न्याय के देवता शनिदेव के बारे में जानिए सबकुछ विस्तार से . . .

जानिए कब है 2025 में न्याय के देवता का प्रकट्य दिवस अर्थात शनि जयंती!
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भारतीय संस्कृति में प्रत्येक देवता का एक विशेष स्थान है, किंतु शनिदेव की बात आते ही एक विशेष प्रकार की श्रद्धा के साथ ही साथ भय का मिश्रण देखने को मिलता है। शनि जयंती वह पुण्य पावन तिथि है जब न्याय के देवता, शनिदेव का जन्म हुआ था। वर्ष 2025 में यह पावन अवसर मंगलवार 27 मई को मनाया जाएगा। यह दिन न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और खगोलशास्त्रीय दृष्टि से भी इसका विशिष्ट स्थान है।
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी, न्याय के देवता शनिदेव की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः, जय शनिदेव लिखना न भूलिए।
जानिए कैसे होता है शनि जयंती का तिथि निर्धारण,
शनि जयंती हर वर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। पंचांग के अनुसार वर्ष 2025 में ज्येष्ठ अमावस्या 27 मई को पड़ रही है। यह तिथि शनि देव के जन्मोत्सव के रूप में सम्पूर्ण भारत में धूमधाम से मनाई जाएगी। इस दिन विशेषकर शनिदेव के मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है।
अब जानिए शनि जयंती की तिथि और शुभ योग,
अमावस्या तिथि प्रारंभ होगी 26 मई 2025 को दोपहर 12 बजकर 11 बजे से,
अमावस्या तिथि समाप्त होगी 27 मई 2025 को सुबह 8 बजकर 31 मिनिट पर
इस हिसाब से उदया तिथि के अनुसार शनि जयंती तिथि 27 मई 2025 है।
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इस दिन कई शुभ योग बन रहे हैं, जैसे सर्वार्थ सिद्धि योग, त्रिपुष्कर योग, बुधादित्य योग, और मालव्य राजयोग, जो इस पर्व को और भी विशेष बनाते हैं।
शनि जयंती का धार्मिक महत्व जानिए,
शनि देव को कर्मों के अनुसार फल देने वाला देवता माना जाता है। उनकी पूजा से जीवन में आने वाली बाधाओं, साढ़ेसाती, ढैय्या और अन्य शनि दोषों से मुक्ति मिलती है। शनि जयंती पर व्रत, पूजा और दान करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख, समृद्धि और शांति आती है।
अब जानिए शनि देव का परिचय,
शनि देव सूर्यदेव और उनकी छाया पत्नी संज्ञा की संतान हैं। शनि नवग्रहों में एक महत्वपूर्ण ग्रह हैं और उन्हें कर्म, न्याय, तपस्या और प्रतिकूलताओं का प्रतीक माना जाता है। उन्हें दण्डनायक कहा गया है क्योंकि वे मनुष्यों को उनके कर्मों का फल देने वाले देवता हैं। शनिदेव को कर्मफलदाता कहा जाता है, जो व्यक्ति के शुभ और अशुभ कर्मों के अनुसार फल प्रदान करते हैं।
अब शनि देव का स्वरूप जानिए,
धार्मिक ग्रंथों में शनिदेव का स्वरूप अत्यंत गंभीर और प्रभावशाली बताया गया है। वे काले वस्त्र धारण करते हैं, उनका वाहन कौआ या गिद्ध होता है, उनके हाथों में धनुष, त्रिशूल और गदा होते हैं। उनकी दृष्टि अत्यंत तीव्र मानी जाती है, इसलिए भक्त उनकी दृष्टि से दूर रहकर पूजा करते हैं।
शनि देव का जन्म और कथा जानिए,
