भगवान विष्णु के 24 अवतारों में एक श्री हंस अवतार की अवतरण स्थली पौराणिक हंस तीर्थ क्षेत्र

(एल.एन. सिंह)

प्रयागराज (साई)। प्रयागराज जिले में त्रिवेणी संगम के निकट श्री गंगा जी के पूर्वी तट पर शास्त्री पुल एवं रेलवे पुल के बीच में श्री कैलाश धाम आश्रम के निकट में प्रतिष्ठानपुरी (झूंसी) के कोहना में स्थित है प्रसिद्ध पौराणिक हंस प्रपतन तीर्थ  हंस तीर्थ क्षेत्र जहां भगवान श्री हरि विष्णु के 24 अवतार में एक हंस भगवान का अवतरण हुआ था इसलिए यह क्षेत्र हंस प्रपतन तीर्थ या हंस तीर्थ क्षेत्र कहलाया।

यहां पर हंस का तात्पर्य भगवान विष्णु के अवतार हंस भगवान से है तथा प्रपतन का अर्थ उतरना, नीचे आना अथवा अवतरित होने से है।सतयुग के युगादि तिथि कार्तिक शुक्ल नवमी जो कि अक्षय नवमी या आंवला नवमी के रूप में भी मनाया जाता है को भगवान श्री हरी विष्णु हंस भगवान के रूप में अवतरित हुए थे। भागवत महापुराण में उल्लेख है सनकादिक ऋषि गणों ने ब्रह्मा जी से प्रश्न किया हे परमपिता! मन की चित्तवृत्तियां और गुण एक दूसरे से मिले रहते हैं इसे पृथक कैसे किया जाए तब परमपिता ब्रह्मा ने भगवान श्री हरि का हृदय में ध्यान किया तब भगवान नारायण ने हंस का रूप धारण करके नीर -क्षीर विवेक ज्ञान युक्त हंस गीता तथा गोपाल मंत्रराज का उपदेश किया था जो कि सांख्य योग और वेदांत से अनुप्राणित है; इसके उपरांत स्वयं श्री शालिग्राम अर्चाविग्रह के रूप में हंस तीर्थ मंदिर में प्रतिष्ठित हुए थे।इस पूरे घटना का प्रकटीकरण बहुत ही सुंदर तरीके से मूर्तियों एवं कलाकृतियों के माध्यम से हंस तीर्थ मंदिर में किया गया; जो कि कुंडलिनी योग पर भी आधारित मंदिर है।

यह हम सभी का दुर्भाग्य है कि वर्तमान समय में सत्यम क्रिया योग अनुसंधान संस्थान द्वारा हंस तीर्थ मंदिर पर अवैध अतिक्रमण कर मूर्तियों को नष्ट किया जा रहा है तथा संध्यावट तीर्थ एवं श्री संकष्ट हरण माधव जैसे पौराणिक स्थलों तक भी नहीं जाने दिया जा रहा है।

हंस तीर्थ क्षेत्र से ही संबंधित है पौराणिक हंस कूप जिस पर अभी किसी का भी अवैध अतिक्रमण नहीं है किंतु उसकी अस्मिता को नष्ट करने का प्रयास शास्त्र विरुद्ध आचरणशील तत्वों द्वारा निरंतर किया जा रहा है ।यह प्रयागराज की सांस्कृतिक अमूल्य निधि है जिसका संरक्षण संवर्धन करना उसका जीर्णोद्धार करना ना सिर्फ किसी निकाय का अपितु सभी का दायित्व है क्योंकि इस कूप का ना सिर्फ पौराणिक अपितु औषधीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान है। गंगा जी के पूर्वी तट पर एवं प्रतिष्ठानपुरी झूंसी के उत्तर में तीनों लोकों में विख्यात प्रसिद्ध पौराणिक “हंसप्रपतन तीर्थ/ हंस तीर्थ क्षेत्र” स्थित है। जहां निवास करते हुए पवित्र पौराणिक हंस कूप के शुद्ध जल से स्नान करने एवं आचमन करने से अश्वमेध यज्ञ करने के बराबर फल की प्राप्ति होती है तथा जब तक सूर्य और चंद्रमा रहते हैं तब तक मरणोपरांत जीवात्मा को स्वर्ग में निवास मिलता है।

हंस कूप के पवित्र जल से स्नान करने पर करोड़ों गाय दान करने का फल भी प्राप्त होता है इसका उल्लेख उत्तर प्रदेश कुंभ मार्गदर्शिका में भी किया गया है। पौराणिक हंस कूप के पवित्र जल से स्नान एवं तर्पण श्राद्ध इत्यादि करने पर पितरों को भी ऊर्ध्वगामी गति की प्राप्ति तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है पौराणिक हंस तीर्थ क्षेत्र द्वादश माधव की यात्रा एवं प्रयागराज की अंतर्वेदी परिक्रमा के अंतर्गत भी आता है। माघमहापर्व स्नान के उपरांत संतों एवं श्रद्धालुओं के द्वारा इन तीर्थों का सेवन किया जाता रहा है। आप सभी से अनुरोध है कि इस पवित्र स्थल पर अवश्य आएं एवं पौराणिक हंस तीर्थ क्षेत्र के संरक्षण हेतु यथा सामर्थ्य प्रयास भी करें।

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