यह है न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज का संपूर्ण परिवार . . .
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न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज की पहली पत्नि माता सूर्यदक्षिणा अर्थात नंदिनी के बारे में आपने इसके पहले वाले एपीसोड में विस्तार से जाना कि उनके कितने पुत्र थे और उनके पुत्र कहां कहां जाकर बसे। आज हम आपको बताने जा रहे हैं न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज की दूसरी पत्नि ऐरावती माता और उनके पुत्रों के बारे में विस्तार से,
अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी की अराधना करते हैं और अगर आप भगवान श्री चित्रगुप्त महाराज जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय चित्रगुप्त देवा, जय श्री चित्रगुप्त महाराज लिखना न भूलिए।
माता ऐरावती अर्थात शोभावति माता के पुत्रों में सबसे पहला नाम आता है चारु जिन्हें माथुर के नाम से भी जाना जाता है। वे गुरु मथुरे के शिष्य थे। उनका राशि नाम धुरंधर था और उनका विवाह देवी पंकजाक्षी से हुआ। वह देवी दुर्गा की आराधना करते थे। न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज ने श्री चारू को मथुरा क्षेत्र में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा था। उनके वंशज माथुर नाम से जाने गये।
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उन्होंने वेदों में विश्वास नहीं रखने वाले राक्षसों को हराकर मथुरा में राज्य स्थापित किया। इसके पश्चात उन्होंने आर्यावर्त के अन्य हिस्सों में भी अपने राज्य का विस्तार किया। माथुरों ने मथुरा पर राज्य करने वाले सूर्यवंशी राजाओं जैसे इक्ष्वाकु, रघु, दशरथ और भगवान श्री राम के दरबार में भी कई पद ग्रहण किये। माथुर 3 वर्गों में विभाजित हैं, इनमें देहलवी, खचौली एवं गुजरात के कच्छी शामिल हैं। उनके बीच 84 अल हैं। कुछ अल इस प्रकार हैं जिनमें कटारिया, सहरिया, ककरानिया, दवारिया, दिल्वारिया, तावाकले, राजौरिया, नाग, गलगोटिया, सर्वारिया, रानोरिया इत्यादि शामिल हैं।
इसके बाद दूसरे पुत्र सुचारु जिन्हें गौड़ भी कहा जाता है वे गुरु वशिष्ठ के शिष्य थे और उनका राशि नाम धर्मदत्त था। वह देवी शाकम्बरी की आराधना करते थे। न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी ने श्री सुचारू को गौड़ क्षेत्र में राज्य स्थापित करने भेजा था। श्री सुचारू का विवाह नागराज वासुकी की पुत्री देवी मंधिया से हुआ। गौड़ 5 वर्गों में विभाजित हैं इनमें खरे, दुसरे, बंगाली, देहलवी, वदनयुनि, गौड़ कायस्थ को 32 अल में बांटा गया है। गौड़ कायस्थों में महाभारत के भगदत्त और कलिंग के रुद्रदत्त प्रसिद्ध हैं।
न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज के तीसरे पुत्र चित्र जिन्हें चित्राख्य या भटनागर के नाम से भी जाना जाता है, वे गुरू भट के शिष्य थे। उनका विवाह देवी भद्रकालिनी से हुआ था। वह देवी जयंती की अराधना करते थे। न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी ने श्री चित्राक्ष को भट देश और मालवा में भट नदी के तट पर राज्य स्थापित करने के लिए भेजा था। उन्होंने चित्तौड़ एवं चित्रकूट की स्थापना की और वहीं बस गए। उनके वंशज भटनागर के नाम से जाने गए। भटनागर 84 अल में विभाजित हैं। कुछ अल इस प्रकार हैं दासनिया, भतनिया, कुचानिया, गुजरिया, बहलिवाल, महिवाल, सम्भाल्वेद, बरसानिया, कन्मौजिया इत्यादि। भटनागर उत्तर भारत में कायस्थों के बीच एक आम उपनाम है।
इनके चौथे पुत्र मतिभान जिन्हें हस्तीवर्ण, सक्सेना के नाम से भी जाना जाता है, माता शोभावती (इरावती) के तेजस्वी पुत्र का विवाह देवी कोकलेश से हुआ। वे देवी शाकम्भरी की पूजा करते थे। न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज ने श्री मतिमान को शक इलाके में राज्य स्थापित करने भेजा। उनके पुत्र एक महान योद्धा थे और उन्होंने आधुनिक काल के कान्धार और यूरेशिया भूखंडों पर अपना राज्य स्थापित किया। चूंकि वे शक थे और शक साम्राज्य से थे तथा उनकी मित्रता सेन साम्राज्य से थी, तो उनके वंशज शकसेन या सकसेनप कहलाये। आधुनिक इरान का एक भाग उनके राज्य का हिस्सा था। आज वे कन्नौज, पीलीभीत, बदायूं, फर्रूखाबाद, इटाह, इटावाह, मैनपुरी, और अलीगढ में पाए जाते हैं। ये सक्सेना, खरे और दूसर में विभाजित हैं और इस समुदाय में 106 अल हैं। कुछ अल इस प्रकार हैं जोहरी, हजेला, अधोलिया, रायजादा, कोदेसिया, कानूनगो, बरतरिया, बिसारिया, प्रधान, कम्थानिया, दरबारी, रावत, सहरिया, दलेला, सोंरेक्षा, कमोजिया, अगोचिया, सिन्हा, मोरिया, इत्यादि इसमें शामिल हैं।