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शनि देव का जन्म उस समय हुआ जब सूर्य और संज्ञा की छाया (छाया देवी) ने कठोर तपस्या की थी। छाया देवी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उनसे एक तेजस्वी संतान की कामना की। शिव की कृपा से शनिदेव का जन्म हुआ। जन्म लेते ही शनिदेव की दृष्टि सूर्य पर पड़ी और सूर्य का तेज मद्धिम हो गया। इससे सूर्यदेव क्रोधित हो गए, किंतु बाद में शनिदेव के तप और न्यायप्रिय स्वभाव को देखकर उन्हें नवग्रहों में प्रमुख स्थान दिया गया।
शनि भगवान का ज्योतिषीय महत्व जानिए,
ज्योतिष शास्त्र में शनि को धीमी गति से चलने वाला ग्रह माना गया है। यह एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक रहता है और एक चक्र पूरा करने में लगभग 30 वर्ष लेता है। इसे शनि की साढ़े साती और ढैय्या जैसे प्रभावों के लिए जाना जाता है, जो व्यक्ति के जीवन में विभिन्न प्रकार की परीक्षाएँ और संघर्ष लाता है। हालाँकि, शनि का उद्देश्य दंड देना नहीं बल्कि सुधार करना है।
शनि की साढ़े साती और ढैय्या के बारे में जानिए, सबसे पहले जानिए शनि की साढ़े साती के बारे में,
जब शनि किसी व्यक्ति की जन्म राशि से एक राशि पहले, उस राशि में और एक राशि बाद तक भ्रमण करता है, तब इसे साढ़े साती कहते हैं। यह काल लगभग साढ़े सात वर्ष का होता है।
अब जानएि ढैय्या के बारे में,
जब शनि चौथे या आठवें भाव में होता है, तब उसे ढैय्या कहा जाता है और यह काल ढाई वर्षों का होता है। इन अवधियों को सामान्यतः कष्टदायक माना जाता है, किंतु यदि व्यक्ति संयम, परिश्रम और सत्कर्म करता है तो शनिदेव उसे महान उपलब्धियाँ भी प्रदान करते हैं।
शनि जयंती पर विशेष पूजा-विधि जानिए,
प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
काले वस्त्र पर शनि देव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
सरसों के तेल का दीपक जलाएं और धूप अर्पित करें।
पंचामृत से शनि देव का अभिषेक करें और कुमकुम, काजल, नीले फूल अर्पित करें।
गुड़-चना, तेल में बने पकवान, मालपुए, काली दाल की खिचड़ी का भोग लगाएं।
ऊॅ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः मंत्र का 108 बार जाप करें।
शनि चालीसा और दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करें।
पूजा के अंत में शनि देव से क्षमा याचना करें और आशीर्वाद प्राप्त करें।
शनि जयंती के दिन विशेष रूप से निम्नलिखित पूजा-विधियाँ अपनाई जाती हैंः
अब जानिए शनि जयंति पर दान और उपायों के बारे में,
शनि जयंती पर निम्नलिखित वस्तुओं का दान करना शुभ माना जाता हैः
काले तिल, काली उड़द, काले चने, काले वस्त्र, काले जूते, लोहे की वस्तुएं, सरसों का तेल, काले छाते, गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्र दान करें, इन दानों से शनि देव प्रसन्न होते हैं और जीवन में आने वाली कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।
शनि जयंती का आध्यात्मिक महत्व जानिए,
शनि जयंती आत्मनिरीक्षण और आत्मशुद्धि का पर्व है। यह दिन यह सिखाता है कि जीवन में कठिनाइयाँ केवल दंड नहीं, बल्कि सुधार का माध्यम हैं। शनि व्यक्ति को अनुशासन, न्याय, संयम और तपस्या की ओर अग्रसर करता है। इस दिन मन, वचन और कर्म से पवित्र रहने का संकल्प लिया जाता है।
