दतिया की पीताम्बरा माई के दर्शन मात्र से हो जाते हैं दुख दर्द दूर . .
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एक ही शहर के एक ही परिसर में देवी माता की दो प्रतिमाएं वह भी एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न गुणों वाली, जी हां, हम बात कर रहे हैं देश के हृदय प्रदेश मध्य प्रदेश के दतिया शहर की पीतांबरा माई और धूमावती माई की। श्री पीताम्बरा पीठ मध्य प्रदेश राज्य के दतिया शहर में स्थित एक हिंदू मंदिर परिसर जिसमें आश्रम भी है। यह कई पौराणिक कथाओं के साथ साथ वास्तविक जीवन में लोगों की तपस्थली अर्थात ध्यान का स्थान है। यहाँ स्थित श्री वनखंडेश्वर शिव के शिवलिंग को महाभारत के समकालीन के रूप में अनुमोदित किया जाता है। यह मुख्य रूप से देवी माँ को समर्पित शक्ति का आराधना स्थल है।
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माता की स्थापना के संबंध में जानिए,
कहा जाता है कि पीताम्बरा पीठ क्षेत्र में श्री स्वामीजी महाराज के द्वारा माता बगलामुखी देवी और माता धूमवाती देवी की प्रतिमाओं की स्थापना 1935 में कराई गयी थी। 10 महाविद्याओं में से एक सातवीं उग्र शक्ति माता धूमावती का प्रकटोत्सव ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाते हैं, जबकि हर साल वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बगलामुखी जयंती मनाई जाती है। पीताम्बरा पीठ को राजसत्ता और न्याय की देवी माना जाता है, जिनके दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
पीताम्बरा पीठ की स्थापना एक सिद्ध संत, जिन्हें लोग स्वामीजी महाराज कहकर पुकारते थे, ने 1935 में दतिया के राजा शत्रुजीत सिंह बुन्देला सहयोग से की थी। कभी इस स्थान पर श्मशान हुआ करता था। श्री स्वामी महाराज ने बचपन से ही सन्यास ग्रहण कर लिया था। कोई नहीं जानता कि वह कहाँ से आये थे, या उनका नाम क्या था, न ही उन्होंने इस बात का खुलासा किसी से किया। हालाँकि, वे परिव्राजकाचार्य दंडी स्वामी थे, और एक स्वतंत्र अखण्ड ब्रम्हचारी संत के रूप में दतिया में अधिक समय तक रहे। वे कई लोगों के लिए एक आध्यात्मिक प्रतीक थे और अभी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसके साथ जुड़ा हुआ है। उन्होंने मानवता और देश दोनों के संरक्षण और कल्याण के लिए कई अनुष्ठानों और साधनाओं का नेतृत्व किया। गढ़ी मालेहड़ा के पंडित श्री गया प्रसाद नायक जी जिन्हें लोग बाबूजी के नाम से भी पहचानते थे, स्वामीजी के ज्ञान के लिए प्रसिद्ध हैं। पूज्य स्वामीजी महाराज और बाबूजी के गुरुजी गुरुभाई थे। स्वामीजी प्रकांड विद्वान् व प्रसिद्ध लेखक थे। उन्हेंने संस्कृत, हिन्दी में कई किताबें भी लिखी थीं।
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देश के शक्तिपीठों में शुमार पीताम्बरा पीठ पर 10 महाविद्याओं में से एक माता बगलामुखी देवी साक्षात विराजमान हैं, ये राजसत्ता और न्याय की देवी हैं। जिनके दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है। विश्वविख्यात पीताम्बरा पीठ पर माता बगलामुखी देवी की स्थापना 1935 में जब यहां स्वामीजी ने की तब यहां आने से भी लोग डरते थे। पीताम्बरा माई की स्थापना के साथ ही यहां श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ती गई। पीताम्बरा माई जिन्हें लोग माता बगलामुखी देवी के नाम से भी जानते हैं।
श्री पीताम्बरा पीठ, बगलामुखी के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है जो 1920 के दशक में श्रीस्वामी जी द्वारा स्थापित किया गया बताया जाता है। उन्होंने आश्रम के भीतर धूमावती देवी के मंदिर की भी स्थापना की थी, जो कि देश भर में एकमात्र है। धूमावती और बगलामुखी दस महाविद्याओं में से दो हैं। इसके अलावा, आश्रम के बड़े क्षेत्र में परशुराम, हनुमान, कालभैरव और अन्य देवी देवताओं के मंदिर फैले हुए हैं।
वर्तमान में एक ट्रस्ट द्वारा पीताम्बरा पीठ का रख रखाव किया जाता है। एक संस्कृत पुस्तकालय है जो श्रीस्वामी जी द्वारा स्थापित किया गया था, और आश्रम द्वारा अनुरक्षित किया जाता है। आश्रम के इतिहास और विभिन्न प्रकार के साधनाओं और तंत्रों के गुप्त मंत्रों की व्याख्या करने वाली पुस्तकें प्राप्त कर सकते हैं। आश्रम की एक अनूठी विशेषता यह है कि यह संस्कृत भाषा का प्रकाश छोटे बच्चों तक फैलाने का प्रयास करती है, जो निशुल्क है। आश्रम में वर्षों से संस्कृत वाद विवाद कराया जाता रहा है।
अब जानिए पीताम्बरा पीठ का ऐतिहासिक महत्व,