न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज के पांचवे पुत्र हिमवान जिन्हें अम्बष्ठ के नाम से भी जाना जाता है, उनका राशि नाम सरंधर था और उनका विवाह देवी भुजंगाक्षी से हुआ। वह देवी अम्बा माता की अराधना करते थे। गिरनार और काठियवार के अम्बा स्थान नामक क्षेत्र में बसने के कारण उनका नाम अम्बष्ट पड़ा।
श्री हिमवान की पांच दिव्य संतानें हुईं जिनमें श्री नागसेन, श्री गयासेन, श्री गयादत्त, श्री रतनमूल और श्री देवधर शामिल हैं। ये पाँचों पुत्र विभिन्न स्थानों में जाकर बसे और इन स्थानों पर अपने वंश को आगे बढ़ाया। इनका विभाजन इस प्रकार हुआ, नागसेन 24 अल में, गयासेन 35 अल में, गयादत्त 85 अल में, रतनमूल 25 अल में एवं देवधर 21 अल में हैं। अंततः वह पंजाब में जाकर बसे जहाँ उनकी पराजय सिकंदर के सेनापति और उसके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य के हाथों हुई।
अम्बष्ट कायस्थ बिजातीय विवाह की परंपरा का पालन करते हैं और इसके लिए खास घर प्रणाली का उपयोग करते हैं। इन घरों के नाम उपनाम के रूप में भी इस्तेमाल किये जाते हैं। ये खास घर जिनसे मगध राज्य के उन गाँवों का नाम पता चलता है जहाँ मौर्यकाल में तक्षशिला से विस्थापित होने के उपरान्त अम्बष्ट आकर बसे थे, में से कुछ घरों के नाम हैं भीलवार, दुमरवे, बधियार, भरथुआर, निमइयार, जमुआर, कतरयार पर्वतियार, मंदिलवार, मैजोरवार, रुखइयार, मलदहियार, नंदकुलियार, गहिलवार, गयावार, बरियार, बरतियार, राजगृहार, देढ़गवे, कोचगवे, चारगवे, विरनवे, संदवार, पंचबरे, सकलदिहार, करपट्ने, पनपट्ने, हरघवे, महथा, जयपुरियार आदि।
न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज के छटवें पुत्र चित्रचारु जिन्हें निगम के नाम से जाना जाता है, का राशि नाम सुमंत था और उनका विवाह अशगंधमति से हुआ। वह देवी दुर्गा की अराधना करते थे। न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी ने श्री चित्रचारू को महाकोशल और निगम क्षेत्र जो सरयू नदी के तट पर स्थित है में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा। उनके वंशज वेदों और शास्त्रों की विधियों में पारंगत थे जिससे उनका नाम निगम पड़ा। वर्तमान में कानपुर, फतेहपुर, हमीरपुर, बंदा, जलाओं, महोबा में रहते हैं। वे 43 अल में विभाजित हैं। कुछ अल इस प्रकार हैं कानूनगो, अकबरपुर, अकबराबादी, घताम्पुरी, चौधरी, कानूनगो बाधा, कानूनगो जयपुर, मुंशी इत्यादि।
भगवान चित्रगुप्त महाराज के सातवें पुत्र चित्रचरण जिन्हें कर्ण के नाम से भी जाना जाता है, का राशि नाम दामोदर था एवं उनका विवाह देवी कोकलसुता से हुआ। वह देवी लक्ष्मी की आराधना करते थे और वैष्णव थे। महाराज न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी ने श्री चारूण को कर्ण क्षेत्र जो वर्तमान का कर्नाटक राज्य है, में राज्य स्थापित करने के लिए भेजा था। उनके वंशज समय के साथ उत्तरी राज्यों में प्रवासित हुए और आज नेपाल, उड़ीसा एवं बिहार में पाए जाते हैं।
उनकी बिहार की शाखा दो भागों में विभाजित है, इसमें गयावाल कर्ण, जो गया में बसे और मैथिल कर्ण जो मिथिला में जाकर बसे। इनमें दास, दत्त, देव, कण्ठ, निधि, मल्लिक, लाभ, चौधरी, रंग आदि पदवी प्रचलित है। मैथिल कर्ण कायस्थों की एक विशेषता उनकी पंजी पद्धति है। पंजी वंशावली रिकॉर्ड की एक प्रणाली है। कर्ण 360 अल में विभाजित हैं। इस विशाल संख्या का कारण वह कर्ण परिवार हैं जिन्हों ने कई चरणों में दक्षिण भारत से उत्तर की ओर पलायन किया। इस समुदाय का महाभारत के कर्ण से कोई सम्बन्ध नहीं है।
चित्रगुप्त महाराज के आठवें पुत्र चारुण श्री अतिन्द्रिय जो कुलश्रेष्ठ भी कहलाते हैं, का राशि नाम सदानंद है और उन्हों ने देवी मंजुभाषिणी से विवाह किया। वह देवी लक्ष्मी की आराधना करते हैं। महाराज न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी ने श्री अतिन्द्रिय (जितेंद्रिय) को कन्नौज क्षेत्र में राज्य स्थापित करने भेजा था।
श्री अतियेंद्रिय न्याय के देवता धर्मराज भगवान चित्रगुप्त महाराज जी की बारह संतानों में से अधिक धर्मनिष्ठ और सन्यासी प्रवृत्ति वाली संतानों में से थे। उन्हें धर्मात्मा और पंडित नाम से जाना गया और स्वभाव से धुनी थे। उनके वंशज कुलश्रेष्ठ नाम से जाने गए।आधुनिक काल में वे मथुरा, आगरा, फर्रूखाबाद, इटाह, इटावाह और मैनपुरी में पाए जाते हैं। कुछ कुलश्रेष्ठ जो की माता नंदिनी के वंश से हैं, नंदीगांव बंगाल में पाए जाते हैं। हरि ओम,
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(साई फीचर्स)