शनि जयंती और सामाजिक चेतना के बारे में जानिए,
आज के युग में शनिदेव की पूजा केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण हो गई है। शनि कर्म का प्रतीक हैं और हमें यह सिखाते हैं कि कोई भी जाति, वर्ग या वर्ण यदि परिश्रमी और न्यायप्रिय है, तो वह पूजनीय है। शनि जयंती हमें सामाजिक समरसता, कर्मशीलता और न्याय की प्रेरणा देती है।
अब जानिए भगवान शनिदेव के प्रसिद्ध देवालयों के बारे में,
सबसे पहले बात करते हैं शनिधाम के बारे में जो कि महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर में स्थित है, यह भारत का सबसे प्रसिद्ध शनि मंदिर है, जहाँ शनि की मूर्ति खुले आसमान के नीचे स्थापित है। शनि जयंती पर यहाँ लाखों भक्तों का समागम होता है। महाराष्ट्र में स्थित इस मंदिर की ख्याति देश ही नहीं विदेशों में भी है। कई लोग तो इस स्थान को शनि देव का जन्म स्थान भी मानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यहां शनि देव हैं, लेकिन मंदिर नहीं है। घर हैं लेकिन दरवाजा नहीं और वृक्ष हैं लेकिन छाया नहीं। शिंगणापुर के इस चमत्कारी शनि मंदिर में स्थित शनिदेव की प्रतिमा लगभग पांच फीट नौ इंच ऊंची व लगभग एक फीट छह इंच चौड़ी है। देश-विदेश से श्रद्धालु यहां आकर शनिदेव की इस दुर्लभ प्रतिमा का दर्शन करते हैं।
इसके बाद नंबर आता है उत्तर प्रदेश की धर्म नगरी मथुरा के कोकिलावन धाम की,
यह स्थान शनि देव के कोप से बचने के लिए जाना जाता है। यहाँ शनिचर अमावस्या और शनि जयंती पर विशेष आयोजन होते हैं।
देश के हृदय प्रदेश के उज्जैन में श्री शनिदेव धाम, महाकाल नगरी में स्थित यह धाम भी शनि भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है।
शनि तीर्थ क्षेत्र, असोला, फतेहपुर बेरी, यह मंदिर दिल्ली के महरौली में स्थित है। यहां शनि देव की सबसे बड़ी मूर्ति विद्यमान है, जो कि अष्टधातुओं से बनी है। शनिदेव की भक्ति का यह स्थान हमेशा से केंद्र रहा है और यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती हैं। यहां एक प्रतिमा में शनिदेव गिद्ध और दूसरे में भैंस पर सवार हैं। असोला शक्ति पीठ को लेकर मान्यता है कि यहां शनिदेव स्वयं जागृत अवस्था में विराजमान हैं।
शनि मंदिर, इंदौर, शनिदेव का प्राचीन व चमत्कारिक मंदिर जूनी इंदौर में स्थित है। इसे दुनिया का सबसे प्राचीन शनि मंदिर माना जाता है। माना जाता है कि जूनी इंदौर में स्थापित इस मंदिर में शनि देवता स्वयं पधारे थे। इस मंदिर के बारे में एक कथा प्रचलित है कि मंदिर के स्थान पर लगभग 300 वर्ष पूर्व एक 20 फुट ऊंचा टीला था, जहां वर्तमान पुजारी के पूर्वज पंडित गोपालदास तिवारी आकर ठहरे थे। यहां हर रोज शनिदेव की प्रतिमा का 16 श्रृंगार किया जाता है। यहां तेल से नहीं बल्कि सिंदूर से शनिदेव का श्रृंगार किया जाता है।
