दीपों का पर्व मनाए जाने के पीछे आदि अनादिकाल से चली आ रही हैं अनेक कथाएं . . .

दीपावली मनाए जाने के पीछे प्रचलित मान्यताओं के बारे में जानिए विस्तार से . . .
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दीपमाला, दिवाली, दीवालाी या दीपावली क्यों मनाई जाती है, इस बारे में अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। सबसे प्रसिद्ध मान्यता है कि भगवान राम के वनवास से लौटने पर अयोध्या में उनका भव्य स्वागत किया गया और खुशियों के दीप जलाए गए। तभी से यह त्योहार मनाया जाता है। लेकिन इसके अलावे भी अनेक कथाएं प्रचलित हैं, जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं। आज हम आपको दीपावली मनाने के पीछे की कुछ कथाओं को बताते हैं।
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं माता लक्ष्मी जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय माता लक्ष्मी एवं हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
पहली कथा है कि श्रीराम के वनवास से लौटने की खुशी में मनाई गई थी दीपावली,
मान्यता यही है कि यह वह कहानी है जो लगभग सभी भारतीय को पता है। कहा जाता है कि मंथरा की बातों में आकर माता कैकई ने राजा दशरथ से भगवान श्री राम को वनवास भेजने का वचन मांग लिया। इसके बाद श्रीराम को वनवास जाना पड़ा। 14 वर्षों का वनवास बिताकर जब भगवान श्री राम अयोध्या लौटे तो अयोध्या के नगर के वासियों ने उनका भव्य स्वागत किया। तभी से दीपावली मनाई जाती है।
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श्रीराम अयोध्या कब लौटे? इस पर इतिहासकारों में मतभेद हैं, लेकिन परंपरा से दीपावली पर उनका आगमन हुआ था। दीपावली का पर्व श्रीराम के पहले से ही मनाया जाता रहा है। जब प्रभु श्रीराम अयोध्या लौटे तो सभी शहर वासी उनके आगमन के लिए उमड़ पड़े थे। कहते हैं कि कार्तिक अमावस्या को भगवान श्रीराम अपना चौदह वर्ष का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने श्रीराम के लौटने की खुशी में दीप जलाकर खुशियां मनायी थीं। संपूर्ण शहर का रंग रोगन कर उसको दीपकों से सजाया गया था। सभी पुरुष, बच्चे और महिलाएं नए वस्त्रों में सजे धजे थे। मिठाइयां बाटी जा रही थीं और उत्सव मनाया गया। उस दौर में पटाखे नहीं होते थे तो पटाखे नहीं छोड़े गए।
दूसरी कथा है पांडवों का अपने राज्य लौटना,
महाभारत काल में कौरवों ने, शकुनी मामा की मदद से शतरंज के खेल में पांडवों को हराकर छलपूर्वक उनका सब कुछ हड़प लिया और उन्हें राज्य छोड़कर 13 वर्ष के लिए वनवास जाना पड़ा। कार्तिक अमावस्या को पांचों पांडव युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव 13 वर्ष का वनवास पूरा कर अपने राज्य लौटे थे। उनके लौटने की खुशी में राज्य के लोगों नें दीप जलाए, खुशियां मनाई। माना जाता है कि तभी से कार्तिक अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है।
जानकार विद्वानों का मत है कि देश की वर्तमान में राजनैतिक राजधानी दिल्ली जिसे इंद्रप्रस्थ के नाम से भी जाना जाता था, में दीपावली मनाने का पहला जिक्र महाभारत में आया है। पांडव जब 12 वर्ष के वनवास व एक वर्ष के अज्ञातवास से वापस लौटे थे, तब इंद्रप्रस्थ वालों ने दीपों से पूरे नगर को सजाया है। पुराणों में भी इसका जिक्र है। ऐतिहासिक तौर पर चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के राज्याभिषेक के दौरान दीपावली मनाने की बात आई है। 7वीं सदी में हर्षवर्धन के नाटकों व 12वीं सदी में राजशेखर की काव्य मीमांसा में इसकी पुष्टि होती हुई प्रतीत होती है।
