प्रयागराज का महाकुंभ मेला, विशेषताओं, महत्व आदि को जानिए विस्तार से . . .
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प्रयागराज कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है, जो हर बारह वर्ष में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर आयोजित किया जाता है। यह मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति, आस्था और इतिहास का एक जीवंत उदाहरण है। हम प्रयागराज कुंभ मेले के इतिहास, महत्व और विशेषताओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
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कुंभ मेले का इतिहास जानिए,
कुंभ मेले की उत्पत्ति के बारे में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, देवताओं और दानवों के बीच अमृत कलश के लिए हुए युद्ध के दौरान, अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरी थीं, जिनमें प्रयागराज भी शामिल है। इन स्थानों पर अमृत की इन बूंदों के पवित्र होने के कारण, यहां कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से, कुंभ मेले का उल्लेख प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मिलता है। इसे भारत का सबसे पुराना मेला माना जाता है। मुगल काल में भी कुंभ मेले का आयोजन होता था और ब्रिटिश शासन के दौरान भी इस मेले का महत्व बना रहा।
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कुंभ मेले का महत्व जानिए,
कुंभ मेला हिंदू धर्म के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह मेला मोक्ष प्राप्त करने का एक माध्यम माना जाता है। मान्यता है कि कुंभ मेले के दौरान गंगा स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, यह मेला सामाजिक एकता और भाईचारे का प्रतीक भी है। लाखों लोग विभिन्न जातियों, धर्मों और क्षेत्रों से यहां एकत्र होते हैं और एक साथ धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
ये रहीं कुंभ मेले की विशेषताएं,
यहां त्रिवेणी संगम अद्भुत है। कुंभ मेला गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर आयोजित किया जाता है। इस संगम को हिंदुओं द्वारा अत्यंत पवित्र माना जाता है।
अखाड़ों की अलग ही है बात, कुंभ मेले में विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत भाग लेते हैं। ये अखाड़े अपने-अपने धार्मिक अनुष्ठानों और परंपराओं के लिए जाने जाते हैं।
कुंभ मेले में विभिन्न प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, जैसे कि आरती, हवन, भजन-कीर्तन आदि का आयोजन बहुत ही भव्य तरीके से किया जाता है।
कुंभ मेला क्षेत्र में तंबू, दुकानें, मंदिर और अन्य धार्मिक स्थल होते हैं, जो बहुत विशाल क्षेत्र में फैले होते हैं।
कुंभ मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है, जैसे कि नृत्य, संगीत और नाटक के जरिए जागरूकता व धार्मिक बातों को विस्तार से समझाया जाता है।
कुंभ मेले का सामाजिक प्रभाव जानिए,
कुंभ मेला न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सामाजिक प्रभाव भी बहुत गहरा है। यह मेला लोगों को एक साथ लाता है, सामाजिक एकता को बढ़ावा देता है और विभिन्न संस्कृतियों के बीच संवाद स्थापित करता है। इसके अलावा, कुंभ मेला स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा देता है।
कुंभ मेले से जुड़ी चुनौतियों को जानिए,
कुंभ मेले के आयोजन में कई चुनौतियां भी आती हैं, जैसे कि भीड़ का प्रबंधन, स्वच्छता, सुरक्षा और यातायात। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार और विभिन्न संगठन मिलकर काम करते हैं। प्रयागराज कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और आस्था का एक अनमोल खजाना है। यह मेला न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से भी इसका बहुत महत्व है। कुंभ मेला भारत की समृद्ध विरासत का एक जीवंत उदाहरण है।
अब जानिए 1965 में जब प्रयागराज के कुंभ मेले का आयोजन हुआ था विशेष परिस्थितियों में,
जानकार बताते हैं कि प्रयागराज कुंभ मेला 1965 का आयोजन एक विशेष परिस्थिति में हुआ था, जब भारत के संबंध पाकिस्तान और चीन के साथ तनावपूर्ण थे। चारों तरफ युद्ध की आशंका मंडरा रही थी, और ऐसे समय में कुंभ का आयोजन अपने आप में एक ऐतिहासिक घटना के साथ ही साथ अनेक चुनौतियां भी सामने दिखाई दे रहीं थीं। हालांकि युद्ध कुंभ के बाद हुआ, लेकिन उस समय के चलते हुए तनाव ने इस मेले को एक विशेष महत्व दिया। इसलिए, 1965 का कुंभ मेला अपने ऐतिहासिक और सामाजिक महत्व के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय माना जाता है।