शनिचरा मंदिर, मुरैना, मध्य प्रदेश में ग्वालियर के नजदीकी एंती गांव में शनिदेव मंदिर का देश में विशेष महत्व है। देश के सबसे प्राचीन त्रेतायुगीन शनि मंदिर में प्रतिष्ठित शनिदेव की प्रतिमा भी विशेष है। माना जाता है कि ये प्रतिमा आसमान से टूट कर गिरे एक उल्कापिंड से निर्मित है। ज्योतिषी व खगोलविद मानते हैं कि शनि पर्वत पर निर्जन वन में स्थापित होने के कारण यह स्थान विशेष प्रभावशाली है। महाराष्ट्र के शिंगणापुर शनि मंदिर में प्रतिष्ठित शनि शिला भी इसी शनि पर्वत से ले जाई गई है। कहते हैं कि हनुमान जी ने शनिदेव को रावण की कैद से मुक्त कराकर उन्हें मुरैना पर्वतों पर विश्राम करने के लिए छोड़ा था। मंदिर के बाहर हनुमान जी की मूर्ति भी स्थापित है।
शनि मंदिर, प्रतापगढ़, भारत के प्रमुख शनि मंदिरों में से एक शनि मंदिर उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में स्थित है, जो शनि धाम के रूप में प्रख्यात है। प्रतापगढ़ जिले के विश्वनाथगंज बाजार से लगभग 2 किलोमीटर दूर कुशफरा के जंगल में भगवान शनि का प्राचीन पौराणिक मंदिर लोगों के लिए श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। कहते हैं कि यह ऐसा स्थान है, जहां आते ही भक्त भगवान शनि की कृपा का पात्र बन जाता है। चमत्कारों से भरा हुआ यह स्थान लोगों को सहसा ही अपनी ओर खींच लेता है। अवध क्षेत्र के एकमात्र पौराणिक शनि धाम होने के कारण प्रतापगढ़ (बेल्हा) के साथ-साथ कई जिलों के भक्त आते हैं। प्रत्येक शनिवार भगवान को 56 प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है।
शनि मंदिर, तिरुनल्लर,
शनि देव को समर्पित यह मंदिर तमिलनाडु के नवग्रह मंदिरों में से एक है। भारत में स्थित शनिदेव का यह सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि शनिदेव के प्रकोप के कारण किसी व्यक्ति को बदकिस्मती, गरीबी और अन्य बुरे प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने से शनि ग्रह के सभी बुरे प्रभावों से मुक्ति मिल जाती है।
शनि से जुड़े व्रत और उपाय जानिए,
शनि जयंती के दिन विशेष व्रत और उपाय किए जाते हैं।
काले घोड़े की नाल से बनी अंगूठी धारण करें।
शनिवार को विशेष रूप से गरीबों, मजदूरों और सेवकों को भोजन कराएँ।
काले तिल और सरसों का तेल दान करें।
शनिवार को पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएँ और 7 परिक्रमा करें।
सच्चे मन से प्रायश्चित करें और दूसरों को क्षमा करें।
इस बार शनि जयंती पर विशेष संयोग कौन से हैं यह जानिए,
वर्ष 2025 की शनि जयंती इसलिए भी विशेष है क्योंकि इस दिन शनि अपनी स्वयं की राशि कुंभ में गोचर करेंगे, जिससे इस दिन का फल कई गुना बढ़ जाएगा। कुंभ शनि की मूल त्रिकोण राशि मानी जाती है, जिससे शनि की शुभता और प्रभाव अत्यधिक हो जाएगा। साथ ही इस दिन चंद्रग्रहण की आंशिक छाया भी लग सकती है, जिससे इसका आध्यात्मिक प्रभाव और भी विशेष होगा।
जानिए शनि जयंती पर क्या न करें,
किसी को अपशब्द न कहें या अपमान न करें।
मद्यपान, मांसाहार और तामसिक भोजन से बचें।
धन, स्त्री या पद के मद में कोई अहंकार न करें।
काले रंग के वस्त्रों का अपमान न करें।
मजदूर, नौकर या निर्धन व्यक्ति से दुर्व्यवहार न करें।
