जानिए इस साल नवंबर में होने वाली छट पूजा की तिथि, महूर्त एवं पूजन विधि . . .
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छठ पूजा को लोक आस्था का महापर्व कहा जाता है। छठ पूजा, जिसे विशेष रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मनाई जाती है, सूर्य देव और छठी माता की आराधना का पर्व है। यह पर्व चार दिन तक चलता है और इसमें श्रद्धालु न केवल सूर्य देवता की पूजा करते हैं, बल्कि अपर्णा या छठी माता की भी आराधना करते हैं। इस साल 2024 में यह पर्व मंगलवार 5 नवंबर से आरंभ होगा, जो शुक्रवार 8 नवंबर तक चलेगा। लेकिन छठ महाव्रत तब तक अधूरा है जब तक इससे जुड़ी कथा नहीं सुनी या पढ़ी नहीं जाती।
अगर आप जगत को प्रकाशित करने वाले भगवान भास्कर अर्थात सूर्यदेव की अराधना करते हैं और अगर आप सूर्यनाराण के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में ओम घृणि सूर्याय नमः अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
जानकार विद्वानों के अनुसार पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के साथ छठ पूजा शुरू हो जाती है। वहीं, षष्ठी तिथि को शाम के समय सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 7 नवंबर को रात 12 बजकर 41 मिनट से शुरू हो रही है, जो 8 नवंबर को रात 12 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, छठ पूजा 7 नवंबर को मनाई जाना उचित होगा।
पंचांग के अनुसार, एक साल में लोक आस्था का महापर्व छठ 2 बार मनाया जाता है। पहला चैत्र महीने में जिसे चैती छठ कहा जाता है। यह छोटे पैमाने पर होता है। यानि कुछ गिने चुने परिवार के लोग इसे मनाते हैं। दूसरा कार्तिक महीने में मनाया जाने वाला छठ है। यह बड़े स्तर पर धूमधाम से मनाया जाता है। भारत ही नहीं बल्कि देश विदेश में भी लोग छठ पर्व मनाते हैं। महापर्व पर लोग रेल, बस और हवाई जहाज से देश विदेश से सपरिवार घर वापस लौटते हैं।
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छठ पूजा का पहला दिन, 5 नवंबर को नहाय खाय, छठ पूजा का दूसरा दिन, 6 नवंबर का खरना, छठ पूजा का तीसरा दिन, 7 नवंबर को संध्या अर्घ्य एवं छठ पूजा का चौथा दिन, 8 नवंबर को उषा अर्घ्य दिया जाएगा।
कार्तिक मास में मनाया जाने वाला छठ कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से 4 दिवसीय लोक आस्था का महापर्व छठ प्रारंभ हो जाता है। सामान्य तौर छठ पर्व बोला जाता है। इसके अलावा इसे महापर्व, बड़का परब, सूर्य षष्ठी, डाला छठ, डाला पूजा और छेत्री पूजा के नाम से जाना जाता है। इस व्रत में महिला/पुरुष नए कपड़े पहनते हैं।
छठ पूजा की प्रक्रिया जानिए
छठ पूजा का पहला दिन यानी नहाय खाय 5 नवंबर (मंगलवार) है। दूसरा दिन 6 नवंबर (बुधवार) को खरना है। तीसरा दिन 7 नवंबर, दिन गुरुवार को शाम का अर्घ्य है। चौथा दिन 8 नवंबर, दिन शुक्रवार को सुबह अर्घ्य के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ का समापन हो जाएगा। सुबह के अर्घ्य के बाद छठ व्रती महिलाएं घर आकर छठ पूजन सामग्री का घर में पूजा कर पारण करेंगी।
छठ पर्व या षष्ठी पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक आस्था का बड़ा पर्व है। दिवाली के 6 दिनों बाद छठ पूजा की शुरुआत होती है। इस साल छठ पूजा 5 नवम्बर से नहाय खाय के साथ शुरू होगी। इसके बाद छठ पर्व चार दिनों तक चलते हुए खरना, संध्या अर्घ्य, प्रातःकालीन अर्घ्य के साथ 8 नवम्बर को समाप्त हो जाएगा। छठ पूजा की शुरुआत कैसे हुई? इसका जवाब हमें कई पौराणिक कहानियों में मिलता है। पौराणिक कहानियों के अनुसार त्रेतायुग में माता सीता और द्वापर युग में द्रौपदी ने छठ पूजा व्रत रखकर सूर्यदेव को अर्ध्य दिया था। आइए, विस्तार से जानते हैं छठ पूजा का इतिहास और छठ पूजा की शुरुआत की कहानी,
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियव्रत बहुत दुखी थे क्योंकि उनके कोई संतान नहीं थी। उन्होंने महर्षि कश्यप को अपनी समस्या बताई। महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ कराने की सलाह दी। यज्ञ के दौरान, आहुति के लिए बनाई गई खीर रानी मालिनी को खाने को दी गई। खीर खाने से रानी गर्भवती हुईं और उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया। लेकिन दुर्भाग्य से, बच्चा मृत पैदा हुआ।
राजा प्रियव्रत पुत्र के शव को लेकर श्मशान घाट गए और दुख में डूबकर अपने प्राण त्यागने ही वाले थे कि तभी बम्हा जी की मानस पुत्री देवी षष्ठी प्रकट हुईं। देवी ने राजा से कहा, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूँ, इसलिए मेरा नाम षष्ठी है। तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार प्रसार करो।
