जानिए इस साल कब पड़ने वाली है आषाढ़ माह की अमावस्या . . .
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आषाढ़ माह की अमावस्या का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। यह तिथि भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित है। इस दिन श्रद्धालु पितरों की शांति और मोक्ष के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करते हैं। माना जाता है कि इस दिन दान-पुण्य करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है और सभी पापों से मुक्ति मिलती है। कई भक्त इस दिन व्रत रखकर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह अमावस्या वर्षा ऋतु के आगमन का भी संकेत देती है, क्योंकि इसके बाद से मानसून की गतिविधियाँ तेज़ हो जाती हैं।
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
अब जानिए आषाढ़ अमावस्या 2025 की तिथि और समय
अमावस्या तिथि अरंभ होगी मंगलवार 24 जून 2025 को सुबह 6 बजकर 59 मिनिट पर एवं अमावस्या तिथि समाप्त होगी बुधवार 25 जून 2025 को शाम 4 बजे। अमावस्या व्रत और पितृ पूजन की तिथि रहेगी बुधवार 25 जून 2025 को, इस दिन के महत्वपूर्ण महूर्त जानिए,
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इस दिन सूर्याेदय होगा सुबह 5 बजकर 25 मिनिट पर एवं सूर्यास्त होगा शाम 7 बजकर 23 मिनिट पर,
ब्रम्ह मुहूर्त रहेगा सुबह 4 बजकर 5 मिनिट से 4 बजकर 45 मिनिट तक,
विजय मुहूर्त रहेगा दोपहर 2 बजकर 43 मिनिट से 3 बजकर 39 मिनिट तक,
गोधूलि मुहूर्त रहेगा शाम 7 बजकर 21 मिनिट से 7 बजकर 42 मिनिट तक एवं
अमृत काल रहेगा रात्रि 11 बजकर 34 मिनिट से मध्य रात्रि 1 बजकर 2 मिनिट तक,
जानिए, आषाढ़ अमावस्या पर क्यों की जाती है पितृ पूजा?
जानकार विद्वानों का मत है कि मान्यता के अनुसार अमावस्या के दिन पितृलोक से आत्माएं धरती पर पधारतीं हैं। ऐसे में यदि कोई अपने पितरों के लिए श्रद्धा से तर्पण, पिंडदान, दीपदान या जलदान करता है, तो उनके पितर संतुष्ट होते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं। यही आशीर्वाद इंसान के जीवन से बाधाएं दूर करता है, तरक्की का मार्ग खोलता है और परिवार में सुख-शांति बनाए रखता है।
पितरों को खुश करने के आसान उपाय जानिए,
पीपल वृक्ष की पूजा करें, आषाढ़ अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। यह उपाय पितरों की आत्मा को शांति देने के साथ-साथ व्यक्ति की परेशानियों को भी दूर करता है।
तर्पण और पिंडदान करें, गंगा स्नान या किसी पवित्र नदी में स्नान करने के बाद तिल, जल, फूल और कुश से तर्पण करें। इससे पितृदोष से राहत मिलती है।
दान-पुण्य करें, इस दिन अन्न, वस्त्र, काला तिल, गुड़, छाता और जल का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है और पितरों की कृपा बनी रहती है।
सूर्य को अर्घ्य दें, जल में काले तिल मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य देने से पितृदोष में राहत मिलती है।
अब जानिए कि पितृ दोष से मुक्ति कैसे पाएं?