शनि देव से जुड़ी कुछ रोचक मान्यताएँ जानिए,
शनि की सीधी दृष्टि भीषण परिणाम ला सकती है, अतः पूजा के समय सीधे आंखों में देखने की सलाह नहीं दी जाती।
शनिदेव अपने भक्तों से अत्यधिक प्रसन्न होते हैं यदि वे अनुशासित और कर्मठ जीवन जीते हैं।
शनिदेव को लोकन्यायक भी कहा जाता है क्योंकि वे सबसे गरीब और सबसे धनी के बीच न्याय करते हैं।
शनिदेव लंगड़े क्यों
शनिदेव के धीमी चाल और लंगड़ा कर चलने के पीछे पिप्पलाद मुनि के कोप का ही कारण है। पिप्लाद मुनि अपने पिता की मृत्यु का कारण शनिदेव को मानते थे। पिप्पलाद मुनि ने शनि पर ब्रह्रादण्ड से प्रहार किया। शनि यह प्रहार सहन करने में असमर्थ थे जिस कारण से शनि तीनों लोकों में दौड़ने लगे। इसके बाद ब्रह्रादण्ड ने उन्हें लंगड़ा कर दिया।
भगवान शिव ने शनि को दण्डाधिकारी नियुक्ति किया हुआ है,
शनिदेव और भगवान शिव के बीच युद्ध भी हुआ था। भयानक युद्ध के बाद भगवान शिव ने शनि को परास्त कर दिया था। बाद में सूर्यदेव की प्रार्थना पर भगवान शिव ने उन्हें माफ किया। शनि के रण कौशल से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपना सेवक और दण्डाधिकारी नियुक्ति कर लिया।
जानिए शनिदेव का रंग काला क्यों है!
शनिदेव के पिता का नाम सूर्यदेव और माता का नाम छाया है। छाया भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थीं और वह अपने गर्भ में पल रहे शनि की चिंता किए बगैर हमेशा भगवान शिव की तपस्या में लीन रहती थीं। इस कारण से ना तो वह खुद अपना और ना ही गर्भ में पल रहे अपने बच्चे का ध्यान रख पाती थीं। जिसके कारण से शनि काले और कुपोषित पैदा हुए।
बच्चों पर क्यों नहीं पड़ती शनि छाया यह जानिए,
12 साल तक के बच्चों पर शनि का प्रकोप कभी नहीं रहता है। इसके पीछे पिप्पलाद और शनि के बीच हुए युद्ध का कारण है। पिप्पलाद ने युद्ध में शनि को परास्त कर दिया और इस शर्त पर छोड़ा कि वे 12 वर्ष तक की आयु के बच्चों को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं देंगे।
सभी ग्रहों में श्रेष्ठ शनि महाराज,
शनिदेव सभी नौ ग्रहों में सबसे श्रेष्ठ होने का भगवान शिव से आशीर्वाद मिला है। इनकी दृष्टि से मनुष्य क्या देवता भी भयभीत रहते हैं।
शनिदेव की कुदृष्टि कई देवताओं और राजाओं पर पड़ी तब क्या हुआ यह जानिए,
शनिदेव की कुदृष्टि से कई देवी-देवताओं को शिकार होना पड़ा था। शनि के कारण ही भगवान गणेश का सिर कटा था। इसके अलावा भगवान राम को वनवास और रावण का संहार शनि के कारण ही हुआ था। शनि की काली छाया की वजह से ही पांडवों का वनवास का दर्द झेलना पड़ा था। इसके अलावा राजा विक्रमादित्य और त्रेता युग में राजा हरीशचन्द्र को शनि के कारण दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी।
जानिए, शनि की छाया अशुभ क्यों मानी जाती है,
शनि की कुदृष्टि का कारण उनकी पत्नी द्वारा दिए गए शाप के कारण है। एक बार शनिदेव की पत्नी पुत्र की लालसा में उनके पास पहुंची लेकिन शनिदेव कठिन तपस्या में लीन थे। इससे आहत होकर पत्नी ने शनिदेव को शाप दिया कि जिस पर भी आपकी दृष्टि पड़ेगी उसका सबकुछ नष्ट हो जाएगा।
