श्री न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज के परिवार को जानिए . . .
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न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज के वंशजों उनका अंश जिनमें है उन्हें कायस्थ कहा जाता है, क्योंकि माना जाता है कि सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रम्हा की काया से ही न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज प्रकट हुए थे। भगवान चित्रगुप्त के परिवार के बारे में आज आपको विस्तार से बताने जा रहे हैं।
अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी की अराधना करते हैं और अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय चित्रगुप्त देवा, जय श्री चित्रगुप्त महाराज लिखना न भूलिए।
न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज के वंशजों को कायस्थ कहा जाता है। कायस्थ की बारह प्रमुख शाखाएं हैं श्री न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी को महाशक्तिमान क्षत्रीय के नाम से सम्बोधित किया गया है। न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी के दो विवाह हुए, पहली पत्नी सूर्यदक्षिणा जिन्हें नंदनी के नाम से भी जाना जाता है, जो ब्राम्हाण कन्या थी, इनसे 4 पुत्र हुए जो भानू, विभानू, विश्वभानू और वीर्यभानू कहलाए। दूसरी पत्नी एरावती जिन्हें शोभावति के नाम से भी जाना जाता है, नागवन्शी क्षत्रिय कन्या थी, इनसे 8 पुत्र हुए जो चारु, चितचारु, मतिभान, सुचारु, चारुण, हिमवान, चित्र, और अतिन्द्रिय कहलाए। इसका उल्लेख अहिल्या, कामधेनु, धर्मशास्त्र एवं पुराणों में भी दिया गया है।
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न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज के बारह पुत्रों का विवाह नागराज बासुकी की बारह कन्याओं से सम्पन्न हुआ, जिससे कि कायस्थों की ननिहाल नागवंश मानी जाती है और नागपंचमी के दिन नाग पूजा की जाती है। माता सूर्यदक्षिणा या नंदिनी (श्राद्धदेव की कन्या) के चार पुत्र काश्मीर के आस पास जाकर बसे तथा ऐरावती अर्थात शोभावति के आठ पुत्र गौड़ देश के आसपास बिहार, उड़ीसा, तथा बंगाल में जा बसे। बंगाल उस समय गौड़ देश कहलाता था, पद्म पुराण में इसका उल्लेख किया गया है।
जानिए माता सूर्यदक्षिणा अर्थात नंदिनी के पुत्रों के विवरण के बारे में,
सबसे पहले भानु जिन्हें श्रीवास्तव माना गया है, उनका राशि नाम धर्मध्वज था। न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज ने श्री श्रीभानु को श्रीवास (श्रीनगर) और कान्धार के इलाके में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा था। उनका विवाह नागराज वासुकी की पुत्री पद्मिनी से हुआ। उस विवाह से श्री देवदत्त और श्री घनश्याम नामक दो दिव्य पुत्रों की उत्पत्ति हुई। श्री देवदत्त को कश्मीर का एवं श्री घनश्याम को सिन्धु नदी के तट का राज्य मिला। श्रीवास्तव दो वर्गों में विभाजित हैं पहला खर एवं दूसरे कहलाते हैं दूसर। कुछ अल इस प्रकार हैं वर्मा, सिन्हा, अघोरी, पडे, पांडिया, रायजादा, कानूनगो, जगधारी, प्रधान, बोहर, रजा सुरजपुरा, तनद्वा, वैद्य, बरवारिया, चौधरी, रजा संडीला, देवगन इत्यादि।
दूसरे विभानू जिन्हें सूर्यध्वज माना गया है, उनका राशि नाम श्याम सुंदर था। उनका विवाह देवी मालती से हुआ। महाराज न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज ने श्री विभानु को काश्मीर के उत्तर क्षेत्रों में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा। चूंकि उनकी माता दक्षिणा सूर्यदेव की पुत्री थीं, तो उनके वंशज सूर्यदेव का चिन्ह अपनी पताका पर लगाये और सूर्यध्वज नाम से जाने गए। अंततः वह मगध में जाकर बस गए।
इसके बाद बारी आती है तीसरे अर्थात विश्वभानू जिन्हें बाल्मीकि के नाम से भी जाना जाता है, उनका राशि नाम दीनदयाल था और वह देवी शाकम्भरी की आराधना करते थे। महाराज न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी ने उनको चित्रकूट और नर्मदा के समीप वाल्मीकि क्षेत्र में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा था। श्री विश्वभानु का विवाह नागकन्या देवी बिम्ववती से हुआ। माना जाता है कि उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा नर्मदा नदी के तट पर तपस्या करते हुए बिताया। इस तपस्या के समय उनका पूर्ण शरीर वाल्मीकि नामक लता से ढका हुआ था। उनके वंशज वाल्मीकि नाम से जाने गए और वल्लभपंथी बने। उनके पुत्र श्री चंद्रकांत गुजरात में जाकर बसे तथा अन्य पुत्र अपने परिवारों के साथ उत्तर भारत में गंगा और हिमालय के समीप प्रवासित हुए। आज वह गुजरात और महाराष्ट्र में पाए जाते हैं। गुजरात में उनको वल्लभी कायस्थ भी कहा जाता है।
चाथे थे वीर्यभानू जिन्हें अष्ठाना के रूप में भी पहचाना जाता है, उनका राशि नाम माधवराव था और उन्हीं ने देवी सिंघध्वनि से विवाह किया। वे देवी शाकम्भरी की पूजा किया करते थे। न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज ने श्री वीर्यभानु को आधिस्थान में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा। उनके वंशज अष्ठाना नाम से जाने गए और रामनगर वाराणसी के महाराज ने उन्हें अपने आठ रत्नों में स्थान दिया। आज अष्ठाना उत्तर प्रदेश के कई जिले और बिहार के सारन, सिवान, चंपारण, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, दरभंगा और भागलपुर क्षेत्रों में रहते हैं। मध्य प्रदेश में भी उनकी संख्या ध्यान रखने योग्य है। वह पांच अल में विभाजित हैं।
यह था न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज की पत्नि माता सूर्यदक्षिणा अर्थात नंदिनी के पुत्रों का विवरण, जल्द ही हम आपको न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज की दूसरी पत्नि माता ऐरावती अर्थात शोभावति के पुत्रों का विवरण बताएंगे। हरि ओम,
अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी की अराधना करते हैं और अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय चित्रगुप्त देवा, जय श्री चित्रगुप्त महाराज लिखना न भूलिए।
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(साई फीचर्स)