समता, न्याय और बंधुत्व के प्रतीक माना जाता है संत रविदास जयंति को . . .
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गुरु संत रविदास जयंती, भारतीय संत रविदास महाराज की जन्मतिथि के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व हर साल माघ पूर्णिमा के दिन आता है, जो आमतौर पर फरवरी महीने में होता है। गुरु संत रविदास जी, जिन्हें रैदास जी के नाम से भी जाना जाता है, 15वीं सदी के एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में समाज में व्याप्त जातिवाद, छुआछूत और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई और समता, न्याय और बंधुत्व का संदेश दिया।
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गुरु संत रविदास मध्यकाल में एक भारतीय संत कवि सतगुरु थे। इन्हें संत शिरोमणि संत गुरु की उपाधि दी गई है। इन्होंने रविदासीया, पंथ की स्थापना की और इनके रचे गए कुछ भजन सिख लोगों के पवित्र ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में भी शामिल हैं। इन्होंने जात पात का घोर खंडन किया और आत्मज्ञान का मार्ग दिखाया।
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भारतवर्ष की इस धरती पर कई महान साधु संतों का जन्म हुआ, जिसमें संत शिरोमणि गुरु संत रविदास का भी नाम प्रचलित है। वहीं संत गुरु संत रविदास महान संत थे, जिन्होंने प्रेम और सौहार्द का पाठ पूरी दुनिया को पढ़ाया। संत रविदास ने अपना संपूर्ण जीवन समाज से जाति -वादी भेदभाव को खत्म करने और समाज के सुधार व समाज कल्याण कार्यों में समर्पित कर दिया था।
गुरु संत रविदास का जीवन परिचय जानिए,
गुरु संत रविदास का जन्म वाराणसी के पास गोबर्धनपुर गाँव में एक चर्म शिल्पकार परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम संतोख दास और माता का नाम कलसा देवी था। उनकी पत्नी का नाम लोना देवी बताया जाता है। रैदास महाराज ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया था। संत रविदास का बचपन गरीबी में बीता और उन्हें जूते, चप्पल बनाने का काम करना पड़ा। लेकिन, उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से ज्ञान प्राप्त किया और एक महान संत बने।
जानिए, संत रविदास जयंती कब और क्यों मनाई जाएंगी?
प्रत्येक वर्ष माघ पूर्णिमा के तिथि गुरु संत रविदास के सम्मान में इनके जन्मदिन को गुरु संत रविदास जयंती के रूप में मनाया जाता है। साथ ही इन्होंने अपनी शिक्षाओं दीक्षा और उपदेशों से लोगों के जीवन को सुख समृद्ध बनाया। इस साल गुरु संत रविदास जयंती बुधवार 12 फरवरी 2025 को मनाया जाएगा।
गुरू संत रविदास (रैदास जी) का जन्म काशी में माघ पूर्णिमा दिन रविवार को संवत 1433 को हुआ था उनका एक दोहा प्रचलित है। चौदह सौ तैंतीस कि माघ सुदी पन्दरास। दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री गुरु रविदास।
जानकार बताते हैं कि कई लोगों का मानना है कि संत रविदास का कोई गुरु नहीं था। कहा जाता है कि यह भारत की प्राचीन गौरवमयी बोद्ध परंपरा के अनुयायी थे और प्रच्छन्न बौद्ध थे इसका पता इनकी वाणी से चलता है।इन्होंने ब्राम्हणी धर्म में व्याप्त कुरीतियों और अज्ञानता के लिए आम जनमानस को धार्मिक अंधविश्वास और आडंबर से दूर रहने का संदेश दिया और कहा कि अगर मन पवित्र है तो गंगा में भी स्नान की आवश्यकता नहीं है। मन चंगा तो, कठौती में गंगा, इनकी प्रसिद्ध उक्ति है जो इस बात पर प्रकाश डालती है। इस्लाम धर्म में फैली बुराइयों को भी इन्होंने समान रूप से अपनी अभिव्यक्ति में शामिल किया था। समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे।
प्रारम्भ से ही संत रविदास बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। वे उन्हें प्रायः मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे। जानकारों के अनुसार कुछ समय बाद उन्होंने संत रविदास तथा उनकी पत्नी को अपने घर से निकाल दिया। संत रविदास पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग इमारत बनाकर तत्परता से अपने व्यवसाय का काम करते थे और शेष समय ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे।
गुरु संत रविदास की शिक्षाएं जानिए,
गुरु संत रविदास ने अपनी कविताओं और उपदेशों के माध्यम से समाज को एक नई दिशा प्रदान की। उन्होंने ईश्वर के प्रति प्रेम, मानव सेवा, और सामाजिक समानता के महत्व पर जोर दिया। उनकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और हमें एक बेहतर समाज बनाने के लिए प्रेरित करती हैं।
गुरु संत रविदास की कुछ प्रमुख शिक्षाओं के बारे में जानिए
सबसे पहले जानिए समता के बारे में गुरु संत रविदास ने समाज में व्याप्त जातिवाद और छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि सभी मनुष्य समान हैं और किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।
गुरु संत रविदास ने न्याय और इंसाफ के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमें हमेशा सच और न्याय के रास्ते पर चलना चाहिए।
गुरु संत रविदास ने भाईचारे और एकता का संदेश दिया। उन्होंने कहा कि हमें एक दूसरे से प्रेम और सद्भाव से रहना चाहिए।
गुरु संत रविदास ने मानव सेवा को सबसे बड़ा धर्म बताया। उन्होंने कहा कि हमें गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए।
गुरु संत रविदास ने ईश्वर के प्रति सच्चे प्रेम और भक्ति का मार्ग बताया। उन्होंने कहा कि ईश्वर को पाने के लिए हमें अपने हृदय को शुद्ध करना चाहिए।
अब जानिए संत रविदास महाराज के स्वभाव के बारे में,
