जगत जननी माता दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप के पूजन से ब्रम्हांड पर विजय पानी की सामर्थय होती है विकसित . . .

नवरात्र का नौवां दिन, माता सिद्धिदात्री की अराधना से प्राप्त होती हैं सिद्धियां . . .
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या देवी सर्वभूतेषु माता सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमातो नमः।।
यह माता सिद्धिदात्री का पूजा मंत्र है। जगत जननी माता दुर्गा बहुत दयालु मातानी जाती हैं। थोड़ी सी अराधना करने पर ही माता प्रसन्न होकर भक्तों को वरदान देतीं हैं। नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री, दूसरे दिन माता ब्रम्हाचारिणी, तीसरे दिन माता चंद्रघंटा, चौथे दिन माता कुष्माताडा, पांचवे दिन माता स्कंदमाता, छठे दिन माता कात्यायनी, सातवें दिन माता कालरात्रि और आठवें दिन माता महागौरी की पूजा गई। नवरात्रि के आखिरी दिन महानवमी को माता दुर्गा की नौवीं शक्ति माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। माता सिद्धिदात्री की पूजाअर्चना से सभी तरह की सिद्धियां प्राप्त होती है और लौकिकपरलौकिक सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति भी होती है।
अगर आप जगत जननी माता दुर्गा की अराधना करते हैं और अगर आप माता दुर्गा जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय भवानी, जय दुर्गा अथवा जय काली माता लिखना न भूलिए।
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माता दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्रपूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधिविधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रम्हांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।
मातार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमाता, महिमाता, गरिमाता, लघिमाता, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिद्धियाँ होती हैं। ब्रम्हवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है। माता सिद्धिदात्री भक्तों और साधकों को ये सभी सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। देवीपुराण के अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सिद्धियों को प्राप्त किया था। इनकी अनुकम्पा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण वे लोक में श्अर्द्धनारीश्वरश् नाम से प्रसिद्ध हुए।
माता सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमलपुष्प है। प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह माता सिद्धिदात्री की कृपा प्राप्त करने का निरंतर प्रयत्न करे। उनकी आराधना की ओर अग्रसर हो। इनकी कृपा से अनंत दुख रूप संसार से निर्लिप्त रहकर सारे सुखों का भोग करता हुआ वह मातोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
नवदुर्गाओं में माता सिद्धिदात्री अंतिम हैं। अन्य आठ दुर्गाओं की पूजा उपासना शास्त्रीय विधिविधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में प्रवत्त होते हैं। इन सिद्धिदात्री माता की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। सिद्धिदात्री माता के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मातानसिक रूप से माता भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपारसपीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषयभोगशून्य हो जाता है। माता भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती। माता के चरणों का यह सान्निध्य प्राप्त करने के लिए भक्त को निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करने का नियम कहा गया है। ऐसा माताना गया है कि माता भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है। विश्वास किया जाता है कि इनकी आराधना से भक्त को अणिमाता, लधिमाता, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमाता, ईशित्व, सर्वकामातावसायिता, दूर श्रवण, परकामाता प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा गया है कि यदि कोई इतना कठिन तप न कर सके तो अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजाअर्चना कर माता की कृपा का पात्र बन सकता ही है। माता की आराधना के लिए इस श्लोक का प्रयोग होता है। माता जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में नवमी के दिन इसका जाप करने का नियम है।
