सनातन धर्म में यूं ही गाय को माता नहीं कहा जाता है . . .

इस साल कब है गोपाष्टमी, जानिए शुभ महूर्त, पूजा विधि, सब कुछ विस्तार से . . .
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भगवान श्री कृष्ण की मायाओं का साक्षी रहने वाली मथुरा सहित देशभर में गोपाष्टमी का पर्व बहुत ही धूमधाम से हर साल मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि पर जगत के पालनहार भगवान श्रीकृष्ण ने गौचारण आरंभ किया था। इसलिए इसी तिथि पर गोपाष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। श्रीमदभागवत में वर्णन देखने को मिलता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने गायों के संग खेला करते थे और उन्हें गायों से बहुत ज्यादा प्रेम था।
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हिंदू धर्म में साल की शुरुआत से ही एक से बढ़कर एक महत्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं। जिनमें होली, दीवाली, दुर्गा पूजा, छठ, रक्षाबंधन, भाई दूज, चित्रगुप्त जयंति गोवर्धन पूजा, गणेश उत्सव सहित गोपाष्टमी भी शामिल है, ये सभी तीज त्यौहार देश भर में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। श्रीमदभगवत गीता में इस बात का जिक्र पाया जाता है कि भगवान श्री कृष्ण गायों के संग खेला करते थे। उन्हें गाय से बेहद अधिक लगाव और प्रेम था, जिस कारण गोपाष्टमी मनाई जाती है। इसके पीछे भी एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है।
जानिए गोपाष्टमी 2024 की तिथि और शुभ मुहूर्त के बारे में,
जानकार विद्वानों के अनुसार पंचाग के अनुसार, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरुआत 8 नवंबर को रात 11 बजकर 56 मिनट से होगी। वहीं, इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 9 नवंबर को रात 10 बजकर 45 मिनट पर होगा। ऐसे में गोपाष्टमी का पर्व 9 नवंबर को मनाया जाएगा।
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इसमें बम्ह मुहूर्त सुबह 4 बजकर 54 मिनट से 5 बजकर 47 मिनट तक, विजय मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 53 मिनट से 2 बजकर 37 मिनट तक, गोधूलि मुहूर्त शाम 5 बजकर 30 मिनट से 5 बजकर 57 मिनट तक एवं अभिजित मुहूर्त सुबह 11 बजकर 43 मिनट से 12 बजकर 26 मिनट तक रहेगा।
इस दौरान अशुभ समय के बारे में बताया गया है कि राहुकाल सुबह 9 बजकर 22 मिनट से 10 बजकर 43 मिनट तक, एवं गुलिक काल सुबह 6 बजकर 39 मिनट से 8 बजकर 1 मिनट तक रहेगा।
गोपाष्टमी पूजा विधि जानिए,
इस दिन सुबह जल्दी उठें। स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें। बछड़ों और गायों को स्नान कराएं। सूर्य देव को अर्घ्य दें। इसके बाद गाय और बछड़ों का तिलक करें। चौकी पर भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को विराजमान करें। दीपक जलाकर भगवान श्रीकृष्ण और गौ माता की आरती करें। जीवन में सुख शांति की कामना करें। भगवान कृष्ण को माला और भोग प्रसाद चढ़ाएं। जिसके बाद गौ माता के अंग में मेहंदी, रोली, हल्दी, आदि से गायों को सजाया जाता है। इसके बाद धूप, दीप, फूल, अक्षत, रोली, जलेबी, कपड़े और पानी से पूजा अर्चना कर उनकी आरती उतारी जाती है। पूजा समाप्त होने के बाद गौ ग्रास निकाला जाता है। इसके अलावा, गौ माता की परिक्रमा की जाती है। फिर गाय को रोटी गुड़, फल और मिठाई खिलाएं। इसके बाद भगवान कृष्ण और गौ माता से आशीर्वाद लें। अंत में लोगों को श्रद्धा अनुसार दान करें।
इस दौरान जिन मंत्रों का करें जप करें वे इस प्रकार हैं,
सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता, सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस,
ततः सर्वमये देवि सर्वदेवैरलड्कृते, मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरु नन्दिनी!!
