सच्चे मन से भगवान चित्रगुप्त के पूजन से कायस्थ कुल के वंशजों को प्राप्त होती है कुशाग्र बुद्धि . . .

कायस्थ कुल के लिए यम द्वितीया पर्व पर भगवान चित्रगुप्त की पूजा का है अलग महत्व . . .
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कायस्थ कुल के वंशजों के लिए न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज का पूजन प्रत्येक यम द्धितीया पर करने का अपना अलग ही महत्व माना गया है। कहा जाता है कि सच्चे मन से न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज का पूजन अर्चन, स्मरण आदि करने से कायस्थ कुल के वंशजों को कुशाग्र बुद्धि की प्राप्ति होती है। हर साल दीवाली और होली के बाद द्वितीया तिथि अर्थात दोज या दूज को न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज की पूजा अर्चना की जाती है।
अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी की अराधना करते हैं और अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय चित्रगुप्त देवा, जय श्री चित्रगुप्त महाराज लिखना न भूलिए।
हर साल यम द्वितीया के दिन कलम दवात और कागज की पूजा की जाती है। संपूर्ण आय व्यय का हिसाब लिखकर भगवान को समर्पित किया जाता है। श्रृद्धानुसार भगवान को प्रसादी चढ़ाकर भक्तों में इस प्रसाद का वितरण करने की परंपरा है।
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन ही यह त्यौहार भी मनाया जाता है। यह खासकर कायस्थ वर्ग में अधिक प्रचलित है। उनके ईष्ट देवता ही न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी हैं।
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जो भी प्राणी धरती पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है क्योकि यही विधि का विधान है। विधि के इस विधान से स्वयं भगवान भी नहीं बच पाये और मृत्यु की गोद में उन्हें भी सोना पड़ा। चाहे भगवान राम हों, कृष्ण हों, बुध और जैन सभी को निश्चित समय पर पृथ्वी लोक का त्याग करना पड़ता है। मृत्युपरान्त क्या होता है और जीवन से पहले क्या है यह एक ऐसा रहस्य है जिसे कोई नहीं सुलझा सका है, लेकिन जैसा कि हमारे वेदों एवं पुराणों में लिखा और ऋषि मुनियों ने कहा है उसके अनुसार इस मृत्युलोक के ऊपर एक दिव्य लोक है जहां न जीवन का हर्ष है और न मृत्यु का शोक वह लोक जीवन मृत्यु से परे है।
इस दिव्य लोक में देवताओं का निवास है और फिर उनसे भी ऊपर विष्णु लोक, ब्रम्हालोक और शिवलोक है। जीवात्मा जब अपने प्राप्त शरीर के कर्मों के अनुसार विभिन्न लोकों को जाता है, अपने कर्मों के हिसाब से जिस जीवात्मा विष्णु लोक, ब्रम्हालोक और शिवलोक में स्थान पा जाता है उन्हें जीवन चक्र में आवागमन यानी जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है और वे ब्रम्हा में विलीन हो जाता हैं अर्थात आत्मा परमात्मा से मिलकर परम लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।
जानकार विद्वानों के अनुसार जो जीवात्मा कर्म बंधन में फंसकर पाप कर्म से दूषित हो जाता हैं उन्हें यमलोक जाना पड़ता है। मृत्यु काल में इन्हे आपने साथ ले जाने के लिए यमलोक से यमदूत आते हैं जिन्हें देखकर ये जीवात्मा कांप उठता है, भय से रूदन करने लगती है, परंतु दूत बड़ी निर्ममता से उन्हें बांध कर घसीटते हुए यमलोक ले जाते हैं। इन आत्माओं को यमदूत भयंकर कष्ट देते हैं जिसे नारकीय पीड़ा कहा जाता है, और ले जाकर यमराज के समक्ष खड़ा कर देते हैं। इसी प्रकार की बहुत सी बातें गरूड़ पुराण में वर्णित है।
मृत्यु के देवता यमराज के दरवार में उस जीवात्मा के कर्मों का लेखा जोखा होता है। कर्मों का लेखा जोखा रखने वाले भगवान हैं न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज। यही भगवान न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त जीवों के सभी कर्मों को अपनी पुस्तक में लिखते रहते हैं और जब जीवात्मा मृत्यु के पश्चात यमराज के समक्ष रखा जाता है तो उनके कर्मों को एक एक कर सुनाते हैं और उन्हें अपने कर्मों के अनुसार क्रूर नर्क में भेज देते हैं।
भगवान न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज परमपिता ब्रम्हा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और यमराज के सहयोगी हैं। इनकी कथा इस प्रकार है कि सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरूष आसीन था चुंकि इनकी उत्पत्ति ब्रम्हाण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुआ था अतः ये ब्रम्हा कहलाये। इन्होंने सृष्टि की रचना के क्रम में देव असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री पुरूष पशु पक्षी को जन्म दिया। इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था। धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग भगवान श्री ब्रम्हा जी से की तो ब्रम्हा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरूष उत्पन्न हुआ। इस पुरूष का जन्म ब्रम्हा जी की काया से हुआ था अतः ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज पड़ा।
न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल है। ये कुशल लेखक, कुशाग्र बुद्धि के धनी हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलती है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज की पूजा का विधान है। इस दिन भगवान न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज और यमराज की मूर्ति स्थापित करके अथवा उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धा पूर्वक सभी प्रकार से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर एवं भांति भांति के पकवान, मिष्टान एवं नैवेद्य सहित इनकी पूजा करें। और फिर जाने अनजाने हुए अपराधों के लिए इनसे क्षमा याचना करें। यमराज और न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है। इस संदर्भ में एक कथा का उल्लेख यहां प्रासंगिक होगा, कथा इस प्रकार है।
सौराष्ट्र में एक राजा हुए जिनका नाम सौदास था। राजा अधर्मी और पाप कर्म करने वाला था। इस राजा ने कभी को पुण्य का काम नहीं किया था। एक बार शिकार खेलते समय जंगल में भटक गया। वहां उन्हें एक ब्रम्हाण दिखा जो पूजा कर रहे थे। राजा उत्सुकतावश ब्राम्हण के समीप गया और उनसे पूछा कि यहां आप किनकी पूजा कर रहे हैं।
ब्रम्हाण ने कहा आज कार्तिक शुक्ल द्वितीया है इस दिन मैं यमराज और न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज महाराज की पूजा कर रहा हूं। इनकी पूजा नरक से मुक्ति प्रदान करने वाली है। राजा ने तब पूजा का विधान पूछकर वहीं न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज और यमराज की पूजा की।
काल की गति से एक दिन यमदूत राजा के प्राण लेने आ गये। दूत राजा की आत्मा को जंजीरों में बांधकर घसीटते हुए ले गये। लहुलुहान राजा यमराज के दरबार में जब पहुंचा तब न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज ने राजा के कर्मों की पुस्तिका खोली और कहा कि हे यमराज यूं तो यह राजा बड़ा ही पापी है इसने सदा पाप कर्म ही किए हैं परंतु इसने कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को हमारा और आपका व्रत पूजन किया है अतः इसके पाप कट गये हैं और अब इसे धर्मानुसार नरक नहीं भेजा जा सकता। इस प्रकार राजा को नरक से मुक्ति मिल गयी। हरि ओम,
अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी की अराधना करते हैं और अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय चित्रगुप्त देवा, जय श्री चित्रगुप्त महाराज लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)