माता सिद्धिदात्री का स्वरूप जानिए
माता सिद्धिदात्री का रूप अत्यंत ही दिव्य है। माता का वाहन सिंह है। यह कमल पर भी आसीन होती हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। दाहिने ओर के नीचे वाले हाथ में चक्र,ऊपर वाले हाथ में गदा और बाईं ओर के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का फूल है। माता सिद्धिदात्री को देवी सरस्वती का भी स्वरूप माताना गया है। इन्हें बैंगनी रंग अतिप्रिय होता है। माता सिद्धिदात्री की अनुकंपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ और इन्हें अर्द्धनारीश्वर कहा गया।
अब जानिए माता सिद्धिदात्री की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने माता सिद्धिदात्री की कठोर तपस्या कर आठों सिद्धियों को प्राप्त किया था। माता सिद्धिदात्री की अनुकंपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी हो गया था और वह अर्धनारीश्वर कहलाएं। माता दुर्गा के नौ रूपों में यह रूप अत्यंत ही शक्तिशाली रूप है। कहा जाता है कि, माता दुर्गा का यह रूप सभी देवीदेवताओं के तेज से प्रकट हुआ है। कथा में वर्णन है कि जब दैत्य महिषासुर के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवतागण भगवान शिव और भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब वहां मातौजूद सभी देवतागण से एक तेज उत्पन्न हुआ और उसी तेज से एक दिव्य शक्ति का निमार्ताण हुआ, जिसे माता सिद्धिदात्री कहा जाता है।
नवरात्रि का नौवां और अंतिम दिन माता सिद्धिदात्री (सिद्धिदात्री/सिद्धिदात्री) को समर्पित एक विशेष अवसर है। उनका नाम, जिसका अर्थ है रहस्यमय शक्तियों (सिद्धि/सिद्धि) की दाता (दात्री/दात्री), अपने भक्तों को आध्यात्मिक आकांक्षाओं की पूर्ति करने वाली के रूप में उनकी भूमिका को पूरी तरह से दर्शाता है। माता सिद्धिदात्री में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में इच्छाओं को पूरा करने की शक्ति है, जो उनकी दयालुता का प्रमाताण है।
भगवान शिव से उनके संबंध का महत्व बहुत गहरा है, क्योंकि वह देवता के अर्धनारीश्वर (अर्धनारीश्वर/अर्धनारीश्वर) रूप को दर्शाती हैं। इस अनोखे रूप में, भगवान शिव के शरीर का आधा हिस्सा सर्वाेच्च पुरुष का है, जबकि दूसरा आधा हिस्सा सर्वाेच्च महिला का प्रतिनिधित्व करता है। अर्धा आधे को दर्शाता है, नारी महिला को दर्शाता है, और ईश्वर भगवान का प्रतिनिधित्व करता है। इस प्रतिनिधित्व में महिला का आधा हिस्सा माता सिद्धिदात्री को समर्पित है, जो उनकी दिव्य उपस्थिति को उजागर करता है।
मान्यता है कि
भगवान शिव ने स्वयं माता सिद्धिदात्री की पूजा के माताध्यम से अपनी रहस्यमय और दिव्य शक्तियाँ प्राप्त कीं। उन्हें अक्सर नीले कमल के फूल पर बैठे हुए दिखाया जाता है, और उनका वाहन सिंह होता है। उनके चार हाथों में प्रत्येक में महत्वपूर्ण प्रतीक होते हैंः एक गदा, एक चक्र, एक कमल और एक शंख, जो उनके बहुमुखी स्वभाव को दर्शाता है।
अपनी दिव्य उपस्थिति में, माता सिद्धिदात्री गंधर्वों, यक्षों, सिद्धों, असुरों और देवताओं से घिरी हुई हैं, जो सभी देवी को नमन करते हैं। नवरात्रि का यह अंतिम दिन भक्तों के लिए उनका आशीर्वाद पाने, अपनी आध्यात्मिक खोजों को पूरा करने और सांसारिक और पारलौकिक दोनों इच्छाओं के लिए उनकी कृपा पाने का समय है।
अब जानिए माता सिद्धिदात्री की पूजा विधि
अपने दिन की शुरुआत सुबह जल्दी उठकर और खुद को शुद्ध स्नान से साफ करके करें। आध्यात्मिक यात्रा के लिए अपनी तत्परता का प्रतीक करने के लिए साफ कपड़े पहनें। माता के लिए एक पवित्र स्थान बनाएँ और अपनी भक्ति के केंद्र में माता सिद्धिदात्री की मूर्ति स्थापित करें। जब आप उनका ध्यान करें, तो देवी को प्रसाद चढ़ाएँ, अपने प्रसाद में शुद्ध इरादे और भक्ति भर दें। माता रानी को अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए फल, फूल और अन्य प्रतीकात्मक प्रसाद का चयन करें। एक दीपक जलाएँ और माता सिद्धिदात्री की आरती करें, अपने आसपास के वातावरण को आध्यात्मिकता की दिव्य चमक से रोशन करें।
