साल में एक बार भगवान चित्रगुप्त के वंशज 24 घंटे के लिए कलम अर्थात लेखनी दवात को हाथ क्यों नहीं लगाते!
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न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज के वंशज साल में एक बार 24 घंटों के लिए कलम अर्थात लेखनी और दवात को हाथ नहीं लगाते हैं। ऐसी मान्यता है कि कोई भी कायस्थ न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज पूजा के दिन पूरे 24 घंटों के लिए कलम अर्थात लेखनी, दवात को हाथ नहीं लगा सकता। उस काल को परेवा काल कहते हैं। पूरी दुनिया में कायस्थ दीवाली की पूजा के बाद कलम अर्थात लेखनी रख देते हैं और फिर यमद्वितीया के बाद कलम अर्थात लेखनी दवात की पूजा के बाद ही उसे उठाते हैं।
अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी की अराधना करते हैं और अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय चित्रगुप्त देवा, जय श्री चित्रगुप्त महाराज लिखना न भूलिए।
कायस्थ समाज के लोग 24 घंटे तक कलम अर्थात लेखनी दवात का उपयोग क्यों नहीं करते, इसके विषय में एक बहुत ही रोचक पौराणिक कथा है जो महाकाव्य रामायण से जुडी है। मान्यता है कि श्रीराम की एक भूल के कारण ही न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराजजी ने अपनी कलम अर्थात लेखनी रख दी थी। ये कथा तब की है जब भगवान श्रीराम के द्वारा लंकापति रावण का वध कर 14 वर्ष के वनवास को पूरा करने बाद वापस अयोध्या लौटे। तब भरत, जो उनके खड़ाऊं को राजसिंहासन पर रख कर तब तक राज्य चला रहे थे, उन्होंने श्रीराम के राज्याभिषेक की घोषणा की।
उनके राज्याभिषेक के लिए भरत ने कुलगुरु वशिष्ठ से समस्त देवी देवताओं को मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक में आने का निमंत्रण भेजने को कहा। उन्हें ये कार्य सौंप कर वे राज्याभिषेक की तैयारियों में जुट गए। राज्याभिषेक में सभी देवता आये किन्तु श्रीराम को न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी कही नहीं दिखे। जब उन्होंने इसके बारे में गुरु वशिष्ठ से पूछा तो उन्होंने अपने शिष्यों से पता किया कि कौन न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज महाराज के पास निमंत्रण लेकर गया था।
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इस बारे में खोजबीन के बाद पता चला कि उनके शिष्यों ने न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी को निमंत्रण भेजा ही नहीं था। जब न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी को ये बात पता चली तो वे रुष्ट हो गए और उन्होंने प्राणियों का लेखा जोखा रखने वाली कलम अर्थात लेखनी को नीचे रख दिया। ऐसा पहली बार हुआ कि निरंतर चलने वाली उनकी कलम अर्थात लेखनी रुक गयी। जब सभी देवी देवता राजतिलक से लौटे तो पाया की स्वर्ग और नरक के सारे काम रुक गये थे। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन जो भी प्राणी मृत्यु प्राप्त कर रहे थे वे भी स्वर्ग और नर्क के बीच रुक गए। किसी का लेखा जोखा ना होने के कारण उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि उन्हें स्वर्ग जाना है अथवा नर्क। इन परिस्थितियों में समूची सृष्टि में असंतुलन पैदा हो गया।
जब देवताओं को ये पता चला तो उन्होंने भगवान श्रीराम से ही प्रार्थना कि वे न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज को किसी भी तरह मनाएं। तब भगवान श्रीराम, माता सीता, अपने अनुजों और महर्षि वशिष्ठ को लेकर अयोध्या में स्थापित श्री धर्म हरि मंदिर पहुँचे और वहाँ उन्होंने न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज महाराज की स्तुति और क्षमा याचना की। मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना स्वयं श्रीहरि विष्णु ने की थी और ऐसा भी कहा जाता है कि अयोध्या में आने वाले सभी तीर्थ यात्रिओं को श्री धर्म मंदिर जाना अनिवार्य होता है अन्यथा उन्हें इस यात्रा का पुण्य नहीं मिलता है।
भगवान श्री राम के द्वारा जब न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज को मनाया गया तब उसके पश्चात भगवान श्री राम के आग्रह मानकर भगवान न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज ने लगभग चार पहर अर्थात 24 घंटे के उपरांत पुनः कलम अर्थात लेखनी दवात की पूजा करने के पश्चात उसको उठाया और प्राणियों का लेखा जोखा लिखने का कार्य आरम्भ किया। कहते हैं जब भगवान राम के राजतिलक में निमंत्रण छूट जाने से नाराज भगवान न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज ने कलम अर्थात लेखनी रख दी थी तो, उस समय परेवा काल शुरू हो चुका था, और तभी से कायस्थ दीपावली की पूजा के पश्चात कलम अर्थात लेखनी को रख देते हैं और यम द्वितीया के दिन न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज का विधिवत कलम अर्थात लेखनी दवात पूजन करके ही कलम अर्थात लेखनी को धारण करते हैं।
दीवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा और उसके अगले दिन कार्तिक शुक्ल द्वितीया को भाई दूज का त्योहार होता है। भाई दूज का त्योहार यमराज के कारण हुआ था, इसीलिए इसे यम द्वितीया भी कहते हैं। इस दिन भगवान चित्रगुप्त की पूजा का भी प्रचलन है। कहते हैं कि इसी दिन से न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज लोगों के जीवन का बहीखाता लिखना आरंभ करते हैं।
वहीं, जानकार विद्वानों के अनुसार पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कायस्थ जाति को उत्पन्न करने वाले भगवान चित्रगुप्त का जन्म यम द्वितीया के दिन हुआ था। उन्हें ब्रम्हा का पुत्र माना जाता है। न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज की बही अग्रसन्धानी में प्रत्येक जीव के पाप पुण्य का हिसाब लिखा हुआ है।
अब जानिए न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज की पूजा के कारणों के बारे में,
पुराणों के अनुसार न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज की पूजा करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज की पूजा करने से साहस, शौर्य, बल और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
भैया दूज या भाई दूज के दिन न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज की पूजा के साथ साथ लेखनी, दवात तथा पुस्तकों की भी पूजा की जाती है। इससे विद्या की प्राप्ति होती है।
वणिक वर्ग के लिए यह नवीन वर्ष का प्रारंभिक दिन कहलाता है। इस दिन नवीन बहियों पर श्री लिखकर कार्य प्रारंभ किया जाता है। जिससे कार्य में बरकत बनी रहती है। व्यापार में उन्नती बरकरार रहती है। हरि ओम,
अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी की अराधना करते हैं और अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय चित्रगुप्त देवा, जय श्री चित्रगुप्त महाराज लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)