विद्वानों का कहना है कि दीप पर्व की यह परंपरा आगे भी जारी रही। समन्वय करने की अपनी ताकत से भारतीय संस्कृति में दिल्ली के सुल्तानों व मुगलों पर भी असर डाला। लेकिन इस बार तक ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं कि मुगलकाल में भव्य तरीके से दीपावली मनाई जाती थी। इसका उल्लेख दरबारी व स्वतंत्र इतिहासकारों और यूरोपीय यात्रियों ने खूब किया है।
कहा जाता है कि मिर्जा फैजुद्दीन, उस दौर में बहादुर शाह जफर के दरबारी थे। उन्होंने 1885 में बज्म ए आखिर नाम की किताब लिखी थी। इससे पता चलता है कि 1719 से 1748 के बीच बड़े भव्य तरीके से दीपावली मनाई जाती थी। पूरे तीन दिन उत्सव चलता था। इस दौरान शाही महल में अंदर व बाहर जाना पूरी तरह प्रतिबंधित होता था। शहजादे और शहजादियां महल में अंदर मिट्टी के अंदर छोटे छोटे घरौंदे बनाते। उसकी सजावट करते। महल के मध्य में 40 फीट ऊंचा विशाल दीपक जो पूरी रात रोशनी देता था को जलाया जाता था। कहा जाता है कि इसकी रोशनी लाल किले से चांदनी चौक तक जाती थी। बादशाह को सोने और चांदी से तौला जाता, जिसे गरीबों में बांटा जाता था।
जानकार विद्वानों का यह भी कहना है कि बादशाह अकबर से ज्यादा भव्य दीपावली मुगल बादशाह शाहजहां के काल की थी। इसमें अवरोध औरंगजेब के काल में आया, उन्होंने न तो दरबार में दीपावली नहीं मनाई, न ही इसे प्रोत्साहित किया।
राजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक भी है इसे मनाने का एक कारण,
कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य प्राचीन भारत के महान सम्राट थे। वे एक आदर्श राजा माने जाते थे। उन्हें उनकी उदारता, साहस, कुशाग्र बुद्धि आदि के लिए जाना है। कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या को ही उनका राज्याभिषेक हुआ था। ऐसे धर्मनिष्ठ राजा की याद में तभी से दीपावली का त्योहार मनाया जाता है।
मां लक्ष्मी का अवतार इसी दिन हुआ था,
जानकार विद्वान यह भी बताते हैं कि दीपावली का त्यौहार हिंदी कैलंडर के अनुसार कार्तिक महीने की अमावस्या को मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी जी ने अवतार लिया था। मां लक्ष्मी को धन और समृद्धि की देवी माना जाता है। इसलिए हर घर में दीप जलने के साथ साथ हम माता लक्ष्मी जी की पूजा भी करते हैं।
छठवें सिख गुरु की आजादी भी जुड़ी है इस पर्व से,
जानकारों की मानें तो इस त्यौहार को सिख समुदाय के लोग अपने छठवें गुरु श्री हरगोविंदजी की याद में मनाते हैं। गुरु श्री हरगोविंद जी उन दिनों मुगल सम्राट जहांगीर की कैद में ग्वालियर की जेल में थे। जहां से मुक्त होने पर खुशियां मनाई गईं। तभी से इस दिन त्यौहार मनाया जाता है।
नरकासुर वध की कथा भी जुड़ी है इस त्यौहार से . . .
दीपावली का त्यौहार मनाने के पीछे एक और सबसे बड़ी कहानी है। कहा जाता है कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस का वध किया था। नरकासुर उस समय प्रागज्योतिषपुर का राजा था। वह इतना क्रूर था कि उसने देवमाता अदिति की बालियां छीन ली। देवमाता अदिति श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा की संबंधी थीं। श्रीकृष्ण की मदद से सत्यभामा ने नरकासुर का वध किया था। यह भी दीपावली मनाने का एक प्रमुख कारण बताया जाता है।
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं माता लक्ष्मी जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय माता लक्ष्मी एवं हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)