जानिए दीवाली की कथा एवं कैसे करें माता लक्ष्मी व गणेश जी की पूजा, किस ओर रखें भगवान श्री गणेश की मूर्ति!

जानिए दीवाली पर माता लक्ष्मी के साथ क्यों होती है भगवान श्री गणेशजी की पूजा . . .
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सनातन धर्म सहित अन्य लोग भी हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दीवाली का पर्व परंपरागत उल्लास, भक्तिभाव के साथ मनाते हैं। दीवाली पर सभी माता लक्ष्मी के साथ बुद्धि के दाता भगवान श्रीगणेश की पूजा करते हैं। लेकिन कुछ ही लोगों को पता है कि माता लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा क्यों की जाती है और रिद्धि सिद्धि कौन हैं, साथ ही दीवाली पूजन में शुभ लाभ क्यों लिखा जाता है।
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं माता लक्ष्मी जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय माता लक्ष्मी एवं हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
जानिए, इसलिए की जाती है भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा
जानकार विद्वानों के अनुसार माता लक्ष्मीजी के साथ भगवान श्री गणेशजी की पूजा जरूरी है। माता लक्ष्मी श्री, अर्थात धन संपादा की स्वामिनी हैं, वहीं भगवान श्रीगणेश बुद्धि विवेक के। बिना बुद्धि विवेक के धन संपदा प्राप्त होना कठिन है। माता लक्ष्मी की कृपा से ही मनुष्य को धन समृद्धि की प्राप्ति होती है। मां लक्ष्मी की उत्पत्ति जल से हुई थी और जल हमेशा चलायमान रहता है, उसी तरह लक्ष्मी भी एक स्थान पर नहीं ठहरतीं। लक्ष्मी के संभालने के लिए बुद्धि विवेक की आवश्यकता पड़ती है। बिना बुद्धि विवेक के माता लक्ष्मी को संभाल पाना मुश्किल है इसलिए दीवाली पूजन में लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा की जाती है, ताकि लक्ष्मी माता के साथ बुद्धि भी प्राप्त हो। कहा जाता है कि जब लक्ष्मी मिलती है तब उसकी चकाचौंध में मनुष्य अपना विवेक खो देता है और बुद्धि से काम नहीं करता। इसलिए लक्ष्मीजी के साथ हमेशा गणेशजी की पूजा करनी चाहिए।
अब जानिए माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पौराणिक कथा
18 महापुराणों में से महापुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार, मंगल के दाता श्रीगणेश, श्री की दात्री माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र हैं। एक बार की बात है कि माता लक्ष्मी को स्वयं पर अभिमान हो गया था। तब भगवान विष्णु ने कहा कि भले ही पूरा संसार आपकी पूजा पाठ करता है और आपके प्राप्त करने के लिए हमेशा व्याकुल रहता है लेकिन अभी तक आप अपूर्ण हैं। भगवान विष्णु के यह कहने के बाद माता लक्ष्मी ने कहा कि ऐसा क्या है कि मैं अभी तक अपूर्ण हूं। इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि जब तक कोई स्त्री मां नहीं बन पाती तब तक वह पूर्णता प्राप्त नहीं कर पाती। आप निसंतान होने के कारण ही अपूर्ण हैं।