पूजा समाताप्त करते समय, माता सिद्धिदात्री का आशीर्वाद लें, अपनी कृतज्ञता और भक्ति व्यक्त करें। इस दिन, भक्तों को खोपड़ी के बीच में निर्वाण चक्र पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इस केंद्रित ध्यान के माताध्यम से, भक्त माता सिद्धिदात्री की कृपा से प्राप्त अपने निर्वाण चक्र में आध्यात्मिक शक्ति का उपयोग कर सकते हैं।
विशेष स्पर्श के लिए, मातौसमी फल, चना, पूरी, खीर, नारियल और हलवा चढ़ाएं, क्योंकि ऐसा माताना जाता है कि नवमी पर इन प्रसादों से माता सिद्धिदात्री प्रसन्न होती हैं। भक्ति और प्रसाद का यह कार्य ईश्वर से जुड़ने और देवी का आशीर्वाद पाने का एक सुंदर तरीका है।
माता सिद्धिदात्री को माना जाता है अलौकिक शक्तियों की प्रदाता,
सृष्टि की कहानी एक विशाल, व्यापक शून्य से शुरू होती है जो पूर्ण अंधकार में लिपटा हुआ है। अचानक, प्रकाश की एक दिव्य किरण फूट पड़ी, जिसने अंधकार को दूर कर दिया और शून्य को उज्ज्वल प्रकाश से नहला दिया। यह प्रकाश, जो शुरू में निराकार था, धीरेधीरे एक दिव्य स्त्री रूप धारण कर लिया, और खुद को आदिशक्ति, सर्वाेच्च देवी के रूप में प्रकट किया।
आदिशक्ति से ब्रम्हा, विष्णु और महेश (शिव) की त्रिमूर्ति प्रकट हुई। दिव्य माता के रूप में, उन्होंने त्रिदेवों को मातार्गदर्शन प्रदान किया, तथा उन्हें ब्रम्हांडीय व्यवस्था को बनाए रखने में अपनी भूमिका पर विचार करने के लिए प्रेरित किया। त्रिदेवों ने उनकी सलाह मातानी और कई वर्षों तक समुद्र के किनारे बैठकर तपस्या की गहन यात्रा पर निकल पड़े।
उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर देवी ने माता सिद्धिदात्री के रूप में उनके सामने प्रकट हुईं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने विष्णु की पत्नी लक्ष्मी, ब्रम्हा की पत्नी सरस्वती और शिव की पत्नी पार्वती का निमार्ताण किया और उन्हें प्रदान किया। त्रिदेवों की भूमिकाएँ निर्धारित की गईंः ब्रम्हा ने संसार की रचना की, विष्णु ने इसके संरक्षण की और शिव ने प्रलय के दौरान अंतिम विलीनीकरण की, उनकी शक्तियाँ उनकी संबंधित पत्नियों में निहित थीं।
माता सिद्धिदात्री ने उन्हें अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए सशक्त बनाने का वादा किया। उन्होंने उन्हें आठ सिद्धियाँ प्रदान कीं, अर्थात् अणिमाता, महिमाता, गरिमाता, लघिमाता, प्राप्ति, प्राकम्ब्य, ईशित्व और वशित्व, साथ ही नौ निधियाँ और दस अन्य अलौकिक क्षमताएँ। उनके आशीर्वाद से, सूक्ष्मजीवों से लेकर आकाशीय प्राणियों, सितारों, आकाशगंगाओं, नक्षत्रों और सौर मंडलों तक की विशाल सृष्टि सामने आई। 14 लोकों ने आकार लिया और माता सिद्धिदात्री ने कमल पर विराजमातान होकर चार भुजाओं में कमल, गदा, चक्र और शंख धारण किया, अज्ञानता को दूर करने और ईश्वर को महसूस करने के लिए ज्ञान प्रदान किया, जिससे ब्रम्हांड की भव्य रचना पूरी हुई।
माता सिद्धिदात्री को प्रसन्न करने के लिए, जिन चीज़ों का भोग लगाया जाता है उनमें हलवा, पूड़ी, चना, खीर, नारियल, मातौसमी फल शामिल हैं। माता सिद्धिदात्री को तिल भी बहुत पसंद है। इसलिए, उन्हें तिल या तिल से बने सामातान का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से माता सिद्धिदात्री अनहोनी से अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।
माता सिद्धिदात्री की पूजा के साथ-साथ, इस प्रसाद को कन्याओं और ब्राम्हणों में बांटना भी शुभ माना जाता है। ऐसा करने से माता प्रसन्न होती हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। माता सिद्धिदात्री की पूजा करते समय, बैंगनी या जामुनी रंग के वस्त्र पहनना शुभ रहता है। यह रंग अध्यात्म का प्रतीक होता है।
अगर आप जगत जननी माता दुर्गा की अराधना करते हैं और अगर आप माता दुर्गा जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय भवानी, जय दुर्गा अथवा जय काली माता लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)