवानी, जय दुर्गा अथवा जय काली माता लिखना न भूलिए।
यहां बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन आदि सिर्फ मान्यता और जानकारियों पर आधारित हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी मान्यता या जानकारी की समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है। यहां दी गई जानकारी में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंतकथाओं, किंवदंतियों आदि से संग्रहित की गई हैं। आपसे अनुरोध है कि इस वीडियो या आलेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया पूरी तरह से अंधविश्वास के खिलाफ है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
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(साई फीचर्स)