शनि के रत्न कौन से हैं यह जानिए,
शनि को नीलम रत्न और नीले रंग का फूल बहुत ही पसंद होता है जो भक्त शनिवार के दिन नीले रंग का फूल चढ़ाता है उससे शनिदेव बहुत ही प्रसन्न होते हैं।
नीलम रत्न का इस्तेमाल बहुत शुभ माना गया है, नीलम के साथ मूंगा, माणिक और मोती नहीं पहनना चाहिए। नहीं तो, आपको भारी नुकसान हो सकता है। क्योंकि इन रत्नों का जिन ग्रह से संबंध है, उनके शनि देव का शत्रुता का भाव है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि ग्रह कमजोर या अशुभ स्थिति में होता है, तो उसे नीलम रत्न धारण करने के लिए कहा जाता है। यह एकमात्र ऐसा रत्न है, जिसका प्रभाव महज 24 घंटे के भीतर आप महसूस करने लगते हैं। ऐसा माना जाता है कि यह रत्न अगर व्यक्ति को सूट हो जाए, तो उसकी किस्मत चमका देता है। वहीं, जब यह धारक को नहीं जंचता, तो उसके जीवन में असामान्य घटनाएं घटित होने लगती हैं।
नीलम रत्न पहनने के फायदे और विधि जानिए, अनिद्रा की शिकायत होने पर नीलम रत्न पहना जा सकता है। नीलम धारण करने से व्यक्ति धैर्यवान बनता है। अटके हुए काम पूरे होने लगते हैं। इस रत्न को पहनने से व्यक्ति को मान-सम्मान के साथ प्रसिद्धि प्राप्त होती है। वहीं धारक की कार्यशैली में निखार आने लगता है। नीलम को कम से कम 7 से लेकर सवा 8 रत्ती का धारण करना चाहिए। नीलम को पंचधातु में जड़वाकर अंगूठी बनवानी चाहिए। इसे बायें हाथ में पहनना चाहिए। नीलम की अंगूठी को शनिवार मध्य रात्रि में धारण करना उपयुक्त माना जाता है। इसे पहनने से पहले अंगूठी को गंगाजल और गाय के कच्चे दूध से शुद्ध जरूर कर लें।
शनि के ऐसे ना करें दर्शन,
मंदिर में शनि की पूजा करते समय एक बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए। पूजा में कभी की शनिदेव की आंखों में आंख डालकर नहीं देखना चाहिए बल्कि पैरों की तरफ देखना चाहिए। शनिदेव की आंखों देखने से शनि संकट का खतरा बढ़ जाता है।
शनि की धीमी चाल जानिए,
शनि एक राशि में आने के लिए 30 वर्षों का समय लेते हैं। शनि सभी ग्रहों में सबसे धीमी चाल से चलने वाले ग्रह है।
शनि जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि जीवन को समझने का एक दृष्टिकोण है। यह दिन हमें सिखाता है कि कष्ट, बाधा और दुख जीवन का अंत नहीं, बल्कि सुधार की प्रक्रिया हैं। यदि हम अपने कर्मों को सुधार लें, तो शनिदेव की कृपा से हम जीवन में महानतम उपलब्धियाँ भी प्राप्त कर सकते हैं।
वर्ष 2025 की शनि जयंती आत्मचिंतन, सुधार और न्यायप्रिय जीवन की ओर एक नई शुरुआत का अवसर है। आइए, इस पावन दिन हम सभी शनि देव के चरणों में नतमस्तक होकर अपने कर्मों को शुद्ध करें और एक अनुशासित, नैतिक और न्याययुक्त जीवन की ओर अग्रसर हों। हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी, न्याय के देवता शनिदेव की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः, जय शनिदेव लिखना न भूलिए।
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मनोज राव

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