सुरूपा बहुरूपाश्च विश्वरूपाश्च मातरः।
गावो मामुपतिष्ठन्तामिति नित्यं प्रकीर्तयेत।
अब जानिए गोपाष्टमी की पौराणिक कथा
भगवान कृष्ण जब 6 वर्ष के थे, तब उन्होंने माता यशोदा से कहा कि मैय्या अब हम बड़े हो गए हैं, अब से हम गायों को चराएंगे। माता यशोदा ने कहा कि जाकर नंद बाबा से पूछ लो। कृष्ण ने नंदबाबा से गाय चराने को कहा, तो नंदबाबा ने कहा कि अभी तुम छोटे हो, जब बड़े हो जाओगे तब चरा लेना, अभी केवल बछड़े चराओ। तब कृष्णजी ने बछड़ा चराने से मना कर दिया और कहा कि अब मैं केवल गाय चराउंगा। तब नंदबाब ने कहा कि जाओ पंडितजी को बुला लाओ, वे मुहूर्त देखकर बता देंगे कि कब गाय चराना तुम्हारे लिए सही रहेगा। कृष्णजी भाग भागकर पंडितजी के पास गए और कहा कि आपको नंदबाबा बुला रहे हैं और गौ चारण के लिए मुहूर्त देखना है, आप आज का मुहूर्त निकाल देना, मैं आपको काफी माखन दूंगा। पंडितजी नंदबाबा के पास गए और पंचांग देखकर बार बार गिनने लगे। पंडितजी को देख नंदबाबा ने कहा कि आखिर आप बार बार क्या गिन रहे हैं, तब पंडितजी ने कहा कि आज का ही मुहूर्त निकल रहा है और अगले एक साल तक कोई मुहूर्त है भी नहीं। तब नंदबाबा ने कृष्णजी को गाय चराने के लिए अनुमति दे दी। वह शुभ तिथि कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि थी, यह तिथि आगे चलकर गोपाष्टमी कहलाई।
गायों के महत्व का कारण जानिए,
कृष्ण को गाय बहुत प्रिय थी। वे अपने माथे पर गौरज का तिलक लगाते थे। उन्होंने अपने शब्दों और लीलाओं के माध्यम से लोगों को गौ सेवा के प्रति अपना स्नेह दिखाया। इस तरह कृष्ण और बलराम गौरक्षा के प्रतीक हैं। हिंदू संस्कृति में गायों को कोई साधारण जानवर नहीं माना जाता। गायों को माता माना जाता है। कहा जाता है कि गाय का दूध पीने से हमारा मस्तिष्क अधिक सक्रिय रूप से काम करता है और हम अपने शास्त्रों का विश्लेषण आसानी से कर पाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि गायों के अंदर 33 हजार देवी देवता निवास करते हैं। गाय हमारी समृद्धि का प्रतीक है।
गोपाष्टमी का उद्देश्य क्या है जानिए,
गोपाष्टमी का मुख्य उद्देश्य गायों की रक्षा करना तथा उनकी सेवा करना है। हमें हमेशा गायों को सुरक्षित, प्रेमपूर्ण तथा देखभाल करने वाला वातावरण प्रदान करने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि वे कृष्ण की प्रिय हैं। ऐसा कहा जाता है कि जहां गायों की सेवा की जाती है, वहां भगवान हरि असीम कृपा करते हैं। हम गायों के आशीर्वाद पर निर्भर हैं। हमें हमेशा गायों की सेवा करनी चाहिए तथा उनकी देखभाल करनी चाहिए। गायें समृद्धि बढ़ाती हैं तथा आस पास आध्यात्मिकता स्थापित करती हैं। चाहे हम शहर में रहें या गांव में, देसी गाय का दूध पीना तथा उससे बने अन्य दुग्ध उत्पादों का उपयोग करना भी गायों की सेवा में योगदान देता है। ऐसा करके हम देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। हरि ओम,
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