(विनीत खरे)
नई दिल्ली (साई)। सरकार विभिन्न योजनाओं का कार्यान्वयन कर रही है जिनके अंतर्गत संपूर्ण देश में शीघ्र खराब होने वाले बागवानी उत्पादों के लिए कोल्ड स्टोरेज स्थापित करने हेतु वित्तीय सहायता उपलब्ध है।
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, एकीकृत बागवानी विकास मिशन (एमआईडीएच) का कार्यान्वयन कर रहा है जिसके अंतर्गत राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों से प्राप्त वार्षिक कार्य योजना (एएपी) के आधार पर देश में 5000 मीट्रिक टन तक की क्षमता वाले कोल्ड स्टोरेज के निर्माण/विस्तार/आधुनिकीकरण सहित विभिन्न बागवानी कार्यकलापों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। कोल्ड स्टोरेज का घटक मांग आधारित/उद्यमी द्वारा संचालित है जिसके लिए संबंधित राज्य बागवानी मिशनों के माध्यम से सामान्य क्षेत्रों में परियोजना लागत के 35% और पूर्वोत्तर एवं पहाड़ी राज्यों तथा अनुसूचित क्षेत्रों में परियोजना लागत के 50% की दर से क्रेडिट-लिंक्ड बैक-एंडेड सब्सिडी के रूप में सरकारी सहायता उपलब्ध है।
इस योजना के अंतर्गत, व्यक्तियों, किसानों/उत्पादकों/उपभोक्ता समूहों, साझेदारी/प्रॉप्राइटरी फर्मों,स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी), किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ), कंपनियों, निगमों, सहकारी समितियों, सहकारी विपणन संघों, स्थानीय निकायों, कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) और विपणन बोर्डों तथा राज्य सरकारों के लिए सहायता उपलब्ध है।
इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (एनएचबी) ” बागवानी उत्पादों हेतु कोल्ड-स्टॉरेज और गोदाम के निर्माण/विस्तार/आधुनिकीकरण हेतु पूंजी निवेश सब्सिडी” नामक एक योजना का कार्यान्वयन कर रहा है। इस योजना के अंतर्गत, 5000 मीट्रिक टन से अधिक और 20000 मीट्रिक टन तक की क्षमता वाले कोल्ड-स्टॉरेज और कंट्रोल्ड एटमॉस्फियर (सीए) स्टोरेज स्थलों के निर्माण/विस्तार/आधुनिकीकरण हेतु सामान्य क्षेत्रों में परियोजना की पूंजीगत लागत के 35% की दर से और पूर्वोत्तर, पहाड़ी एवं अनुसूचित क्षेत्रों के संबंध में 50% की दर से क्रेडिट-लिंक्ड बैक-एंडेड सब्सिडी उपलब्ध है।
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (एमओएफपीआई) प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (पीएमकेएसवाई) के एक घटक के रूप में इंटिग्रेटेड कोल्ड-स्टॉरेज,फूड प्रोसेसिंग एंड प्रिसर्वेशन इंफ्रास्ट्रक्चर हेतु एक स्कीम का कार्यान्वयन कर रहा है। इसका उद्देश्य बागवानी और गैर-बागवानी उत्पादों की फसलोपरांत हानि को कम करना और किसानों को उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य प्रदान करना है। इस योजना के अंतर्गत, मंत्रालय भंडारण और परिवहन इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए सामान्य क्षेत्रों को 35% और पूर्वोत्तर एवं हिमालयी राज्यों, समेकित जनजातीय विकास कार्यक्रम (आईटीडीपी) क्षेत्रों और द्वीपों को 50% की दर से अनुदान सहायता के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान करता है और इरेडिएशन फैसिलिटी सहित इंटिग्रेटेड कोल्ड-स्टॉरेज परियोजनाओं की स्थापना के लिए मूल्य संवर्धन एवं प्रोसेसिंग इंफ्रास्ट्रक्शन हेतु क्रमशः 50% और 75% की दर से,जो प्रति परियोजना अधिकतम 10.00 करोड़ रुपये तक सीमित है,की अनुदान सहायता प्रदान की जाती है। इस योजना के अंतर्गत स्टैंडअलोन कोल्ड-स्टॉरेज शामिल नहीं हैं।
उपर्युक्त सभी योजनाएँ व्यावसायिक उपक्रमों के माध्यम से माँग आधारित/उद्यमी संचालित हैं, जिनके लिए सरकारी सहायता क्रेडिट-लिंक्ड बैक-एंडेड सब्सिडी/अनुदान सहायता के रूप में है और यह राज्यों/उद्यमियों से प्राप्त प्रस्तावों के आधार पर प्रदान की जाती है।
इसके अतिरिक्त, देश में एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर को सुदृढ़ करने के लिए, सरकार ने 1.00 लाख करोड़ रुपये का एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (एआईएफ) शुरू किया है। एआईएफ के अंतर्गत, कोल्ड-स्टोरेज की स्थापना सहित फसलोपरांत इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण हेतु 2.00 करोड़ रुपये तक के कोलैट्रल फ्री सावधि ऋण और लिए गए सावधि ऋण पर 3% ब्याज छूट का प्रावधान है।
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) नामक एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना का कार्यान्वयन कर रहा है। पीएमएफबीवाई राज्य सरकारों द्वारा अधिसूचित क्षेत्रों में फसलों के लिए बुआई पूर्व से फसलोपरांत तक के चरणों के लिए व्यापक जोखिम कवरेज प्रदान करती है। यह बाढ़, सूखा, चक्रवात, ओलावृष्टि और कीट संक्रमण जैसी व्यापक प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ भूस्खलन, बादल फटने और जलप्लावन जैसे स्थानीय जोखिमों से होने वाले हानि से किसानों की रक्षा करती है। यह योजना बेमौसम बारिश और चक्रवात जैसी घटनाओं के कारण होने वाली फसलोपरांत हानि तथा स्थगित बुआई से संबंधित जोखिमों को भी कवर करती है।