माँ पीताम्बरा, बगलामुखी का स्वरूप रक्षात्मक है। पीताम्बरा पीठ मन्दिर के साथ एक ऐतिहासिक सत्य भी जुड़ा हुआ है। वर्ष 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया था। उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। भारत के मित्र देशों रूस तथा मिस्र ने भी सहयोग देने से मना कर दिया था। तभी किसी योगी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू से स्वामी महाराज से मिलने को कहा। उस समय नेहरू दतिया आए और स्वामीजी से मिले। स्वामी महाराज ने राष्ट्रहित में एक 51 कुंडीय महायज्ञ करने की बात कही। यज्ञ में सिद्ध पंडितों, तांत्रिकों व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को यज्ञ का यजमान बनाकर यज्ञ प्रारंभ किया गया। यज्ञ के नौंवे दिन जब यज्ञ का समापन होने वाला था, उसी समय संयुक्त राष्ट्र संघ का नेहरू जी को संदेश मिला कि चीन ने आक्रमण रोक दिया है, और 11वें दिन अंतिम आहुति के साथ ही चीन ने अपनी सेनाएं वापस बुला ली थीं। मन्दिर प्रांगण में वह यज्ञशाला आज भी बनी हुई है। इसी प्रकार सन् 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी यहाँ गुप्त रूप से पुनः साधनाएं एवं यज्ञ करायें गये थे।
अब जानिए कौन हैं बगलामुखी माता,
माता बगलामुखी जी आठवीं महाविद्या हैं। इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौरापट क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। इसलिए, हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं।
माता बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं। माता बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अतः साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए। प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक है बगलामुखी। माता भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है।
सिर्फ 3 मंदिर है पूरे विश्व में,
जानकार विद्वान बताते हैं कि विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। उनमें से एक है नलखेड़ा में माता बगलामुखी मंदिर। भारत में माता बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो मध्य प्रदेश के दतिया के अलावा प्रदेश के ही शाजापुर जिले के नलखेड़ा और हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में हैं। तीनों का अपना अलग-अलग महत्व है।
मध्य प्रदेश में तीन मुखों वाली त्रिशक्ति माता बगलामुखी का यह मंदिर शाजापुर तहसील नलखेड़ा में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है। द्वापर युगीन यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक है। यहां देशभर से शैव और शाक्त मार्गी साधु संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं। इसके अलावा पीताम्बरा पीठ में भी तंत्र मंत्र क्रियाएं करने वालों की भीड़ लगी रहती है।
जानिए आप किस तरह पहुंच सकते हैं पीताम्बना पीठ तक
पीताम्बरा पीठ, मध्य प्रदेश के दतिया शहर में स्थित है, सबसे निकटमत हवाई अड्डे में ग्वालियर लगभग 75 किलो मीटर और झांसी 29 किलो मीटर दूर स्थित है। इसके अलावा यह रेल मार्ग से भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है और आश्रम दतिया रेलवे स्टेशन से लगभग 3 किलो मीटर दूर स्थित है।
जानकार विद्वान बताते हैं कि माई की स्थापना के कुछ सालों में ही पीताम्बरा पीठ की ख्याति इतनी बढ़ गई। पूरे देश से लोग आने लगे बढ़ने लगी, प्रकांड पंडितों और तंत्र मंत्र के जानकारों का मानना है कि 10 महाविद्याओं में माता बगलामुखी देवी ऐसी देवी हैं अनुष्ठान और अभिषेक से जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं। राजसत्ता की देवी होने के कारण यहां आम लोगों के साथ साथ खास लोगों का भी जमघट लगा रहा है। माता बगलामुखी देवी की ख्याति बगलामुखी अनुष्ठान के द्वारा हर तरह की मनोकामना पूरी करने के लिए भी है।
जानिए किसलिए माना जाता है राजसत्ता की देवी पीताम्बरा माई को,
माता पीताम्बरा को राजसत्ता की देवी माना जाता है, यही कारण है कि राजनेताओं का भी यहां तांता लगा रहता है। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री रहते यहां 5 बार पहुंचीं, इसके अलावा अनेक प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से लेकर देश के सभी प्रमुख राजनेता और व्हीवीआईपी यहां आते रहते हैं। हां पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी या अटल बिहारी वाजपेयी हो या फिर राजमाता विजयाराजे सिंधिया ही क्यों न हो सभी ने माता का आशीर्वाद प्राप्त किया। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर आने वाले की मन्नत जरूर पूरी होती है, उन्हें राजसत्ता का सुख जरूर मिलता है।
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