अगर कुंडली में पितृ दोष है तो गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करें, जल में काले तिल मिलाकर सूर्य को अर्घ्य दें, पिंडदान और तर्पण विधिवत करें, गाय को हरा चारा और कुत्ते को रोटी खिलाएं।
जानिए क्या न करें आषाढ़ अमावस्या पर,
तामसिक भोजन से बचें, बिना स्नान के किसी भी पूजा या दान में शामिल न हों, पितरों को स्मरण किए बिना दान न करें, पूजा के समय शोर-शराबा न करें।
आषाढ़ अमावस्या सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि आत्मीय भाव से पितरों को श्रद्धांजलि देने का अवसर है। इस दिन की गई सच्ची श्रद्धा और साधना व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकती है।
आषाढ़ महीना के दौरान दक्षिण भारत में कई महत्वपूर्ण अनुष्ठान और आध्यात्मिक प्रथाएं मनाई जाती हैंः
जानिए किस तरह की जाए इस दिन दैनिक पूजा और अर्पण,
सुबह की रस्में शुद्ध स्नान से शुरू होती हैं, उसके बाद कुलदेवी की पूजा की जाती है। कई घर पूरे महीने शाकाहारी भोजन का पालन करते हैं। महिलाएं शुक्रवार को विशेष आषाढ़ महीना पूजा करती हैं, देवी लक्ष्मी और पार्वती को पीली हल्दी, कुमकुम, चूड़ियाँ और फूल चढ़ाती हैं।
उपवास परंपराएँ जानिए,
आषाढ़ महीना के दौरान आंशिक या पूर्ण उपवास आम बात है । कई भक्त आषाढ़ी एकादशी का व्रत रखते हैं, जो इस महीने में आती है। माना जाता है कि संयम का यह दिन शरीर और आत्मा दोनों को शुद्ध करता है और दैवीय आशीर्वाद अर्जित करता है।
साप्ताहिक मंदिरों में जाना, खास तौर पर शुक्रवार और मंगलवार को, आषाढ़ महीना के अनुष्ठानों का एक अभिन्न अंग है। देवी मंदिरों में खास तौर पर काफी भीड़ होती है, भक्त फूल, फल और विशेष रूप से तैयार प्रसाद लेकर आते हैं।
साड़ी उपहार देने की परंपरा, आषाढ़ महीना के दौरान सबसे खूबसूरत रीति-रिवाजों में से एक है परिवार की महिलाओं को नई साड़ियाँ उपहार में देना। यह परंपरा समृद्धि, स्त्री शक्ति और सांस्कृतिक विरासत के निश्चित हस्तांतरण का प्रतीक है। सासें पारंपरिक रूप से बहुओं को साड़ियाँ भेंट करती हैं, जबकि बड़ी बहनें उन्हें छोटी बहनों को उपहार में देती हैं।
इन उपहारों के लिए चुनी गई साड़ियों में आमतौर पर मंदिर के बॉर्डर, मोर की आकृति और शुभ प्रतीकों के साथ पारंपरिक डिज़ाइन होते हैं। आज उपलब्ध आशादम साड़ियों में आधुनिक महिलाओं के लिए समकालीन तत्वों को शामिल करते हुए आज भी इन पारंपरिक सौंदर्यशास्त्र का सम्मान किया जाता है।
कई परिवार दिव्य स्त्रीत्व का सम्मान करने वाले ललिता सहस्रनाम या सौंदर्य लहरी जैसे पवित्र ग्रंथों का पाठ करते हैं। माना जाता है कि आषाढ़ महीना के दौरान ये आध्यात्मिक पाठ घर में शांति और समृद्धि लाते हैं ।
चूंकि आषाढ़ महीना मानसून के मौसम के साथ मेल खाता है, इसलिए पवित्र पेड़ों और पौधों को जल चढ़ाना आम बात है। यह अनुष्ठान प्रकृति का सम्मान करते हुए पर्याप्त वर्षा और भूमि की उर्वरता के लिए आशीर्वाद मांगता है।
ये अनुष्ठान एक महीने तक चलने वाले आध्यात्मिक भक्ति का माहौल बनाते हैं, कई महिलाएं इन पवित्र प्रथाओं के दौरान पहनने के लिए विशेष रूप से आषाढ़ महीना विशेष र्पीू साड़ियों के संग्रह से साड़ियों का चयन करती हैं।
अमावस्या की कथा जानिए,
यह कथा पितृदेव को प्रसन्न करने के लिए दान, तर्पण, और अन्य अनुष्ठानों के बारे में है।
आषाढ़ महीना की कथा, खासकर आषाढ़ की अमावस्या की कथा, अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग रूप से सुनाई जाती है।
इसी तरह एक कथा बलि की कथा के रूप में है, इस कथा में, भगवान विष्णु वामन रूप में प्रकट होते हैं और बलवान राजा बलि से दान माँगते हैं। बलि उन्हें अपनी भूमि दान कर देता है, जिससे विष्णु उसे स्वर्ग लोक से नीचे ले जाते हैं, और अंततः बलि को अपना राज्य वापस मिलता है।
सेठानी जी की कथा भी इसी से संबंधित है, एक सेठानी जी अपने बहू को सात कोठरियों की चाबी देती है और उसे केवल पहली कोठरी खोलने का निर्देश देती है। बहू पहली कोठरी खोलती है तो उसमें सुंदर कपड़े देखती है और उन्हें पहनती है।
आषाढ़ महीना में राजा महिजित की कथा भी सुनी जाती है। हरि ओम,
अगर आप जगत को रोशन करने वाले भगवान भास्कर, भगवान विष्णु जी देवाधिदेव महादेव ब्रम्हाण्ड के राजा भगवान शिव एवं भगवान श्री कृष्ण जी की अराधना करते हैं और अगर आप विष्णु जी एवं भगवान कृष्ण जी के भक्त हैं तो कमेंट बाक्स में जय सूर्य देवा, जय विष्णु देवा, ओम नमः शिवाय, जय श्री कृष्ण, हरिओम तत सत, ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः लिखना न भूलिए।
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