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यह जानकर माता लक्ष्मी को बहुत दुख हुआ। माता लक्ष्मी का कोई भी पुत्र न होने पर उन्हें दुखी होता देख माता पार्वती ने अपने पुत्र भगवान श्री गणेश को उनकी गोद में बैठा दिया। तभी से भगवान गणेश माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र कहे जाने लगे। माता लक्ष्मी दत्तक पुत्र के रूप में श्रीगणेश को पाकर बहुत खुश हुईं। माता लक्ष्मी ने गणेशजी को वरदान दिया कि जो भी मेरी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा नहीं करेगा, लक्ष्मी उसके पास कभी नहीं रहेगी। इसलिए दीवाली पूजन में माता लक्ष्मी के साथ दत्तक पुत्र के रूप में भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
जानिए किस तरह रखें भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्ति,
जानकार विद्वानों के अनुसार, श्रीगणेश की पूजा सभी देवताओं में सर्वप्रथम की जाती है। जहां श्रीगणेश की पूजा होती है, वहां उनके साथ उनकी पत्नी रिद्धि और सिद्धि अपने पुत्रों शुभ और लाभ के साथ मौजूद रहती हैं। इससे पूजनकर्ता के गृह में विघ्न टल जाता है। रिद्धि और सिद्धि ब्रम्हााजी की पुत्रियां हैं। माता हमेशा अपने पुत्र के दाएं हाथ पर विराजती है। इसलिए गणेशजी की मूर्ति की स्थान माता की मूर्ति के बायीं ओर की जानी चाहिए।
धन की रक्षा करते हैं कुबेर
शास्त्रों के अनुसार, माता लक्ष्मी के धन संपादा के भंडार की देखरेख और रक्षा का कार्यभार भगवान कुबेर के जिम्मे है। किसको कितना धन देना है, कब देना है, इसका भार माता ने कुबेर को दिया है। इसलिए दीवाली पर माता लक्ष्मी गणेश के साथ कुबेर की भी पूजा जरूरी होती है।
अब जानिए दीवाली की कथा,
एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसकी एक लड़की थी। उसने देखा कि लक्ष्मी जी पीपल से निकला करती हैं। एक दिन लक्ष्मी जी उस साहूकार की लड़की से बोली कि मैं तुझ पर बहुत प्रसन्न हूं। इसलिए तू मेरी सहेली बन सकती है। लड़की बोली क्षमा कीजिए मैं अपने माता पिता से पूछकर बताऊंगी। इसके बाद वह आज्ञा पाकर श्री लक्ष्मीजी की सहेली बन गई। महालक्ष्मी जी उससे बहुत प्रेम करती थी।
एक दिन लक्ष्मीजी ने उस लड़की को भोजन का निमंत्रण दिया। जब लड़की भोजन करने के लिए आई तो लक्ष्मी जी ने उसे सोना चांदी के बर्तनों में खाना खिलाया। सोना की चौकी पर बिठाया और उसे बहुमूल्य वस्त्र ओढ़ने को दिए। इसके बाद लक्ष्मी जी ने कहा कि मैं भी कल तुम्हारे यहां आऊंगी। लड़की ने स्वीकार कर लिया और अपने माता पिता को सब हाल कहकर सुनाया। यह सुनकर उसके माता पिता बहुत खुश हुए। लेकिन, लड़की उदास होकर बैठ गई। कारण पूछने पर उसने अपने माता पिता को बताया कि लक्ष्मी जी का वैभव बहुत बड़ा है। मैं उन्हें कैसे संतुष्ट कर सकूंगी। उसके पिता ने कहा कि बेटी गोबर से जमीन को लीपकर जैसा भी बन पड़े रूखा सूखा, श्रद्धा और प्रेम भाव के साथ खिला देना।
यह बात पिता कह भी न पाए की एक चील वहां मंडराते हुए आई और किसी रानी का नौलखा हार वहां डालकर चली गगई। यह देखकर साहूकार की लड़की बहुत प्रसन्न हुई। उसने उस हार को बेचकर लक्ष्मीजी के भोजन का इंतजाम किया। इसके बाद वहां श्री गणेशजी और लक्ष्मी जी वहां आ गए। लड़की ने उन्हें सोने की चौकी पर बैठने को कहा। इस पर महा लक्ष्मीजी और गणेशजी ने बड़े प्रेम से भोजन किया। लक्ष्मी जी और गणेशजी के आने से साहूकार का घर सुख संपत्ति से भर गया। हे लक्ष्मी माता जिस प्रकार उस लड़की पर अपनी कृपा बरसाई। उसी प्रकार सभी घरों में सुख संपत्ति देना। हरि ओम,
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(साई फीचर्स)