संत रविदास महाराज के जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से समय तथा वचन के पालन सम्बन्धी उनके गुणों का पता चलता है। एक बार एक पर्व के अवसर पर पड़ोस के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे। रैदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो वे बोले, गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किन्तु गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहाँ लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा? मन जो काम करने के लिए अन्तःकरण से तैयार हो वही काम करना उचित है। मन सही है तो इसे कठौते के जल में ही गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है। कहा जाता है कि इस प्रकार के व्यवहार के बाद से ही कहावत प्रचलित हो गयी कि – मन चंगा तो कठौती में गंगा।
रैदास महाराज ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।
वे स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है।
उनका विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित-भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक है। अभिमान त्याग कर दूसरों के साथ व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करने पर उन्होंने बहुत बल दिया। अपने एक भजन में उन्होंने कहा है-
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।
उनके विचारों का आशय यही है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की पिपीलिका अर्थात चींटी इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है। इसी प्रकार अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है।
रैदास की वाणी भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत-प्रोत होती थी। इसलिए उसका श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। उनके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी जिससे उनकी शंकाओं का सन्तोषजनक समाधान हो जाता था और लोग स्वतः उनके अनुयायी बन जाते थे।
उनकी वाणी का इतना व्यापक प्रभाव पड़ा कि समाज के सभी वर्गों के लोग उनके प्रति श्रद्धालु बन गये। कहा जाता है कि मीराबाई उनकी भक्ति-भावना से बहुत प्रभावित हुईं और उनकी शिष्या बन गयी थीं।
आज भी सन्त रैदास के उपदेश समाज के कल्याण तथा उत्थान के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने अपने आचरण तथा व्यवहार से यह प्रमाणित कर दिया है कि मनुष्य अपने जन्म तथा व्यवसाय के आधार पर महान नहीं होता है। विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं। इन्हीं गुणों के कारण सन्त रैदास को अपने समय के समाज में अत्यधिक सम्मान मिला और इसी कारण आज भी लोग इन्हें श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं।
रैदास के 40 पद गुरु ग्रन्थ साहब में मिलते हैं जिसका सम्पादन गुरु अर्जुन साहिब ने सोलहवीं सदी में किया था।
गुरु संत रविदास जयंती का महत्व जानिए,
गुरु संत रविदास जयंती एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह हमें गुरु संत रविदास की शिक्षाओं और उनके जीवन के बारे में याद दिलाता है। इस दिन लोग गुरु संत रविदास के मंदिरों में जाते हैं और उनकी कविताओं और उपदेशों को सुनते हैं। कई जगहों पर शोभायात्राएं निकाली जाती हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
गुरु संत रविदास जयंती हमें यह भी संदेश देती है कि हमें समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और एक समतापूर्ण समाज बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए।
गुरु संत रविदास के देश भर में लाखों अनुयायी हैं। वे उन्हें एक महान संत और समाज सुधारक के रूप में पूजते हैं। गुरु संत रविदास के अनुयायी उनकी शिक्षाओं का पालन करते हैं और समाज में समता, न्याय और बंधुत्व को बढ़ावा देने के लिए काम करते हैं।
गुरु संत रविदास जयंती को देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन गुरु संत रविदास के मंदिरों को सजाया जाता है और विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। कई जगहों पर भंडारे आयोजित किए जाते हैं, जिनमें गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन कराया जाता है। गुरु संत रविदास जयंती समारोह हमें गुरु संत रविदास की शिक्षाओं को याद रखने और उन्हें अपने जीवन में अपनाने की प्रेरणा देता है।
गुरु संत रविदास जयंती एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह हमें गुरु संत रविदास की शिक्षाओं और उनके जीवन के बारे में याद दिलाता है। गुरु संत रविदास ने समाज को एक नई दिशा प्रदान की। उन्होंने हमें समता, न्याय और बंधुत्व का संदेश दिया। उनकी शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं और हमें एक बेहतर समाज बनाने के लिए प्रेरित करती हैं। हमें गुरु संत रविदास के विचारों को अपने जीवन में अपनाना चाहिए और समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। यही गुरु संत रविदास जयंती का सच्चा संदेश है। हरि ओम,
अगर आप भगवान विष्णु जी एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय विष्णु देवा, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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लगभग 18 वर्षों से पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं। दैनिक हिन्द गजट के संपादक हैं, एवं समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया के लिए लेखन का कार्य करते हैं . . .
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