जानकारों का मानना है कि 1965 के कुंभ मेले में लाखों श्रद्धालुओं ने भाग लिया था। प्रशासन ने सुरक्षा, स्वच्छता और यातायात प्रबंधन के लिए व्यापक इंतजाम किए। साधु-संतों और अखाड़ों की विशेष शोभायात्राएं और शाही स्नान आयोजन के मुख्य आकर्षण रहे। कुंभ मेले में प्रमुख स्नान तिथियां मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, वसंत पंचमी, महाशिवरात्रि आदि पर लाखों श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाने पहुंचे थे, जो कि अपने आप में एक अद्भुत दृश्य उतपन्न कर रहा था।
युद्ध की आशंकाओं के तनाव के बीच लाखों लोगों के आगमन के कारण प्रशासन को भीड़ प्रबंधन, स्वास्थ्य सेवाएं और स्वच्छता सुनिश्चित करने में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। बावजूद इसके, 1965 का कुंभ मेला सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। 1965 का कुंभ मेला भारतीय धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज है।
उस दौर में सन 1965 का प्रयागराज कुंभ मेला धार्मिक श्रद्धा, सांस्कृतिक विविधता और प्रशासनिक कुशलता का उत्कृष्ट उदाहरण था। इसने न केवल आध्यात्मिक चेतना को मजबूत किया, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक स्तर पर भी प्रस्तुत किया।
उस दौर में भी कुंभ के आयोजन के लिए कई माह पूर्व ही तैयारियां प्रारंभ हो गई थीं। उस समय किसी ने बुलडोजर का नाम भी नहीं सुना था, लेकिन इससे उस समय गंगा किनारे की उबड़-खाबड़, बेतरतीब जमीन को समतल किया गया। उस समय ज्यादा घाट नहीं हुआ करते थे। पुण्य सलिला माता गंगा जी की तेज धाराओं ने गंगा जी के किनारों को 30 से 40 फीट गहरे काट दिए थे, जिसके कारण यहां स्नान करना असंभव था। बुलडोजर ने इन किनारों को सपाट बनाया जिससे तीर्थयात्री यहां पर सकुशल स्नान कर सकें। जिस काम को करने में लगभग 100 दिन लगातार वह भी एक हजार से ज्यारा श्रमिकों को लगाना पड़ता, उस काम को बुलडोजर ने सिर्फ एक पखवाड़े अर्थात 15 दिनों में कर दिया।
बुजुर्ग बताते हैं कि सेना के इंजीनियरों ने रेलवे लाइन पर पुल बनाने में बहुत मदद की। इससे रेलों के आने-जाने के समय में न तो रेलों का आवागमन बाधित हुआ और न ही कुंभ में आने-जाने वाली भीड़ सड़कों पर रुकी रही। त्रिवेणी की ओर आने-जाने का मार्ग सुगम किया गया और जगह की कमी के कारण लोगों के रहने का स्थान गंगा के पार झूंसी की ओर किया गया। वहां से इस पार आने के लिए पीपों के छह पुल बनाए गए।
कुंभ मेले के इतिहास में यह पहला मौका था जबकि यहां पर बिजली लगी और इसकी पर्याप्त व्यवस्था की गई। 1000 बिजली के खंभों के लिए 160 मील लंबी तारों का उपयोग किया गया।
उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने भी यहां अनुकरणीय और बेहतरीन कार्य किया था। उन्होंने संपूर्ण मेला क्षेत्र में कीटनाशक विशेषकर डीडीटी का छिड़काव किया जिसके कारण मेले में मच्छर और मक्खियों का प्रकोप नहीं रहा। मेले के प्रारंभ से ही सरकार ने हैजे के टीके लगवाने का प्रबंध किया था। यात्रियों को सलाह दी गई कि वे मेला क्षेत्र में आने से पहले टीके लगवा लें। इसी व्यवस्था के कारण मेले के दौरान किसी भी प्रकार का रोग नहीं फैला। सरकार ने मेले में दुर्घटना से बचने के भी अच्छे इंतजाम किए। घायल यात्रियों को ले जाने के लिए पर्याप्त एंबुलेंस का इंतजाम रखा।
इस दौरान मेला क्षेत्र में 9 अस्थाई अस्पताल भी कैंपों में खोले गए थे। यात्रियों की सुविधाओं के लिए पर्याप्त राशन पानी का इंतजाम भी किया गया। सेवा संस्थानों और संघ ने भी सभी की सुविधाएं उपलब्ध कराईं। भूले-भटके लोगों को खोजकर उनके घर पहुंचाने का काम भी किया गया। मेले में लाउडस्पीकर से खोए लोगों का नाम पुकारा गया।
उस समय उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने मेले में पर्याप्त सुरक्षा और सुविधाओं का मौका मुआयना भी किया। उन्होंने नाव पर सवार होकर घाटों का निरीक्षण भी किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी मेले के इंतजाम का निरीक्षण किया। भारत के लाखों व्यक्तियों की भांति भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री राजेंद्र प्रसाद ने भी त्रिवेणी स्नान किया। इस दिन यहां पर अपार जनसमूह इकट्ठा था। लाखों लोगों ने कुंभ में डुबकी लगाई, और कुंभ अपनी भव्यता के साथ संपन्न हो गया था। हरि ओम,
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(साई फीचर्स)
आकाश कुमार ने नई दिल्ली में एक ख्यातिलब्ध मास कम्यूनिकेशन इंस्टीट्यूट से मास्टर्स की डिग्री लेने के बाद देश की आर्थिक राजधानी में हाथ आजमाने की सोची. लगभग 15 सालों से आकाश पत्रकारिता के क्षेत्र में हैं और समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के मुंबई ब्यूरो के रूप में लगातार काम कर रहे हैं.
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