देवी षष्ठी के कहने पर, राजा प्रियव्रत ने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को विधि विधान से उनका व्रत किया। देवी की कृपा से, उन्हें जल्द ही एक स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति हुई। राजा ने पुत्र को पुन प्राप्त करने के बाद नगरवासियों को षष्ठी देवी का प्रताप बताया। तब से पष्ठी देवी की आराधना और उनके व्रत की शुरुआत हुई।
वहीं एक अन्य कथा के अनुसार रामायण की कहानी के अनुसार जब रावण का वध करके राम जी देवी सीता और लक्ष्मण जी के साथ अयोध्या वापस लौटे थे, तो माता सीता ने कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को व्रत रखकर कुल की सुख शांति के लिए षष्ठी देवी और सूर्यदेव की आराधना की थी। इसके अलावा द्वापर युग में द्रौपदी ने भी अपने पतियों की रक्षा और खोया हुआ राजपाट वापस पाने के लिए षष्ठी का व्रत रखा था।
इसकी पौराणिक कथा भी जानिए,
छठ पूजा का पौराणिक महत्व बहुत गहरा है। मान्यता है कि यह पर्व भगवान सूर्य और उनकी पत्नी प्रथा की आराधना के लिए मनाया जाता है। एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब महाराज श्रेयांस ने अपनी पत्नी के गर्भवती होने की ख़ुशी मनाई, तब उनकी पत्नी ने भगवान सूर्य से प्रार्थना की कि उनके पुत्र में बुद्धिमत्ता और शक्ति हो। भगवान सूर्य ने उन्हें छठी माता के माध्यम से आशीर्वाद दिया।
कहा जाता है कि जब एक बार इंद्रदेव ने गर्व से अपने बल का प्रदर्शन किया, तो सूर्य देव ने इसे चुनौती दी। इससे नाराज होकर इंद्र ने सूखे की स्थिति उत्पन्न कर दी। इससे परेशान होकर देवताओं ने छठी माता से मदद मांगी। छठी माता ने न केवल इंद्र का गर्व चूर किया, बल्कि पृथ्वी पर बारिश लाने में भी मदद की। इस घटना के बाद से छठ पूजा का आयोजन शुरू हुआ।
अब छठ पूजा का महत्व जानिए,
ऐसी मान्यता है कि कई लोग लगातार 4 दिनों तक गंगा या अन्य नदियों किनारे या तालाबों के किनारे रहकर सपरिवार छठ मनाते हैं। वहीं कुछ व्रती सिर्फ 2 दिन संध्याकालीन अर्घ्य और प्रातःकालीन अर्घ्य के दिन क्रमशः शाम और सुबह में घाटों पर जाते हैं। ज्यादातर लोग गंगा किनारे व्रत मनाने को प्राथमिकता देते हैं। इसके लिए कई परिवार सुविधानुसार गंगा किनारे रिश्तेदारों, दोस्तों या परिचितों के घर में भी जाकर छठ मनाने की प्राथमिकता देते हैं। इस पूजा के करने से लोगों की कामनाएं पूरी होती हैं और घर में सुख समृद्धि का वास होता है।
अब जानिए नाक से लेकर सिर तक सिंदूर का महत्व,
छठ पर्व पर महिलाएं सिंदूर अपने सिर से लेकर नाक तक लगाती हैं और इस सिंदूर की तुलना सूरज की लालिमा से से की जाती है। इस प्रकार से सिंदूर लगाने के पीछे मान्यता है कि सिंदूर की लंबी लाइन की तरह पति की उम्र भी लंबी होगी। ऐसा करने से छठ माता की कृपा प्राप्ति होती है और वे सुख समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
जानिए नारंगी सिंदूर ही क्यों लगाया जाता है?
मांग में आपने सामान्य तौर पर लाल रंग का सिंदूर भरे हुए महिलाएं देखी होंगी, लेकिन छठ पर्व पर बिहार और झारखंड की महिलाएं नारंगी रंग का सिंदूर सिर से नाक तक लगाती हैं। इसका कारण इस रंग की शुभता है। आपको बता दें कि सिंदूर हनुमान जी को चढ़ाया जाता है। भगवान हनुमान ब्रह्मचारी थे और विवाह के बाद दुल्हन का ब्रम्हचर्य व्रत समाप्त होकर ग्रहस्थ जीवन की शुरूआत होती है। ये प्रथा बिहार और झारखंड की ही नहीं बल्कि कई जगहों पर ऐसा होता है। हरि ओम,
अगर आप जगत को प्रकाशित करने वाले भगवान भास्कर अर्थात सूर्यदेव की अराधना करते हैं और अगर आप सूर्यनाराण के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में ओम घृणि सूर्याय नमः अथवा हरिओम तत सत लिखना न भूलिए।
यहां बताए गए उपाय, लाभ, सलाह और कथन आदि सिर्फ मान्यता और जानकारियों पर आधारित हैं। यहां यह बताना जरूरी है कि किसी भी मान्यता या जानकारी की समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के द्वारा पुष्टि नहीं की जाती है। यहां दी गई जानकारी में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों, दंत कथाओं, किंव दंतियों आदि से संग्रहित की गई हैं। आपसे अनुरोध है कि इस वीडियो या आलेख को अंतिम सत्य अथवा दावा ना मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया पूरी तरह से अंधविश्वास के खिलाफ है। किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें।
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(साई फीचर्स)