इसके अतिरिक्त, सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) को और अधिक प्रभावी और किसान-हितैषी बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इनमें फसल हानि आकलन और उपज अनुमान के लिए उपज अनुमान तंत्र हेतु येस-टेक (प्रौद्योगिकी आधारित उपज अनुमान) जैसे प्रौद्योगिकी-आधारित उपकरण सभी किसान और कृषि-उन्मुख सेवाओं के लिए उपयोग हेतु हाइपर-लोकल मौसम का एक सुदृढ डेटाबेस तैयार करने के लिए विंड्स (मौसम सूचना नेटवर्क और डेटा सिस्टम) और दावों की रिअल-टाइम ट्रैकिंग के लिए डिजी-क्लेम भुगतान मॉड्यूल शुरू करना शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, एआईडीई (इंटरमीडियरी एनरोलमेंट के लिए ऐप), किसानों के डोर-स्टेप नामांकन के लिए एक मोबाइल ऐप शुरू किया गया है, जबकि कृषि रक्षक पोर्टल और टोल-फ्री हेल्पलाइन (14447) शिकायत निवारण को सुगम बनाता हैं। वर्ष 2018, 2022 और 2023 में स्टेकहोल्डर फीडबैक के आधार पर परिचालन दिशानिर्देशों को संशोधित किया गया है। इसके अतिरिक्त, जागरूकता और पारदर्शिता बढ़ाने, किसानों के बीच वित्तीय सुरक्षा और विश्वास सुनिश्चित करने के लिए मेरी पॉलिसी मेरे हाथ और फसल बीमा पाठशाला जैसे आईईसी अभियान संचालित किए गए हैं।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, पूर्वोत्तर राज्यों के अतिरिक्त सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए परम्परागत कृषि विकास योजना (पीकेवीवाई) और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए ऑर्गेनिक मूल्य-श्रृंखला विकास मिशन (एमओवीसीडीएनईआर) का कार्यान्वयन कर रहा है। दोनों योजनाएं जैविक खेती कर रहे किसानों को उत्पादन से प्रसंस्करण, प्रमाणन और विपणन तक संपूर्ण सहायता प्रदान करने पर बल देती हैं। इन योजनाओं का प्राथमिक उद्देश्य लघु और सीमांत किसानों को प्राथमिकता देते हुए आपूर्ति श्रृंखला के सृजन हेतु जैविक क्लस्टर बनाना है। दोनों योजनाएँ राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों के माध्यम से कार्यान्वित की जाती हैं।
पीकेवीवाई के तहत, जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए 3 वर्षों में प्रति हेक्टेयर 31,500 रुपये की सहायता प्रदान की जाती है। इसमें से, जैविक खाद सहित ऑन-फार्म/ऑफ-फार्म जैविक आदानों के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के माध्यम से किसानों को प्रति हेक्टेयर 15,000 रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। विपणन, पैकेजिंग, ब्रांडिंग, मूल्य संवर्धन आदि के लिए 3 वर्षों के लिए 4,500 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से सहायता प्रदान की जाती है। प्रमाणीकरण और अवशेष विश्लेषण के लिए 3 वर्षों के लिए 3,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से सहायता प्रदान की जाती है। प्रशिक्षण, जागरूकता और क्षमता निर्माण के लिए भी 3 वर्षों के लिए 9,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से सहायता प्रदान की जाती है।
एमओवीसीडीएनईआर के अंतर्गत, किसान उत्पादक संगठन के निर्माण, जैविक आदानों के लिए किसानों को सहायता आदि के लिए 3 वर्षों में 46,500 रुपये प्रति हेक्टेयर की सहायता प्रदान की जाती है। इनमें से, इस योजना के अंतर्गत 15,000 रुपये का प्रत्यक्ष लाभ अंतरण सहित ऑफ-फार्म/ऑन-फार्म जैविक आदानों के लिए किसानों को प्रति हेक्टेयर 32,500 रुपये की दर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। आईसीएस प्रबंधन, प्रशिक्षण और प्रमाणन (एनपीओपी) कार्यकलापों के लिए 3 वर्षों में 10,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। राज्य स्तर पर मूल्य श्रृंखला विपणन के लिए 3 वर्षों में 4,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
पीकेवीवाई और एमओवीसीडीएनईआर की दो योजनाओं के अंतर्गत वर्तमान में प्रदान की जा रही वित्तीय सहायता को बढ़ाने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।
यह जानकारी कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री श्री रामनाथ ठाकुर ने आज लोकसभा में एक लिखित उत्तर में दी।

मूलतः प्रयागराज निवासी, पिछले लगभग 25 वर्षों से अधिक समय से नई दिल्ली में पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय विनीत खरे किसी पहचान को मोहताज नहीं हैं.
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